डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) द्वारा हाल ही में जारी वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट इस मायने में और गंभीर हो जाती है कि लाख प्रयासों के बावजूद दुनिया की बहुत बड़ी आबादी को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 2.2 अरब आबादी आज भी पौष्टिक आहार से वंचित है। इसके कारण कुपोषण बढ़ रहा है और लोग बीमारियों का आसान शिकार बन रहे हैं। मजे की बात यह है कि हमारी आदतों के कारण बहुत बड़ी मात्रा में एक ओर भोजन की बर्बादी हो रही है तो हमारी व्यवस्थाओं के चलते बड़ी मात्रा में या तो खाद्यान्न बेहतर रखरखाव के अभाव में खराब हो जाता है या फिर पोस्ट हार्वेस्टिंग गतिविधियों को विस्तारित व काश्तकारों तक तकनीक की पहुंच नहीं होने के कारण खराब हो जाता है। यानी एक ओर हमारी आदतों के कारण तो दूसरी ओर सहेज कर रखने की सही व्यवस्था के अभाव में खाद्यान्न बेकार हो जाता है। इसका सीधे-सीधे खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
यह पहला अवसर नहीं है जब इस तरह की रिपोर्ट जारी हो रही हो, बल्कि आईएफपीआरआई का यह सालाना कार्यक्रम है और प्रतिवर्ष इस तरह की रिपोर्ट जारी होती है। इसमें भी दो राय नहीं कि हालात में सुधार हो रहा है पर जिस तरह का सुधार होना चाहिए था वह हो नहीं हो रहा है। यह किसी एक देश की समस्या हो ऐसा भी नहीं है, कमोबेश यह हालात दुनिया के अधिकांश देशों में है। अंतर इतना भर है कि कम आय वाले देशों में समस्या अधिक गंभीर है। यह तो साफ हो गया है कि कुपोषण के कारण या यों कहें कि पौष्टिक आहार की सहज उपलब्धता नहीं होने के कारण सीधे-सीधे स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार यदि लोगों को पौष्टिक आहार मिलने लगे तो पांच में से एक जान तो आसानी से बचाई जा सकती है। पौष्टिक भोजन नहीं मिलने की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि 14.8 करोड़ बच्चे अविकसित हो रहे हैं तो 4.8 करोड़ बच्चे कम वजनी हो रहे हैं। केवल पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण ही 50 लाख लोग डायबिटिज के शिकार हो रहे हैं। अधिक वजन और मोटापा आम होता जा रहा है। कुपोषण के कारण गैर संचारी बीमारियों की गिरफ्त आते जा रहे हैं।
हालांकि दुनिया के देशों की सरकारें लोगों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए गंभीर है। पर इसके प्रमुख कारणों में से सहज उपलब्धता व पहुंच का अभाव, सामर्थ्य यानी कि गरीबी या पर्याप्त आय नहीं होना है। सबसे अधिक वैश्विक स्तर पर हालात से निपटने के समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। दुनिया के देशों को मांग और आपूर्ति की व्यवस्था को भी देखना होगा। इस सबके साथ हमारी बदलती जीवन शैली जिसमें अपौष्टिक खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन आम होता जा रहा है उस पर भी रोक लगानी चाहिए और जब तक सरकारों के प्रयास सफल नहीं होते तब तक हमें भी हमारी आदतों को सुधारने की पहल करनी ही होगी।
इन सबके साथ दुनिया के देशों के सिविक सेंस को भी सकारात्मक बनाना होगा। कई देशों में होटलों, रेस्ट्रा, सामूहिक आयोजनों सहित विभिन्न आयोजनों में भोजन की बर्बादी रोकने के लिए सक्रियता दिखाई गई है लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे से अधिक नहीं है। ऐसे में हमें अन्न के एक-एक दाने को बचाने के बारे में सोचना होगा। जिस तरह पार्टियों में खाने की बर्बादी होने लगी है, यह अपने आपमें गंभीर है। बुफे के खाने में इसको आसानी से देखा जा सकता है। भले ही यह हालात हमारे देश में हो कि आयोजनों में किस तरह लोग बुफे स्टॉल पर टूट पड़ते हैं, खाने की प्लेट को एक ही बार में भर लेते हैं और फिर जूठन के रूप में डस्टबिन को समर्पित कर देते हैं। यह तस्वीर खाने की बर्बादी को दर्शाती है। कमोबेश यह हालात दुनिया के अधिकांश देशों में देखी जा सकती है।
अब सोचिये इस तरह बर्बाद गया खाना कितने लोगों के पेट भर सकता है। खाने का यह दुरुपयोग आसानी से रोका जा सकता है। इसके लिए प्रकृति या व्यवस्था को दोष नहीं दिया जा सकता। इसी तरह से खेत-खलिहान में व्यवस्था के अभाव में होने वाले कृषि उत्पादों का नुकसान भी कम किया जा सकता है। इस तरह अन्न और खाद्यान्न दोनों की बर्बादी रोकी जा सकती है तो दूसरी ओर यह सब जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने के लिए विश्व खाद्य संगठन व इसी तरह की अन्य संस्थाएं आसानी से कर सकती हैं। सवाल सीधा है कि उपलब्ध खाद्यान्नों से ही समस्या को एक हद तक तो दूर किया जा सकता है। इसके साथ ही दुनिया के देशों की सरकारों को अन्य उपायों पर भी ध्यान देना होगा ताकि लोगों को पौष्टिक आहार मिल सके।