मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीट न मिलने से खफा समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से नाराजगी कम होने का नाम नहीं ले रही है. हालांकि दावा किया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच खटास कम हो जाएगी और ‘इंडिया’ गठबंधन एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा, बावजूद इसके दोनों दल ‘प्लान टू’ पर भी काम कर रहे हैं. अगर किसी वजह से गठबंधन टूटता है तो यूपी में कांग्रेस के लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है.
समाजवादी पार्टी एमपी का बदला यूपी में ले सकती है. माना जा रहा है कि पार्टी ने रायबरेली और अमेठी में मजबूत प्रत्याशी की तलाश शुरू कर दी है. वहीं कांग्रेस भी सैफई परिवार के लिए एक सीट छोड़कर बाकी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. सपा के वरिष्ठ नेता के मुताबिक अगर गठबंधन नहीं हुआ तो सपा रायबरेली और अमेठी में भी अपने प्रत्याशी उतार सकती है.
अमेठी-रायबरेली में प्रत्याशी उतार सकती है सपा
रायबरेली कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र है तो वहीं अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं. हालांकि 2019 में उन्हें यहां बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन राहुल इस बार फिर अमेठी से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. अगर सपा कांग्रेस से अलग हुई और अपने प्रत्याशी उतारे तो इन दोनों ही सीटों को जीतना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो जाएगा.
खबरों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी रायबरेली में ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय के नाम पर विचार कर रही है तो वहीं अमेठी के लिए गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह के नाम पर भी विचार कर रही है. अब तक इन दोनों सीटों पर सपा अपने प्रत्याशी नहीं उतारती थी. सपा ने साल 2009 से रायबरेली और अमेठी में सियासी दोस्ती के चलते चुनाव नहीं लड़ा. इसी तरह कांग्रेस भी यादव परिवार की सीटों पर प्रत्याशी उतारने से परहेज करती आई है.
कांग्रेस को हो सकता है ज्यादा नुकसान
इस बार सपा कांग्रेस से फ्रेंडली चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है. अगर यूपी में गठबंधन टूटता है तो सपा रायबरेली और अमेठी में प्रत्याशी उतार सकती है. ऐसे में अगर दोनों दल एक दूसरे के गढ़ में चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता है.
अमेठी रायबरेली में सपा का कांग्रेस से ज्यादा जनाधार है. अमेठी की पांच विधानसभा में से दो पर सपा का कब्जा है जबकि कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं हैं. वहीं रायबरेली में पांच सीटों में चार पर सपा के विधायक हैं. जबकि आजमगढ़, मैनपुरी, कन्नौज में कांग्रेस का खास प्रभाव नहीं है.