लखीमपुर। बीते 20 दिन का समय ग्रामीणों, वन कर्मियों और एक बाघिन के लिए भारी पड़ गया। चटकती धूप में भूख-प्यास से व्याकुल व आशियाने के लिए संघर्ष कर हिंसक हुए बाघ अब ताबड़तोड़ हमला करने लगे हैं। बाघ के हमले में एक ग्रामीण की असमय मौत हो गई। वहीं, पांच लोग इनके हमलों में गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। एक बाघिन भी गेहूं के खेत में दम तोड़ चुकी है। मानव एवं वन्यजीव के संघर्ष को थामने में लगा वन विभाग हर मोर्चे पर फेल साबित हो रहा है।
29 मार्च को महेशपुर के ग्राम परेली निवासी राजकुमार को, 24 मार्च को गोला रेंज के ककलापुर निवासी होमगार्ड राधेश्याम को, सात अप्रैल को कोरैया निवासी मनोज और कमलेश, इसके बाद देखने वालों में शामिल अलियापुर निवासी योग शिक्षक शशिकांत दीक्षित को हमलावर बाघ ने घायल कर दिया है। 12 अप्रैल को घायल हुए हरैया निवासी रामू गौतम की मौत हो गई है।
26 मार्च को मिला बाघिन का शव
उधर, महेशपुर की बाघ बाहुल्य बीट देवीपुर के ग्राम पर्वस्त नगर में 26 मार्च को बाघिन का शव मिला था, जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण पता न चलने पर बिसरा पिजर्व किया गया था। महेशपुर व गोला रेंज के खेतों से गन्ने की फसल कटने के बाद से बाघ-बाघिन सुरक्षित स्थान के लिए दर-दर भटक रहे हैं। स्थिति यह हो गई है कि खेतों में आए दिन बाघ घूमते दिखाई देते हैं।
महेशपुर के परेली गांव में बाघ ने एक छोटी सी बाग में डेरा जमा लिया है। एक-दो किलोमीटर की दूरी पर बाघों के मूवमेंट से ग्रामीणों का डर बढ़ता जा रहा है। खेतों में काम करने जाने वाले किसानों की संख्या लगातार घटती जा रही है।
क्या कह रहे अधिकारी?
अधिकारियों का कहना है कि बाघों की मौजूदगी वाकई चिंता का विषय है, लेकिन बाघों को जंगल की ओर मोड़ना आसान नहीं है। डीएफओ संजय विस्वाल ने रेंजर व अन्य कर्मियों को निर्देश दिया है कि वह गांवों में जाकर लोगों को जागरूक करें, ताकि घटनाओं को रोका जा सके। किसानों को खेतों में जाना है तो वह समूह में जाएं।