इस बार बदलेगा चलन या मिलेगी सत्ताधारी दल को सीट और महिला विधायक

देहरादून । उत्तराखंड गठन के बाद से हमेशा उपचुनाव में सत्ताधारी दल बाजी मारती आई है। इस बार के बागेश्वर उपचुनाव राज्य भाजपा संगठन के साथ-साथ मुख्यमंत्री धामी के लिए भी खास मायने हैं। इस बार चलन बदलेगा या मिलेगी सत्ताधारी दल को सीट और महिला विधायक मिलेगी, यह देखने वाली बात होगी।

इस कसौटी पर खरे उतरने के लिए मुख्यमंत्री कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। गुटबाजी में बटी कांग्रेस के लिए खोई जमीन तलाशने का यह मौका होगा। प्रचार के अंतिम चरण में दोनों दल भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

बागेश्वर को कुमाऊं मंडल की काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे लोग बागनाथ के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के नाम से ही जिले का नाम बागेश्वर पड़ा है। बागेश्वर निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। वर्ष 2002 में यहां पहली बार हुए चुनाव हुए। तब कांग्रेस के रामप्रसाद टम्टा ने इस सीट से जीत हासिल की थी। दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा के चंदन रामदास खासे अंतर से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2012, 2017 और 2022 के चुनाव में भी चंदन रामदास ने इस सीट पर जीत हासिल की थी।

बागेश्वर विधानसभा सीट से विधायक रहे पूर्व मंत्री चंदन रामदास का इस साल अप्रैल में निधन हो गया था। इसके बाद से यह सीट खाली चल रही थी। भाजपा ने जहां सहानुभूति कार्ड खेलकर चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को चुनाव मैदान में उतारा है।

उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद चाहे पिथौरागढ़ का उप चुनाव हो या थराली का या चंपावत का। सभी उप चुनाव सत्ताधारी दल की झोली में गए हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री धामी बागेश्वर उप चुनाव को भी हर हाल में जीतना चाहते हैं। इस उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पूरे दमखम के साथ मैदान में डटे हुए हैं। यह उपचुनाव सत्ताधारी दल भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। हालांकि पार्टी उपचुनाव में भी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है। फिर भी भाजपा किसी तरह का रिस्क ना लेते हुए चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास पर ही भरोसा जताया है। उपचुनाव में सहानुभूति फैक्टर भी चलेगा।

कांग्रेस इस सीट पर वर्ष 2007 से लगातार हार का सामना करती आ रही है। इस बार वह बाहरी उम्मीदवार को लाकर खोई जमीन तलाश कर रही है। कांग्रेस के उम्मीदवार एन मौके पर भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने आनन फानन में बाहरी उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के बसंत कुमार को कांग्रेस में शामिल कराकर चुनाव मैदान में उतारा है।

कांग्रेस उम्मीदवार बसंत कुमार वर्ष 2017 का चुनाव बसपा से लड़े। वर्ष 2022 के चुनाव में एक बार फिर उन्होंने पाला बदला। आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़े। इस बार कांग्रेस का दामन थाम कर वे चुनाव मैदान में हैं। उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच ही टक्कर मानी जा रही है।

मुख्यमंत्री धामी के अलावा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, मंत्री सुबोध उनियाल, मंत्री विकास बहुगुण, रेखा आर्य, सांसद अजय टम्टा,सतपाल महाराज सहित भारी भरकम संगठन के पदाधिकारी सहित कई नेता बागेश्वर में कैम्प कर रहे हैं।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत कई पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने उम्मीदवार के समर्थन में बागेश्वर में जमे हुए हैं।

चंदन रामदास के व्यवहार की कायल थी जनता –

वर्ष 2022 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार चंदन रामदास ने 12,141 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। चंदन रामदास को 32,211 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार रंजीत दास को 20,070 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बसंत कुमार तीसरे नंबर पर रहे थे। अप्रैल 2023 को मंत्री चंदन रामदास के निधन के बाद से सीट खाली चल रही थी।

मंत्री चंदन रामदास के सौम्य व्यवहार के कारण बागेश्वर की जनता उनकी काफी नजदीक रही है। यह भी कहा जाता है कि यहां 5 प्रतिशत प्रत्याशी का वोट होता है जबकि 95 प्रतिशत वोट पार्टी को पड़ते हैं। अब इनमें से कितने वोट कांग्रेस को और कितने भाजपा को जाते हैं, यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा। हालांकि लगातार चार बार भाजपा विधायक की जीत ने पार्टी को बागेश्वर में मजबूत किया है। अब महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारने से महिलाओं के वोटों में भी और अंतर आ सकता है।

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