लोकसभा में चर्चित वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पेश कर दिया गया है. एक देश-एक चुनाव विधेयक का जहां सत्ता में शामिल दल समर्थन कर रहे हैं, वहीं इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में हैं. विधेयक के समर्थन और विरोध के इतर 4 दलों का सियासी स्टैंड चर्चा में है.
इसकी वजह दलों का सियासी रुख है. मसलन, जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर आंध्र प्रदेश में विपक्ष की भूमिका में है, लेकिन उसने बिल का समर्थन करने का फैसला किया. इसी तरह मायावती बीजेपी के विरोध में चुनाव लड़ती रही है, लेकिन उनकी पार्टी ने वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन कर दिया है.
ओडिशा वाले नवीन पटनायक भी बिल के समर्थन में रहे हैं. हालांकि, बिल पर वोटिंग के दौरान पार्टी का रुख क्या होगा, इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है. बीजेडी के पास राज्यसभा में 7 सांसद हैं.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी बीजेपी के विरोध की राजनीति करते हैं लेकिन आजाद ने इस बिल का समर्थन करने का फैसला किया है.
विरोध की राजनीति फिर बिल के समर्थन में क्यों?
वाईएसआर ने क्यों दिया समर्थन?
जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में है. पार्टी इस विधेयक को पहले ही राष्ट्रहित में बता चुकी है. वाईएसआर आंध्र की सियासत में सक्रिय है और अभी एनडीए के विरोध की राजनीति कर रही है.
आंध्र में बीजेपी, टीडीपी और जनसेना पार्टी की सरकार है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर जगनमोहन रेड्डी की पार्टी इसके समर्थन में क्यों है?
दरअसल, आंध्र प्रदेश में पहले से ही लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. वाईएसआर आंध्र की ही सियासत करती है तो उसे विरोध करके भी कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है.
जगनमोहन रेड्डी के सामने पार्टी बचाने की भी चुनौती है. आंध्र में हार के बाद वाईएसआर के 2 सांसद पार्टी छोड़ चुके हैं.
नवीन के सामने सांसद बचाने की चुनौती
वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर 3 महीने पहले नवीन पटनायक ने अपना बयान दिया था. पटनायक ने उस वक्त सभी बिल पर स्टडी करने की बात कही थी. इसके बाद पटनायक ने इस बिल पर चुप्पी साध ली है. पार्टी के राज्यसभा सांसद सस्मित पात्रा का कहना है कि अभी हमने इस पर फाइनल फैसला नहीं किया है.
नवीन पटनायक के पास वर्तमान में राज्यसभा के 7 सांसद हैं. पटनायक के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती अपने सांसदों को बचाने की है. 2024 में हार के बाद पटनायक के 2 सांसद पार्टी छोड़ चुके हैं.
कहा जा रहा है कि पटनायक इस मुद्दे पर ज्यादा मुखर होना नहीं चाहते हैं, जिससे वोटिंग के दौरान उनके सभी सांसद एनडीए की तरफ खिसक जाएं.
ओडिशा के सियासी गलियारों में हाल ही में पटनायक की पार्टी के 7 सांसदों के बीजेपी में जाने की खबरें चल रही है. हालांकि, मंगलवार को इन सांसदों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस दावे को खारिज करने की कोशिश की है.
ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव होते रहे हैं और नवीन पटनायक ने ही इसकी पहल की थी. ऐसे में पटनायक खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर सकते हैं.
मायावती के समर्थन देने की वजह क्या है?
मायावती की पार्टी बीएसपी यूपी, एमपी, राजस्थान और पंजाब की सियासत में एक्टिव है. मायावती की पार्टी बीएसपी सभी राज्यों में बीजेपी विरोध में ही चुनाव लड़ती रही है. इसके बावजूद मायावती ने वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन कर दिया है.
मायावती ने बयान जारी कर कहा है कि यह बिल गरीब और मजलूमों के हित में है. मायावती का कहना है कि बिल के आने से चुनाव का खर्च कम होगा और यह बीएसपी के भी हित में है.
मायावती ने 3 बड़ी वजहों से बिल का समर्थन किया है. पहली वजह चुनावी चंदा है. मायावती का कहना है कि उनकी पार्टी को उद्योगपतियों से चंदा नहीं मिलता है, जिसकी वजह से अलग-अलग चुनाव लड़ने में मुश्किलें आती है.
मायावती ने समर्थन का पत्र जारी करते हुए कहा है कि चुनाव एक साथ होने से पार्टी पर बोझ कम होगा.
बिल के समर्थन की दूसरी वजह क्रेडिट की लड़ाई है. 2007 में जब यह मामला उठा था, तब मायावती ने सबसे पहले इसका समर्थन किया था. ऐसे में मायावती इसका विरोध कर क्रेडिट की लड़ाई में पीछे नहीं रहना चाहती है.
वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन की तीसरी वजह मायावती के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. मायावती के पास पूरे देश में वर्तमान में 5 विधायक और जीरो लोकसभा सांसद हैं.
गुलाम नबी आजाद का भी समर्थन
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी इस बिल का समर्थन कर रहे हैं. आजाद की राजनीति बीजेपी विरोध की ही रही है. वर्तमान में आजाद के पास कोई सांसद नहीं है. इसके बावजूद उनका समर्थन सरकार के लिए राहत की बात है.
दरअसल, आजाद की गिनती देश की सियासत में मुसलमानों के बड़े चेहरे के रूप में होती रही है. आजाद वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर बनाई गई कोविंद कमेटी के भी सदस्य रहे हैं.