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UP BJP : उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के भीतर हाल ही में कुछ जिलाध्यक्षों पर पद दिलाने के नाम पर पैसे वसूलने के आरोप सामने आए हैं, जिससे पार्टी की छवि पर सवाल उठ रहे हैं। फतेहपुर जिले के जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल पर बांदा जिले के भाजपा नेता अजीत कुमार गुप्ता ने आरोप लगाया है कि उन्हें पार्टी में उचित दायित्व दिलाने के नाम पर 50 लाख रुपये पार्टी फंड में जमा करने के लिए कहा गया था, लेकिन यह राशि पार्टी फंड में जमा न करके मुखलाल पाल ने अपने पास रख ली।
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इस मामले के सार्वजनिक होने के बाद भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने संज्ञान लिया है और फतेहपुर जिलाध्यक्ष को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही, तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें प्रदेश महामंत्री अनूप गुप्ता, राम प्रताप सिंह चौहान और प्रदेश मंत्री शंकर लाल लोधी शामिल हैं।इसके अतिरिक्त, पार्टी के भीतर अन्य जिलों से भी इस प्रकार की शिकायतें सामने आ रही हैं, जिनमें पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए पैसे की उगाही की चर्चा है। यह स्थिति भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि पार्टी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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भा.ज.पा. ने अपनी छवि को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए इन आरोपों की गंभीरता से जांच शुरू कर दी है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की योजना बनाई है। पार्टी नेतृत्व का कहना है कि इस प्रकार की गतिविधियों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचता है, और ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाए जाएंगे।
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फतेहपुर जिलाध्यक्ष और कानपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष पर पद के लिए पैसे वसूलने का आरोप लगने के बाद पार्टी विद डिफरेंस का दावा करने वाली भाजपा के दामन पर गहरे दाग उभर आए हैं। इससे पहले निकाय व पंचायत चुनाव में टिकट दिलाने और लोकसभा चुनाव के पहले कुछ जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति में भी पैसे के लेनदेन के आरोप लगे थे। ऐसे में पार्टी के सामने दामन को दागदार होने से बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। फतेहपुर का मामला सार्वजनिक होने के बाद सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। ताजा प्रकरण में बांदा के रहने वाले भाजयुमो के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष अजित गुप्ता ने क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल और फतेहपुर के जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल पर पार्टी फंड के नाम पर उगाही के आरोप लगाए। इस पर प्रदेश नेतृत्व ने सख्ती दिखाई है।
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भाजपा में पैसे लेकर पद देने का ठेका लेने की शिकायत पहली बार नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव से पहले पीलीभीत, मऊ, आजमगढ़ समेत कई जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति के समय कई क्षेत्रीय अध्यक्षों और विधायकों पर पैसा लेने के आरोप लगे थे।
हालांकि, किसी ने सार्वजनिक आरोप नहीं लगाया था। सूत्रों की मानें तो कानपुर ही नहीं, बल्कि अवध, गोरखपुर, काशी और पश्चिम क्षेत्र में पदाधिकारियों की नियुक्तियों में पैसे के लेनदेन की चर्चा है। अंदरखाने भदोही, मऊ, अमेठी, मुरादाबाद, बिजनौर, आजमगढ़ समेत करीब 30-35 जिलों में पैसे लेकर जिलाध्यक्ष बनाने की चर्चा है। कई शिकायतें सीधे दिल्ली पहुंचने की बात भी कही जा रही है।
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तार-तार हुए निष्पक्ष चुनाव के दावे…
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आरोपों की सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन तय है कि निष्पक्ष और पारदर्शी संगठनात्मक चुनाव कराने के भाजपा के दावे तार-तार हो गए हैं।वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार रतनमणि लाल कहते हैं कि जब कोई पार्टी लगातार सत्ता में बनी रहती है तो भ्रष्टाचार के मामले बढ़ने ही लगते हैं। लोगों को लगता है कि सत्ताधारी दल में पद पाने से लाभ तय है। ऐसे में वे हर कीमत अदा करने में संकोच नहीं करते। कांग्रेस पर भी 70-80 के दशक में ऐसे आरोप लगते रहे हैं।
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कमजोर तो नहीं पड़ रही संघ की पकड़…
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लंबे समय से केंद्र और प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा के भीतर पैसे से पद बांटने के आरोप सार्वजनिक होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पहले भाजपा के काडर और राजनीतिक गतिविधियों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की कड़ी नजर रहती थी। अब जिस तरह से पार्टी के आंतरिक अनुशासन में खामियां दिख रही हैं, उससे माना जाने लगा है कि ये संघ की पार्टी पर पकड़ कमजोर होने का संकेत है।