करवाचौथ व अहोई अष्टमी पर सती के शाप की बंदिश सुरीर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा

मथुरा। भले ही देश अंतिरक्ष की ओर छलांग लगा रहा है, लेकिन रूढ़िवादी विचारधारा से समाज का एक वर्ग अभी भी उबर नहीं पा रहा है।

कस्बा सुरीर में एक मुहल्ला ऐसा भी है, जहां एक सती का शाप महिलाओं को पति और पुत्रों की दीर्घायु के व्रत की अनुमति नहीं दे रहा। यहां करवाचौथ और अहोई अष्टमी का त्याेहार नहीं मनाया जाता है।

ये है कहानी
किवदंती है कि नौहझील के गांव रामनगला एक ब्राह्मण युवक नवविवाहित पत्नी को यमुना पार ससुराल से विदा कराकर भैंसा बग्घी से लौट रहा था। सुरीर में होकर जाते समय मुहल्ला वघा के ठाकुर समाज के लोगों सरे बग्घी के भैंसा को लेकर विवाद हो गया था। मुहल्ले के लोगों के हाथों ब्राह्मण युवक की मौत हो गई।

पति की मृत्यु से कुपित पत्नी हमला करने वालों को शाप देते हुए सती हो गई। घटना के बाद मुहल्ले में जवान लोगों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया।

बुजुर्गों ने इसे सती का शाप मानते हुए अपराध की क्षमा याचना की और मुहल्ले में मंदिर बनाकर सती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। सती के शाप का असर तो थम गया, लेकिन इनके परिवारों में पति और पुत्र की दीर्घायु को मनाए जाने वाले करवाचौथ व अहोई अष्टमी के त्याेहार पर सती की बंदिश लग गई। तभी से यह त्योहार मनाना तो दूर इनके परिवार की महिलाएं पूरा साज-श्रृंगार भी नहीं करती हैं। उन्हें ऐसा करने पर सती के नाराज होने का भय बना रहता है।

डा.ओमप्रकाश सिंह बताते हैं कि कस्बे में बाद में सती का मंदिर बना, ये कब बना, किसी को नहीं पता। सभी जाति के लोग शादी-विवाह के अवसर पर मंदिर पर सती के सामने मत्था टेकते हुए पूजा-अर्चना करते हैं। गांव की रेखा, प्रीति और सुनहरी कहती हैं कि हम सती मंदिर में पूजा करते हैं। शाप के कारण व्रत नहीं करते।

रामनगला को पानी से भी परहेज
सैकड़ों वर्ष पहले हुई घटना को लेकर गांव रामनगला के ब्राह्मण आज भी सुरीर में खाना तो दूर पानी पीने से भी परहेज करते हैं। गांव के प्रेमचंद शर्मा का कहना है कि घटना को लेकर चली आ रही परंपरा का निर्वहन गांव राम नगला के ब्राह्मण लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं।

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