शोले फिल्म में गब्बर सिंह व्यंग्य से कहता है, ठाकुर ने अब हिजड़ों की फौज बनाई है. जिस हिजड़ा या किन्नर समुदाय को इतना हीन समझा गया, उसे सम्मान दिया तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने. उन्होंने इस समुदाय की वाकई फौज बना दी. रेवंत रेड्डी के मंत्रिमंडल ने निर्णय किया कि ट्रांसजेंडर्स को राज्य के कुछ बड़े शहरों में ट्रैफिक को कंट्रोल करने का अवसर दिया जाए.
राजधानी हैदराबाद में अब ट्रैफिक कंट्रोल के लिए इन ट्रांसजेंडर्स को नियुक्त भी कर दिया गया है. जिन चौराहों पर ये ट्रांसजेंडर्स भीख मांगा करते थे, उन्हीं चौराहों पर वे शान से ट्रैफिक को कंट्रोल कर रहे हैं. यह उनके लिए गौरव की बात है. भीख मांग कर खाने की बजाय सम्मान के साथ नौकरी करते हुए जीना गौरव की बात है. निश्चय ही तेलंगाना सरकार का यह फैसला सदियों से अपमानजनक जिंदगी जी रहे ट्रांसजेंडर्स के लिए एक नया जीवन है.
अर्धनारीश्वर शिव और शिखंडी
भारतीय परंपरा में हिजड़ा, किन्नर या ट्रांसजेंडर्स को मुख्यधारा में सदैव रखा गया है. इसका आभास हमें शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप में मिलता है. इसके अलावा महाभारत में शिखंडी एक ऐसा ही पात्र है, जिसे ट्रांसजेंडर्स कहा जा सकता है. यद्यपि वह पुरुष वेश में रहता है, किंतु पितामह भीष्म उसकी वास्तविकता जानते हैं. इसीलिए वे अर्जुन से कहते हैं, मुझे पराजित करने के लिए शिखंडी को आगे कर मुझ पर पीछे से बाण चलाना, मैं हथियार रख दूंगा. मिथक में उसे पिछले जन्म की स्त्री बताया गया है, जो भीष्म से बदला लेने के लिए ही पुरुष के रूप में जन्म लेती है. कुछ भी हो लेकिन यह तो पता ही चलता है कि भारतीय परंपरा में ट्रांसजेंडर्स मौजूद थे. इतिहास में यह भी पता चलता है कि राजमहलों में इनकी नियुक्ति रनिवास में रहती थी, जो रानियों का मन-बहलाव करते थे.
अर्जुन का बृहन्नला स्वरूप
महाभारत में अर्जुन की गिनती सर्वाधिक बहादुर योद्धाओं में होती है. किंतु अज्ञातवास के दौरान वे एक किन्नर (बृहन्नला) बन कर राजकुमारी उत्तरा की सेवा में रहे थे. इससे यह तो जाहिर ही है कि वीर योद्धा पुरुषों में भी स्त्री रूप में रहने की इच्छा होती रही है. आज का समाज मनुष्यों के दो ही लिंगों की पहचान स्पष्ट करता है. या तो वह व्यक्ति स्त्री हो अथवा पुरुष. किसी तीसरे जेंडर की मान्यता हमारे समाज में नहीं रही है.
हालांकि अब तीसरे जेंडर को मान्यता मिलने लगी है. फिर भी यूरोप की अनुदारवादी राजनीतिक दल ट्रांसजेंडर को मान्यता नहीं देते. खुद अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ट्रांसजेंडर को सिरे से रिजेक्ट करते हैं. समाज के एक बड़े वर्ग में समान लिंग वाले के प्रति झुकाव होता है. ऐसे लोगों को होमो-सेक्सुअल कहा जाता है. होमो-सेक्सुअलिटी पर लोक लाज की वजह से वे इसे जाहिर नहीं कर पाते.
हरम की रक्षा ख्वाजा सरा करते थे
कुछ सदी पहले मुगल काल में हरम की रक्षा ख्वाजा सरा किया करते थे. चूंकि हरम में बादशाह के अलावा किसी भी पुरुष के प्रवेश के प्रवेश की मनाही थी, इसलिए हरम की रक्षा के लिए किन्नर तैनात होते थे, जिन्हें ख्वाजा सरा कहा जाता था. कई बार बादशाह खुश हो कर इन्हें रियासतें भी प्रदान करते थे.
18वीं सदी में कानपुर की रियासत ख्वाजा अल्मास अली को दी गई थी. उसकी रियासत बहुत बड़ी थी. फर्रुखाबाद से लेकर कोड़ा जहानाबाद तक. उसके बनाये किले आज भी मौजूद हैं. अल्मास अली पंजाब के भटिंडा का रहने वाला था. उसने अपनी मदद के लिए अपने भानजे भागमल जाट को बुला लिया. अंग्रेजों द्वारा कानपुर को अपने अधीन लेने के पूर्व कानपुर का अंतिम शासक यही परिवार था. इटावा-कानपुर मार्ग पर एक गांव खोजा फूलपुर है, जिसे अल्मास अली ने बसाया था. अंग्रेजों ने जब बाजीराव पेशवा द्वितीय को हराया तो उन्हें निर्वासन पर भेज दिया. उन्हें इसी अल्मास अली की जागीर दी गई.
भारतीय परंपरा में किन्नर समादृत रहे हैं
1818 में जब बाजीराव पेशवा को कानपुर लाया गया, तब राजा भागमल जाट की रियासत से रमेल के 120 गांव काट कर पेशवा को दिए गए और आठ लाख रुपए सालाना की पेंशन भी. 1857 के स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण अंग्रेजों ने उनके बिठूर किले पर क़ब्ज़ा कर लिया. पराजित पेशवा पूरे परिवार के साथ कहीं चले गए. अंग्रेजों ने रमेल की जागीर फिर से राजा भागमल जाट को वापस कर दी. राजा भागमल का परिवार आज भी कानपुर में रह रहा है.
इस तरह यह तो कहा ही जा सकता है कि ट्रांसजेंडर्स अथवा हिजड़े भारतीय परंपरा में समादृत रहे हैं. अलबत्ता विक्टोरियन युग में योरोपीय समाज ट्रांसजेंडर्स से नफरत करता रहा है. इसीलिए भारत में भी उन्होंने ट्रांसजेंडर्स को समाज से बाहर कर दिया. उनकी स्थिति सबसे खराब हो गई. उन्हें स्त्री-पुरुष दोनों जेंडर से बाहर कर बहिष्कृत कर दिया गया.
अंग्रेजों के शासन में किन्नरों को बहिष्कृत किया गया
भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान हिजड़ों के लिए समाज में सम्मान से जीने के सारे रास्ते बंद हो गए. अब वे शादी-विवाह में या किसी के घर संतान की जन्म में नाच-गाकर भीख मांगने लगे. जिस परिवार में कोई बच्चा ट्रांसजेंडर पैदा हो गया, परिवार उसे उपेक्षित कर देता था. उस बच्चे को यही हिजड़ों का समुदाय ले जाता और उसका पालन-पोषण करता. इस समुदाय का भविष्य बस भीख पर ही केंद्रित था. उसको अपने माता-पिता की संपत्ति में कोई हिस्सा न मिलता और न ही कानून उसका साथ देता. ऐसी स्थिति में हिजड़ों के लिए समाज में कोई सम्मानजनक स्थिति नहीं थी. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से वे अपने अधिकारों के लिए निरंतर लड़ रहे हैं. डॉ. लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, जो खुद इसी समुदाय से है. उन्होंने इस समुदाय को समाज में सम्मानजनक स्थिति के लिए खूब संघर्ष किया.
2014 के कानून से इनको राहत मिली
ट्रांसजेंडर और हिजड़ा यूं तो एक दूसरे के पर्याय हैं. किंतु हिजड़ा अपने को जन्मजात मानते हैं. यानी वह लोग जिनका उनके जन्म के समय लिंग स्पष्ट नहीं था. वे न स्त्री थे न पुरुष. ट्रांसजेंडर वे हैं, जिन्होंने अपने झुकाव के चलते अपना लिंग परिवर्तन कर लिया. लेकिन व्यावहारिक रूप से दोनों में एकरूपता है. बस ट्रांसजेंडर को वह उत्पीड़न नहीं सहन करना पड़ता जो हिजड़ा समुदाय को सहन करना पड़ता है. उपेक्षा, दुर्दशा और बंधुआ मजदूर बन कर हिजड़ा या किन्नर को अपनी जिंदगी बितानी पड़ती है. वर्ष 2014 को एक कानून बना कर इस समुदाय की स्थिति बेहतर की गई. मध्य प्रदेश में इनकी गिनती पिछड़ी जाति के रूप में की गई और इन्हें ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का लाभ भी दिया गया. किंतु इसका प्रमाण पत्र बनवाना आसान नहीं था.
समान लिंग के प्रति आकर्षण सभ्यता की शुरुआत से
समान लिंग के प्रति आकर्षण जब बहुत अधिक बढ़ जाता है तो कई लोग अपना लिंग परिवर्तन भी करवा लेते हैं. और अपने मन पसंद पुरुष या स्त्री से विवाह भी. ऐसे लोग भी दो तरह के होते हैं. पुरुष का पुरुष के प्रति सेक्स की प्रबल इच्छा वाले लोगों को गे और स्त्री का स्त्री के प्रति खिंचाव रखने वालों को लेस्बियन कहा जाता है. मनुष्य के अंदर की ये इच्छाएं कोई नयी नहीं हैं बल्कि संभवतः सभ्यताओं की शुरुआत से ही ऐसे मनुष्यों के वर्णन मिलते हैं. भित्ति कलाओं और मूर्तियों के रूप में ये मौजूद हैं. इसके अलावा मिथकीय कथाओं में भी इनका जिक्र मिलता है. लेकिन हिजड़ा समाज की अपनी इच्छाओं और रुचियों के प्रति समाज ने चुप साध ली. उनको समझने की कोशिश कभी नहीं की गई.
पुनर्वास की पहल सराहनीय
तेलांगना सरकार ने इनके पुनर्वास की कोशिश की है. चौराहों पर ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए इन्हें इस बात की पूरी ट्रेनिंग दी गई. भले उन्हीं चौराहों पर भीख मांग कर वे ज्यादा कमाई कर लेते रहे हों किंतु सम्मान के साथ जीने का आनंद ही अलग है. यह समुदाय इस बात को महसूस कर रहा है. किसी गुरु हिजड़े का बंधुआ बन कर ये लोग एक रहस्य के आवरण में रहते थे. किंतु जब इनको सरकारी जॉब मिलेगी तब ये हिजड़ा समाज से भिन्न अन्य लोगों की तरह रहेंगे. फिर कोई हिजड़ा या किन्नर का उपहास नहीं उड़ा सकेगा. देश की दूसरी सरकारों को भी चाहिए कि वे हिजड़ा समाज को मुख्य धारा में नौकरियां दिलाने की पहल करें.