उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का औपचारिक ऐलान हो गया है. इन सभी 9 सीटों पर 13 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे. बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन बसपा ने भी उपचुनाव में ताल ठोक दी है. लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने वाली बसपा प्रमुख मायावती के सामने उपचुनाव में खाता खोलने की ही चुनौती नहीं है बल्कि 14 साल बाद उपचुनाव में जीत हासिल करने का चैलेंज है.
दलित-शोषित और वंचित समाज के सहारे कभी सत्ता की सियासी बुलंदी छूने वाली बसपा के लिए अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. लोकसभा के बाद हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों से यह बात साफ हो गई कि बसपा प्रमुख मायावती की पकड़ दलित समुदाय पर ढीली होती जा रही है. ऐसे में बसपा ने यूपी उपचुनाव में अकेले सभी 9 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है. मायावती ने जातीय समीकरण देखते हुए प्रत्याशी भी तय कर लिए हैं, लेकिन देखना है कि उपचुनाव के सियासी मझधार में बसपा की नैया कैसे पार होती है?
बसपा ने किस सीट से किसे दिया टिकट?
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि बसपा उपचुनाव में यह प्रयास करेगी कि उसके लोग इधर-उधर न भटकें. वह पूरी तरह से बसपा से जुड़कर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के आत्मसम्मान और स्वाभिमान कारवां के सारथी बनकर शासक वर्ग बनने का मिशनरी प्रयास जारी रखें. यूपी में नौ विधानसभा की सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी बीएसपी अपने उम्मीदवार उतारेगी और यह चुनाव भी अकेले ही अपने बलबूते पर पूरी तैयारी एवं दमदारी के साथ लड़ेगी.
बसपा विपक्ष में रहते हुए उपचुनाव से दूरी बनाए रखती थी, लेकिन अब किस्मत आजमाने का फैसला किया है. यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर बसपा उपचुनाव लड़ेगी बसपा ने फूलपुर में शिवबरन पासी, मीरापुर से शाहनजर, सीसामऊ से रवि गुप्ता, कटेहरी से जीतेंद्र वर्मा, मझवां से दीपक कुमार तिवारी उर्फ दीपू, गाजियाबाद से रवि गौतम और करहल से रमेश शाक्य बौद्ध को प्रभारी बनाया है, जिन्हें बाद में प्रत्याशी घोषित किया जा सकता है कुंदरकी और खैर सीट पर बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं
बसपा ने आखिरी उपचुनाव 2010 में जीता
उत्तर प्रदेश में बसपा ने अपना आखिरी उपचुनाव 2010 में जीता था, जब मायावती के सत्ता में रहते हुए सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट पर हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी खातून तौफीक ने बीजेपी को 15 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था इसके बाद मायावती ने खुद अपनी सरकार में हुए उपचुनाव में भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी को नहीं उतारा बसपा उपचुनाव से दूरी बनाए रखती थी, लेकिन 2022 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मायावती ने अपना उम्मीदवार उतारा था. बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भले ही चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन ढाई लाख के करीब वोट हासिल करके सपा का सियासी गेम बिगाड़ दिया था इसके बाद यूपी में हुए उपचुनाव में बसपा ने कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा
लोकसभा चुनाव के बाद यूपी की सियासी स्थिति बदल गई है मायावती की पार्टी का खाता नहीं खुला और वोट शेयर कांग्रेस के वोट शेयर से भी नीचे आ गया था कांग्रेस ने 17 लोकसभा सीटों पर लड़कर 9.46 फीसदी वोट शेयर पाया, जबकि बसपा को 79 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 9.39 फीसदी ही वोट मिला. बसपा को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान इंडिया गठबंधन ने किया, क्योंकि दलित समुदाय का वोट सपा और कांग्रेस को मिला है इससे पहले बसपा का वोट बीजेपी के हिस्से में जाता रहा 2012 के बाद से लगातार बसपा का आधार कमजोर हुआ है और दलित समुदाय को जोड़े रखने के लिए ही मायावती उपचुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला किया है
यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव है, उनमें से एक भी सीट बसपा 2022 के चुनाव में नहीं जीत सकी थी 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत मिली थी, जहां से उमा शंकर सिंह विधायक बने हैं लोकसभा में एक भी सांसद बसपा का नहीं है ऐसे में बसपा के लिए उपचुनाव में खाता खोलने की चुनौती खड़ी हो गई है यूपी उपचुनाव से भले ही सत्ता का कुछ बनने और बिगड़ने वाला न हो, लेकिन 2027 का सेमीफाइनल जरूर माना जा रहा है
बसपा की स्थिति करो या मरो वाली
बसपा उपचुनाव में भले ही अकेले मैदान में उतरी हो, लेकिन सीट के जातीय समीकरण के लिहाज से उम्मीदवार उतारे हैं सूबे की जिन सीटों पर उपचुनाव हैं, उसमें मझवां, कटेहरी, मीरापुर जैसे विधानसभा सीटों पर बसपा का अपना सियासी दबदबा रहा है. मझवां सीट पर बसपा 5 बार जीतने में कामयाब रही है, जबकि सपा अभी तक खाता नहीं खोल सकी इसी तरह मीरापुर और कटेहरी सीट भी सपा की तुलना में बसपा के लिए ज्यादा मुफीद रही है इतना ही नहीं दलित वोटों के लिहाज से भी अहम है
यूपी के उपचुनाव में बसपा की स्थिति करो या मरो वाली है बसपा उपचुनाव में अगर एक भी सीट जीतना चाहती है तो उसे एक तरफ से सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन से मुकाबला करना है, तो दूसरी तरफ बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए से दो-दो हाथ करना होगा इसीलिए उपचुनाव में बसपा के सामने सिर्फ खाता खोलने की ही नहीं बल्कि दलित समुदाय के वोटों को भी वापस लाने की चुनौती है ऐसे में देखना है कि मायावती का दांव कितना कारगर रहता है