हरदोई| एक फिल्मी गाने की तर्ज पर लिखा जा सकता है कि कितनी हसरत थी कि दिल्ली का हमें प्यार मिले। हरदोई जनपद के कई राजनीतिक दिग्गजों पर यह पंक्तियां सटीक बैठ रही हैं। जनता के दुलार से लखनऊ का सफर तो कई बार तय कर लिया, लेकिन दिल्ली का प्यार पाने की चाहत अभी भी अधूरी ही है। आठवीं बार विधायक चुने गए रामपाल वर्मा हों या फिर गोपामऊ के विधायक श्याम प्रकाश। चार बार जिले की शाहाबाद सीट से विधायक रहे बाबू खां भी इसी श्रेणी में आते हैं। इससे इतर दो ऐसे दिग्गज भी हैं, जो दिल्ली का सफर जनता के जरिए पूरा नहीं कर पाए, लेकिन मजबूत राजनीतिक पैठ ने उन्हें राज्यसभा के लिए दिल्ली पहुंचा दिया।
रामपाल वर्मा
जनपद की बालामऊ विधानसभा सीट से विधायक रामपाल वर्मा की गिनती प्रदेश के वरिष्ठतम विधायकों में होती है। वह आठवीं बार विधानसभा के लिए वर्ष 2022 के चुनाव में निर्वाचित हुए हैं। रामपाल वर्मा की भी हसरत दिल्ली जाने की थी। वर्ष 1996 में वह हरदोई लोकसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसी तरह वर्ष 1999 में वह मिश्रिख लाेकसभा क्षेत्र से लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे। तब लोकतांत्रिक कांग्रेस और भाजपा के बीच गठबंधन था।
श्याम प्रकाश
जनपद की गोपामऊ विधानसभा सीट से विधायक श्याम प्रकाश इसी सीट से लगातार तीसरी बार वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए थे। इससे पहले 1996 और2002 में वह तत्कालीन अहिरोरी सीट से विधायक चुने गए थे। उन्होंने भी विधायक बनने से पहले और विधायक बनने के बाद भी दिल्ली पहुंचने के लिए जोर आजमाइश की। 1996 के लोकसभा चुनाव में वह हरदोई लोकसभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन तब जनता ने उन्हें नकार दिया। इसके बाद वह वर्ष 2009 में मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन यहां भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
बाबू खां
बाबू खां की गिनती सपा के दिग्गज नेताओं में होती है। वर्ष 1991, 1993, 1996 और 2012 में शाहाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए बाबू खां भी दिल्ली जाने की चाहत रखते थे। पहली बार 1991 में निर्दलीय चुनाव जीतकर सियासी विधाई राजनीति के सफर की शुरूआत करने वाले बाबू खां ने वर्ष 2004 में तत्कालीन शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस क्षेत्र के अधीन आने वाली शाहाबाद विधानसभा क्षेत्र से तो उन्हें बढ़त मिली, लेकिन यह इतनी नहीं थी कि उनके लिए दिल्ली पहुंचने का रास्ता खुल पाता पाती और वह चुनाव हार गए।
लोकसभा नहीं जीते पर दिल्ली पहुंच गए नरेश और अशोक
नरेश अग्रवाल और अशोक वाजपेयी ने भी लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए। यह बात और है कि बाद में नरेश अग्रवाल दो बार राज्यसभा के सांसद बने और अशोक वाजपेयी भी भाजपा के जरिए राज्यसभा पहुंचने में सफल रहे। नरेश अग्रवाल हरदोई से सात बार विधायक रहे। 1996 में तत्कालीन शाहाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और 2009 में बसपा के टिकट पर फर्रूखाबाद से चुनाव लड़े। दोनों ही बार हारे, लेकिन बाद में पहले बसपा ने और फिर सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा। अशोक वाजपेयी तत्कालीन पिहानी सीट से छह बार विधायक रहे लोकसभा चुनाव 1984 और 1998 में शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से लड़े। 1984 में धर्मगज सिंह ने और 1998 में राघवेंद्र सिंह ने उन्हें चुनाव हरा दिया।
और इनकी पूरी हुई मुराद
जिले में कुछ ऐसे दिग्गज नेता भी रहे जो पहले विधायक बने, लेकिन बाद में लोकसभा का चुनाव भी जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष रहे गंगा भक्त सिंह विधायक चुने गए थे और संविद सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री बने। वह 1977 में शाहाबाद से सांसद चुने गए थे। इसी तरह 1967 में हरदोई से विधायक रहे धर्मगज सिंह चार बार शाहाबाद से सांसद रहे। वर्ष 1962 में पहली बार विधायक बने परमाईलाल भी 1977 और 1989 में लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।