गोरखपुर का दक्षिणांचल यानी बांसगांव। उपेक्षा जिसकी नियति और पलायन परिणति रही। बदलाव का सूर्योदय आज यहां अपनी आभा बिखेर रहा है। गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन पर फर्राटा भरती गाड़ियां विकास की तस्वीर दिखाती हैं। नदियों पर बने पक्के पुल पिछड़ेपन के दाग धो रहे हैं।
अनुसूचित जाति के लिए 62 वर्षों से सुरक्षित बांसगांव लोकसभा सीट पर भाजपा से कमलेश पासवान चौथी बार मैदान में हैं। कांग्रेस के सदल प्रसाद पिछले चुनावों में हार का हवाला देकर सहानुभूति के सहारे संसद पहुंचना चाहते हैं। वहीं, बसपा के डा. रामसमुझ सर्वजन हिताय के नारे संग काडर वोटर जोड़ जीत के समीकरण गढ़ रहे हैं।
महाडीह गांव के सामने मिले पिंटू शुक्ला कहते हैं कि अब सन्न से गोरखपुर पहुंच जाते हैं। फोरलेन को वह इस कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि बताते हैं, लेकिन गुणवत्ता में कमी को भी बराबरी से उठाते हैं। चुनावी माहौल पर बोले- ‘लोग मोदी-योगी को देख रहे हैं। जो भी काम हुए हैं उन्हीं की देन है।’ बेलीपार में मिले चंचल त्रिपाठी कहते हैं-’चंदा घाट पुल बनने से राहत जरूर मिली है। बेरोजगारी और महंगाई बड़ा मुद्दा है।’
हरदिया के रामसेवक कहते हैं कि बेसहारा पशुओं को लेकर बातें तो बहुत हुईं, लेकिन धरातल पर असर नजर नहीं आया। गांव में घुस आने वाले मवेशी बच्चों और महिलाओं पर हमला कर जख्मी भी कर रहे हैं। आगे बांसगांव में देवव्रत सिंह इशारों में नाराजगी का जता देते हैं। कहते हैं कि पानी जब रुक जाता है तो सड़ने लगता है, इसलिए बहाव होते रहना चाहिए।
यहां से गोला पहुंचने पर मिले बनकटा के नीशीथ राय कहते हैं- “ऊसर भूमि पर औद्योगीकरण की नींव पड़ गई है, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। आप धुरियापार जाकर देखिए। एथेनाल प्लांट चमक रहा है। सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला है। भाजपा बम-बम करके निकल रही है।’
नीशीथ की बात खत्म होती इसके पहले कपड़ा व्यापारी चंद्रप्रकाश गुप्ता बोल पड़े- ‘जरा गोला-हाजीपुर पुल भी पूछ लीजिए। पाए बन चुके हैं, तीन खाने का छत भी लग चुका है, लेकिन पुल अधूरा है। यह बन जाता तो वाराणसी, इलाहाबाद जाना आसान हो जाता। बड़हलगंज में जाम के झाम से निजात तो मिल ही जाती गोरखपुर से दूरी भी करीब 30 किमी घट जाती।’ बिजुलियाडाड़ के उमाशंकर नीशीथ की बात से सहमत थे।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे को उन्होंने सांसद के इस कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। कहा, जिन लोगों को इस सरकार में काम नजर नहीं आ रहा, उन्हें उन सड़कों को भी याद करना चाहिए जो सालों-साल गड्डे में बदली नजर आती थी। आज दोहरीघाट से सहजनवां रेललाइन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। क्या यह विकास का सूर्योदय नहीं है।
लोग घरे रोजगार करत हवें
बड़हलगंज में मड़कड़ी के राणा प्रताप सिंह कहते हैं कि बरसात में जैसे ही नदी बढ़ती है, इलाके के 30 गांवों में बाढ़ आ जाती है। तीन-चार महीने लोगों को मवेशियों के साथ बंधे पर रहना पड़ता है। इसके समाधान के लिए वर्षों से आछीडीह-सरया बांध के निर्माण की मांग चल रही है, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
बरहज के कपरवार से लेकर पैना तक चुनावी हवा इस बार बदली नजर आ रही है। यहां बाजार से आगे मिले संन्यासी ने ‘बोल धड़ाधड़ा सीताराम’ से अभिवादन किया। चुनावी माहौल पूछा तो बोल पड़े- ‘लोग उ दिनवा भुला गइलें जब इहां से बैंकाक जात रहलें और मच्छरदानी में भूजा बेचकर घरे रुपया भेजत रहलें। अब त लोग विदेश से आकर घरे रोजगार करत हवें।’
युवाओं को जोड़ रहा स्टेडियम
रुद्रपुर में बना स्टेडियम युवाओं को जोड़ रहा है। बसडीला के शिवेश और दिपांशु बताते हैं कि सड़कें अच्छी हो गईं, दुनिया में देश का नाम भी हो रहा है। यहां गरीबों को आवास और राशन भी मिल रहा है। हमें लगता है ये मुद्दे ही एक बार फिर सरकार बना देंगे। चौरीचौरा के आगे भोपा बाजार में रजनीकांत मद्देशिया महंगाई से त्रस्त नजर आए। बेरोजगारी का मुद्दा भी उठाया। कहा- ‘यहां के नेताजी भी बस चुनाव के समय नजर आते हैं, बाकी समय अपना कारोबार बढ़ाते हैं।’