कांग्रेस से थरूर लेफ्ट जाएंगे या राइट, ‘आजाद’ वाला भी है विकल्प?

कांग्रेस के दिग्गज नेता और चार बार के सांसद शशि थरूर इन दिनों अपनी सियासी भूमिका को लेकर कशमकश की स्थिति से गुजर रहे हैं. कांग्रेस में थरूर खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. राहुल गांधी से मुलाकात कर शशि थरूर ने पार्टी में नजरअंदाज किए जाने की शिकायत की. साथ ही पार्टी में अपने सियासी रोल के बारे में जानने की कवायद की, लेकिन राहुल के दरबार से मायूस और खाली हाथ लौटने के बाद अब थरूर ने बागी तेवर अपना लिया है.

शशि थरूर ने पहले पीएम मोदी के अमेरिका दौरे की तारीफ की और फिर केरल की पिनराई विजयन सरकार की तारीफ करते हुए एक लेख लिखा, तब से कांग्रेस नेताओं के निशाने पर हैं. ऐसे में शशि थरूर ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि वो फिलहाल कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन अगर पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है तो उनके पास दूसरे विकल्प हैं. इस तरह थरूर ने कांग्रेस हाईकमान को सियासी संदेश दे दिया है.

थरूर लेफ्ट जाएंगे या फिर राइट
शशि थरूर ने साफ-साफ पार्टी को बता दे दिया है कि कांग्रेस मेरा इस्तेमाल करना चाहती है तो मैं पार्टी के लिए मौजूद रहूंगा. अगर पार्टी को उनकी जरूरत नहीं तो उनके पास करने के लिए अपने काम भी हैं. थरूर ने कहा कि कांग्रेस को यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है. मेरे पास किताबें, भाषण और दुनिया भर से निमंत्रण हैं. इस तरह उन्होंने बता दिया है कि उनके पास कांग्रेस के सिवा भी काम करना का विकल्प है, जिसके बाद ही सियासी कयास लगाए जा रहे हैं.

डिप्लोमैट से सियासत में आए शशि थरूर को 16 साल हो गए हैं, लेकिन फिलहाल वो नाराज माने जा रहे हैं. शशि थरूर अगर कांग्रेस छोड़ते हैं तो उनकी सियासी राह किस दिशा में आगे बढ़ेगी, लेफ्ट या फिर राइट. लेफ्ट पार्टी में जाएंगे या बीजेपी का दामन थामेंगे. लेफ्ट और राइट के साथ नहीं जाएंगे तो क्या गुलाम नबी आजाद के नक्शेकदम पर चलेंगे और अपनी खुद की पार्टी बनाएंगे. आजाद ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई है और जम्मू-कश्मीर की सियासत में सक्रिय हैं.

शशि थरूर क्या बीजेपी में जाएंगे?
पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे पर राष्ट्रपति ट्रंप के साथ हुए मुलाकात की तारीफ करते हुए देश हित में बताया था. इसके बाद थरूर ने मंगलवार को बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ अपनी फोटो X पर शेयर की, जिसमें ब्रिटेन के ट्रेड सेक्रेटरी जोनाथन रेनॉल्ड्स भी हैं. इसके बाद ही कहा जाने लगा कि शशि थरूर कांग्रेस छोड़ते हैं तो बीजेपी उनका अगला सियासी ठिकाना बन सकती है.

बीजेपी केरल में अपना सियासी विस्तार करने में जुटी है. ऐसे में बीजेपी को एक ऐसे चेहरे की तलाश है, जो केरल की राजनीति में पार्टी को सियासी बुलंदी दे सके. ऐसे में बीजेपी के लिए शशि थरूर मुफीद साबित हो सकते हैं. थरूर भारतीय राजनीति के ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के चेहरे हैं. बीजेपी के साथ जाने पर थरूर को सत्ता में शामिल होने का मौका मिल सकता है. केंद्र में मंत्री बनने का रास्ता बन सकता है. इसके अलावा केरल की राजनीति में बीजेपी का चेहरा बन सकते हैं.

थरूर जिस तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से चार बार के सांसद हैं, वहां पर बीजेपी का अच्छा-खासा जनाधार भी है. पिछले तीन आम चुनाव से तिरुवनंतपुरम सीट पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही है. थरूर भले ही जीतने में कामयाब रहे हों, लेकिन बीजेपी प्रत्याशी भी 3 लाख से ज्यादा वोट पाने में कामयाब रहे हैं. 2024 में थरूर सिर्फ 16,077 वोटों से बीजेपी प्रत्याशी राजीव चंद्रशेखर से जीत सके थे. इस तरह बीजेपी में जाते हैं तो थरूर को तिरुवनंतपुरम सीट पर बहुत ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी.

बीजेपी के साथ जाने पर केंद्र में मंत्री से लेकर केरल की सियासत में चेहरे बनने जैसी तमाम सियासी संभावनाएं बनने के बावजूद शशि थरूर तैयार नहीं है. बीजेपी में जाने की संभावनाओं को थरूर ने सिरे से खारिज कर दिया है. इसकी एक बड़ी वजह वैचारिक मतभेद है. बीजेपी की हार्ड हिंदुत्व वाली राजनीति से अलग थरूर की राजनीति रही है. शशि थरूर की उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष वाली सियासत रही है. थरूर ने कहा भी है कि मैं सांप्रदायिक राजनीति का विरोध करता हूं और आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय में विश्वास रखता हूं. इस तरह थरूर ने बीजेपी में शामिल होने की अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है. इससे साफ है कि थरूर बीजेपी में नहीं जाएंगे.

क्या लेफ्ट का दामन थामेंगे थरूर?
शशि थरूर ने कांग्रेस छोड़ते हैं तो उनका सियासी ठिकाना लेफ्ट पार्टी हो सकती है. ये बात इसलिए कही जा रही है कि हाल ही में थरूर ने केरल के सीएम पिनराई विजयन के अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार की औद्योगिक नीति की तारीफ की थी. शशि थरूर ने अपने लेख में यह भी कहा कि केरल भारत के टेक्नोलॉजिकल और इंडस्ट्रियल चेंज का नेतृत्व करने के लिए अच्छी स्थिति में है. इसी के बाद से ही कहा जा रहा है कि थरूर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. लेफ्ट ने भी थरूर को लेने के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं.

सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता थॉमस इसाक ने कहा कि अगर शशि थरूर कांग्रेस छोड़ते हैं तो वे केरल की राजनीति में अकेले नहीं रहेंगे. उनको अपनी राजनीतिक स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए, लेकिन सीपीआई (एम) के लिए थरूर को स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी (लेफ्ट) ने पहले भी कई कांग्रेसी नेताओं को लिया है. साथ ही कहा कि थरूर के इतने लंबे वक्त तक कांग्रेस में बने रहने को चमत्कार बताया है. इससे साफ जाहिर है कि लेफ्ट थरूर के लिए तैयार बैठी है.

शशि थरूर के लिए लेफ्ट के साथ जाने में किसी तरह की कोई वैचारिक कठिनाई नहीं होगी. केरल की राजनीति दो ध्रुव में बंटी हुई है, एक तरफ लेफ्ट की अगुवाई वाली एलडीएफ है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ है. एलडीएफ में जाने पर उनकी केरल विचारधारा भी बची रहेगी और लेफ्ट में सियासी मुकाम भी मिल सकता है. लेफ्ट में उनके जाने से कांग्रेस को बड़ा सियासी झटका लगेगा, क्योंकि अगले साल केरल में विधानसभा चुनाव हैं. कांग्रेस दस साल से केरल की सत्ता से दूर है और थरूर की लोकप्रियता शहरी वोटों में ठीक-ठाक है.

हालांकि, शशि थरूर जिस तरह की राजनीति करते हैं, उसके चलते लेफ्ट के ढांचे में फिट बैठना आसान नहीं है. वामपंथी सियासत देश में दिन ब दिन सिकुड़ती ही जा रही है. लेफ्ट के साथ जाने में थरूर को सिर्फ केरल की सियासत में ही लाभ मिल सकता है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में अपने मुकाम को बनाए रखना आसान नहीं होगा.

थरूर क्या आजाद की राह पर चलेंगे?
शशि थरूर कांग्रेस छोड़ते हैं और लेफ्ट-राइट दोनों ही सियासी दिशा में आगे नहीं बढ़ते हैं तो उनके पास तीसरा विकल्प गुलाम नबी आजाद की तरह अपना अलग सियासी दल बनाने की होगी. शशि थरूर ने जब से राजनीति में कदम रखा है, वो लगातार चुनाव जीत रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि केरल के शहरी क्षेत्रों में उनका जनाधार है. मोदी लहर में भी तिरुवनंतपुरम जैसी सीट से जीतने में सफल रहे हैं. इससे उनकी लोकप्रियता को समझा जा सकता है.

केरल की करीब 48 फीसदी आबादी शहरी है. इन इलाकों में शशि थरूर की अपनी पैठ मानी जाती है. तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट क तहत सात विधानसभा की सीटें आती हैं, जिस पर थरूर का सियासी प्रभाव काफी तगड़ा है. इसके अलावा केरल 140 में से करीब 50-60 सीटें शहरी क्षेत्र की हैं, जिस पर शशि थरूर अपना प्रभाव रखते हैं.

शशि थरूर को उदारवादी से लेकर कम्युनिस्ट और दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी पसंद करते हैं. ऐसे में अगर शशि थरूर कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस के सत्ता में आने का सपना चूर हो जाएगा. इसका फायदा दूसरी पार्टियों को मिल सकता है. इसके अलावा थरूर अगर कुछ सीटें जीतने में सफल रहते हैं तो किंगमेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं. केरल में तमाम छोटी-छोटी पार्टियां हैं, जिनका आधार एक-दो सीटें पर ही है. वो एलडीएफ या फिर यूडीएफ खेमे के साथ जुड़े हुए हैं. ऐसे में देखना होगा कि थरूर अपना किस दिशा में कदम बढ़ाते हैं?

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