पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात और अब मुख पत्र सामना में तारीफ… महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में उद्धव ठाकरे के सियासी स्टैंड को लेकर चर्चा है. सवाल उठ रहा है कि 5 साल से बीजेपी पर सियासी मुखर उद्धव ठाकरे को अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अचानक अच्छे क्यों लगने लगे हैं?
वो भी तब, जब शिवसेना (यूबीटी) महाराष्ट्र में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी हैं. 288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र में उद्धव की पार्टी के पास 20 विधायक हैं.
फडणवीस की वजह से ही अलगाव
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (संयुक्त) गठबंधन ने बड़ी जीत दर्ज की. इस चुनाव में बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया, लेकिन इसी बीच उद्धव की पार्टी ने सीएम पद पर पेच फंसा दिया.
उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की डिमांड रख दी, जिसके बाद दोनों का गठबंधन टूट गया. फडणवीस 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री जरूर बने, लेकिन बहुमत न होने की वजह से उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ गई. इसके बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनाए गए.
2022 में उद्धव की पार्टी में टूट हो गई. एकनाथ शिंदे 40 विधायकों को लेकर एनडीए में चले गए. नई सरकार में शिंदे मुख्यमंत्री बने और फडणवीस उपमुख्यमंत्री. उस वक्त शिवेसना तोड़ने का आरोप भी फडणवीस पर ही लगा. कहा गया कि महाराष्ट्र में शिंदे के साथ कॉर्डिनेट करने में फडणवीस ने बड़ी भूमिका निभाई.
2023 में शरद पवार की पार्टी में भी टूट हुई. 2024 के लोकसभा चुनाव में इन सब बगावत के बावजूद शरद पवार और उद्धव के साथ कांग्रेस गठबंधन ने बेहतरीन परफॉर्मेंस किया, लेकिन विधानसभा के चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने बड़ी बढ़त बना ली. फडणवीस इसके बाद फिर मुख्यमंत्री बनाए गए.
उद्धव को फडणवीस अच्छे क्यों लगने लगे?
- नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी- शिवसेना (यूबीटी) विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, लेकिन उसके पास नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पाने के लिए जरूरी 10 प्रतिशत सीटें नहीं है. महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीट है, जहां नेता प्रतिपक्ष के लिए 29 विधायकों की जरूरत होती है.
उद्धव की पार्टी के पास अभी 20 विधायक ही है. उद्धव ने अपने बेटे आदित्य को विधायक दल का नेता नियुक्त किया है. उद्धव की कोशिश अब आदित्य को आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिलाने का है. नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री जैसी सुविधाएं मिलती है.
नेता प्रतिपक्ष का दर्जा सरकार की सलाह पर ही मिल सकता है. सियासी गलियारों में उद्धव की हालिया तारीफ को इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है.
- बीएमसी चुनाव सिर पर- अप्रैल 2025 में बृहन्मुंबई नगरपालिका का चुनाव प्रस्तावित है. बीएमसी ठाकरे परिवार का गढ़ माना जाता रहा है. 1996 से यहां ठाकरे की पार्टी जीत रही है. विधानसभा चुनाव के बाद ठाकरे की नजर मुंबई नगरपालिका चुनाव पर ही है.
आर्थिक दृष्टिकोण से भी मुंबई नगरपालिका काफी अहम है. 2024-25 के लिए बीएमसी का कुल बजट 59,954.75 करोड़ रुपए पेश किया गया था. यह बजट देश के गोवा और त्रिपुरा जैसे 7 छोटे राज्यों से ज्यादा है.
उद्धव की पार्टी फडणवीस की तारीफ कर मुंबई में हिंदुत्व के नैरेटिव को भी बनाए रखना चाह रही है. बीएमसी चुनाव में अधिकांश सीटों पर उद्धव की पार्टी का मुकाबला बीजेपी के बदले शिंदे की सेना और अजित की एनसीपी से होगा.
बीएमसी में पार्षदों की कुल संख्या 236 है, जहां मेयर चुनने के लिए कुल 119 पार्षदों की जरूरत होती है.
- पवार की रणनीति पर चल रहे- शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं. पवार पक्ष में रहे या विपक्ष में, सबको साधकर चलते हैं. कहा जाता है कि उनकी न किसी से सियासी दुश्मनी है और न ही किसी से ज्यादा सियासी दोस्ती.
पवार की राजनीति कैलकुलेशन की है. यही वजह है कि 1998 में सोनिया के खिलाफ बगावत करने वाले पवार 1999 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में आ गए. 2004 में पवार खुद भी मनमोहन कैबिनेट में मंत्री बन गए.
कहा जा रहा है कि उद्धव भी पवार की तरह सबको साधकर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं. यही वजह है कि बार-बार फडणवीस को लेकर उद्धव की पार्टी सॉफ्ट दिख रही है.