भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा यहां “श्रावणी” शब्द रक्षाबंधन के अर्थ में है न कि उत्सर्ग-उपाकर्म –त्योतिषाचार्य

छ्बीले चौहान ब्यूरो
जय वार्ष्णेय
की रिर्पोट

इस्लामनगर: ज्योतिषाचार्य पंडित राहुल भारद्वाज ने बताया रक्षाबंधन बंधन का शुभ मुहूर्त जानें शास्त्रोक्त प्रमाण के साथ।
आचार्य राहुल भारद्वाज ने बताया की अबकी बार रक्षाबंधन को लेकर काफी भ्रांतिया फैली हुई हैं आइये जानते हैं आचार्य राहुल जी से शास्त्र कहते हैं। भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा यहां “श्रावणी” शब्द रक्षाबंधन के अर्थ में है न कि उत्सर्ग-उपाकर्म के अर्थ में। लेकिन शास्त्रों के अनुसार भद्रा के समय काल में रक्षाबंधन का पर्व राखी बांधना विशेष रूप से वर्जित है।

आचार्य राहुल भारद्वाज ने कहा की याद रहे भद्रा चांहे कहीं भी हो स्वर्ग,पाताल,या भूमि पर इसमें रक्षाबंधन निषेध ही माना जाता है। बाकी अन्य कार्य देखते हुए आप निर्णय ले सकते हैं।

पुरुषार्थ चिंतामणिकार में भद्रा के सबन्ध में दो नियम बताए गए हैं।
यदा द्वितीयापराह्नात् पूर्व समाप्ता, तदापि भद्रायांद्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी इति।

भद्रायांनिषेधादुत्तरैव तत्रतिथ्यनुरोधेन अपराह्नात्पूर्वम् अनुष्ठाने
अपराह्नस्थ सर्वेथा बाधापत्तेः,
अपराह्ने ज्योतिश्शास्त्रप्रसिद्ध – तिथ्यभावेऽपि साकल्य- बोधित – तिथि -सत्त्वात्तत्रेव अनुष्ठानम् ।

अर्थात पहले दिन पूर्णिमा के अपराह्न में भद्रा हो और दूसरे दिन पूर्णिमा त्रि मुहूर्त व्यापिनी हो तो, और चाहे भद्रा अपराह्न से पूर्व ही समाप्त हो जाए तो भी दूसरे दिन अपराह्न में ही रक्षाबंधन किया जाता है। क्योंकि उस काल में साकल्यापादित पूर्णिमा का अस्तित्व रहेगा।

यदा तूत्तरत्र मुहूर्त्तद्वय त्रय मध्ये किञ्चित् यूनापौर्णमासी, तदापराह्ने सर्वथा तद्भावत्, प्रदोषे- पश्चिमो यामौ दिनवत् कर्म चाचरेत्, इति पराशरात् भद्रान्ते सत्प्रदोषयामेऽनुष्ठानम् “अर्थात दूसरे दिन पूर्णिमा त्रिमुहूर्तव्यापिनी न हो तो इस दिन में अपराह्न में साकल्यापादित पूर्णिमा भी नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में पहले दिन ही भद्रा समाप्ति के बाद प्रदोष के उत्तरार्ध में ही राखी बांधी जाएगी ।

इस संवत् २०८० में द्वितीय श्रावण शुक्ल पूर्णिमा ३०.८.२३ को प्रातः १०:५६ बजे से प्रारम्भ है और ३१.८.२३ को प्रातः ०७:०६ बजे समाप्त होगी, भद्रा का समय ३० तारीख को, प्रात १०:५६ से रात्रि ०६ : ०२ तक है। ३१.३.२३ को पूर्णिमा मात्र ०१ घटी ५२ पल है जो की त्रि मुहूर्त अप से कम है, अपितु उपरोक्त नियम संख्या २ के अनुसार इस दिन रक्षाबंधन करना उचित नहीं है, अतः ३०.८.२३ को ही भद्रा को का समय काल छोड़ते हुए प्रदोष में ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया दिन जायेगा !रक्षाबंधन पर्व ३०.८.२३ को ही प्रदोषकाल में भद्रा पश्चात् रात्रि ०९:०२ के बाद में मनाया जायेगा।

रक्षाबंधन ३०.८.२०२३ को रात्रि ९:०२ से ३१.८.२०२३ को प्रात:७:०६ मि० से पहले ही मान्य रहेगा । जानें क्यों रहेगा
वर्तमान कुछ समय से एक अजीब प्रथा चल रही है। जो तिथि सूर्योदय के समय व्याप्त हो उस तिथि का पर्व उसी दिन मतलब उदया तिथि में कर लो, परन्तु यह एक नियम सब व्रत पर्वों में लागू नहीं होता, जैसे दीपावली आप प्रदोष में रात्रि में ही मनाते हैं, रावण के दहन भी संध्याकालिक समय में ही होता है, जन्माष्टमी पर्व ना) मध्यरात्रि निशीथ में ही होता है। महालय श्राद्ध पक्ष के कर्म अपराह्नकाल में होते हैं, कहने का तात्पर्य यह है की हर व्रत पर्व के ) लिए अलग-अलग समय काल का निर्धारण हमारे धर्म ग्रंथों और का शास्त्रों में किया है अत: उन्हीं को मानते हुए हमे व्रत पर्वों का निर्णय करना चाहिए।

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