ईश्वर प्राप्ति का सहज सरल सदमार्ग है पवित्र मन=पूज्य आचार्य गार्ग जी महराजध्रुव की कथा प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रोता

भादर अमेठी। कथावाचक गार्ग जी महाराज के पावन सानिध्य में बहादुरपुर ग्राम सभा चल रही श्रीमद् भागवत कथा महापुराण के तृतीय दिवस में मुख्य यजमान सुशीला पाण्डेय धर्मपत्नी बलराम पाण्डेय पुत्र भादर मंडल महामंत्री भाजपा शैलेश पाण्डेय के द्वार पर आयोजित श्रीमद भागवत कथा में सभी भक्तों को भागवत कथा के महत्व का सुन्दर वर्णन श्रोताओं को श्रवण कराया।
गार्ग जी महाराज ने श्रोताओं को बताया कि हम एक ऐसी दौड़ में शामिल हो गए हैं जिसका कोई अंत नहीं है, दौड़ की आखरी सीढ़ी क्या है हमें यह भी नहीं पता और उसको हमने नाम दे दिया है प्रोग्रेस का। किसी देश की प्रोग्रेस उसकी ऊंची इमारतो या रोड से नहीं होती बल्कि वहां के नागरिक अपने देश के प्रति कितने वफादार हैं, ईमानदार हैं इससे होती है। मुझे लगता है की हमें सेल्फिश बनाया गया है, हम पर विचार थोपे गए हैं कि हम किसी की मदद न करें बस अपने लिए जीना ही उत्तम है। व्यक्तियों को इतना सेल्फिश बना दिया है की वो अब अपने माँ बाप के बारे में भी नहीं सोचता, बस अपने और अपने बीवी बच्चों के बारे में ही सोचता है। जबकि ईश्वर प्राप्ति का एक ही सत मार्ग है पवित्र मन।

पूज्य महाराज जी ने राजा ध्रुव की कथा सुनाते हुए कहा कि एक राजा थे उनका नाम था उत्तानपाद, उनकी दो रानियाँ थी, सुनीति और सुरुचि। दोनों रानियों को एक-एक लड़का हुआ। सुनीति के पुत्र का नाम था ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम था उत्तम। उत्तानपाद सुरुचि को ज्यादा पसन्द करते थे और सुरुचि की सब बात मानते थे। एक दिन महल के बाग में ध्रुव और उत्तम खेल रहे थे। उत्थानपाद भी वहाँ थे। उन्होंने उत्तम को अपनी गोदी में बैठा लिया। ध्रुव भी अपने पिता की गोदी में बैठना चाहते थे। सुरुचि ने ध्रुव से कहा अगर तुम मेरे पुत्र होते तब तुम्हें राजा की गोद में बैठने का अधिकार मिलता। ध्रुव बहुत दुखी हुए और रोते-रोते अपनी माँ के पास गये। सुरचि ने ध्रुव से कहा भगवान की कृपा से सब कुछ हो सकता है। तुम अपने पिता की गोद में भी बैठ सकते हो पर तुम भगवान की गोद में बैठने का प्रयत्न करो। ध्रुव ने अपनी माँ से पूछा कि मुझे भगवान कैसे मिलेंगे। माँ ने कहा तुम भगवान की अराधना करो तुम्हें भगवान मिल जायेंगे। ध्रुव को माँ की यह बात समझ आ गयी और एक रात जब माँ सो रहीं थी ध्रुव भगवान को ढूंढने के लिये घर से जंगल के लिये निकल पड़े।
ध्रुव को तो जंगल का रास्ता तक नहीं मालुम था पर मन में लगन थी कि मैं भगवान की अराधना कर उनकी गोदी में बैठूंगा। जब ध्रुव जा रहे थे उन्हें नारद मुनि ने देखा और सोचा यह अबोध बालक भगवान को ढूंढने के लिये घर से निकल पड़ा है। नारद जी ने ध्रुव से पूछा कि बालक तुम अकेले कहाँ जा रहे हो। ध्रुव ने उत्तर दिया कि मैं तो भगवान से मिलने जा रहा हूँ। ध्रुव ने नारद जी से पूछा कि आप मुझे बतायें भगवान मुझे कैसे और कहाँ मिलेंगे। नारद जी ने ध्रुव से कहा कि तुम मधुवन जाओ और वहाँ तुम भगवान की तपस्या करना। मैं तुम्हें भगवान को प्रसन्न करने का मंत्र बताता हूँ। नारद जी ने ध्रुव को मंत्र दिया। मंत्र था ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’। ध्रुव मधुवन गए और वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठ गए और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करने लगे। थोड़े समय तक तो ध्रुव ने केवल फल खाये और फिर फल खाना भी छोड़ दिया। इस प्रकार बड़ी तपस्या के उपरांत महाराज ध्रुव को श्री नारायण के चतुर्भुज रूप का दर्शन प्राप्त हुआ। कथा श्रवण का रशापान करने के लिए शिवराम पाण्डेय, पूर्व प्रधान अजाद सिंह, जयसिंह मास्टर,मल्लू सिंह,जीतलाल नेता, जगदीश प्रसाद पाण्डेय,छेड़ी शुक्ला, डा0 केशवराम बर्मा,पूनम पाण्डेय,सुनीता, पाण्डेय, इंद्रावती पाण्डेय,तथा मीना सिंह सहित सैकड़ो स्रोताओ ने कथा का रसपान कर अपना जीवन धन्य किया।

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