उपराष्ट्रपति का दर्द- संवैधानिक पद पर बैठे ‘एक व्यक्ति’ का देश के दुश्मनों में शामिल होना निंदनीय, घिनौना और असहनीय

  • राहुल गांधी का नाम लिए बिना उप राष्ट्रपति ने कहा कि उनके बयानों से हर भारतीय को दुःख हुआ

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी का नाम लिए बिना उनके बयानों और कृत्यों से घोर असहमति दर्ज की। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे ‘एक व्यक्ति’ का देश के दुश्मनों में शामिल होने से ज्यादा निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद भवन में राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम-I के प्रतिभागियों के तीसरे बैच को संबोधित करते हुए कहा “मैं इस बात से दुःखी और परेशान हूं कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्हें न तो हमारे संविधान का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें राष्ट्रीय हित की कोई जानकारी है।” उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि आप जो देख रहे हैं उसे देखकर आपका भी दिल दहल रहा होगा। यदि हम सच्चे भारतीय हैं, और हम अपने राष्ट्र में विश्वास करते हैं, तो हम कभी भी राष्ट्र के दुश्मनों का पक्ष नहीं लेंगे। हम सभी अपने राष्ट्रहित के लिए अंतिम सांस तक कृतसंकल्पित रहेंगे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमेशा याद रखिए कि इस आज़ादी को पाने में, इस आज़ादी की रक्षा करने में और इस देश की रक्षा करने में कितनों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। हमारे भाई-बहन देश की रक्षा में पूरी तरह तत्पर हैं। माताओं ने अपने बेटे खोये हैं, युवा बेटियों ने अपने पति खोये हैं। हम अपने राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते। उन्होंने कहा कि देश के बाहर हर एक भारतीय को इस राष्ट्र का राजदूत बनना होगा। यह कितना दुखद है कि संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति ठीक इसका उलटा कर रहा है। इससे अधिक निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता कि आप देश के शत्रुओं के साथ शामिल हो जाएं। वे स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते। वे यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है।

उन्होंने कहा कि संविधान के संस्थापकों, संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 18 सत्रों में, बिना किसी व्यवधान, बिना उपद्रव, बिना नारेबाजी और बिना कोई पोस्टर लहराए, तीन साल की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। यह संवाद, चर्चा, सकारात्मक बहस और विचार-विमर्श के प्रभावी तंत्र से ही संभव हो सका था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनके सामने जो चुनौतियां थीं वो हिमालयी की दुर्गम चढ़ाईयों से भी ज्यादा कठिन थीं। कई मुद्दे विभाजनकारी थे और सहमति बनाना आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने इसके लिए काम किया, उन्होंने हमारे लिए यह किया। अब, कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं। यह अज्ञानता की चरम सीमा है।

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