अशोक भाटिया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज से शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है। हिन्दू संगठन और राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर सन 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। उस ध्येय पथ पर संघ निरन्तर बढ़ता जा रहा है। किसी भी जीवंत संगठन के लिए शताब्दी वर्ष तक की यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। कोई भी संगठन किसी निश्चित उद्देश्य से बनता है और दस,बीस, पचास साल में उसकी महत्ता घट जाती है। जबकि संघ में ऐसा नहीं है। अभी भी संघ बूढ़ा नहीं बल्कि चिरयुवा है। इस सुदीर्घ यात्रा में संघ ने राष्ट्र के नवोत्थान का पथ आलोकित किया है। देशवासियों में देश के प्रति निष्ठा व समर्पण का भाव जगाया है। पर संघ विरोधियों को यह बात हजम नहीं होती । वे अक्सर ताना मरते रहते है कि ये दक्ष – विराम से देश का क्या भला होता है ।
खास कर संघ विरोधी नेता सवाल उठा देते है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था ।देश की आजादी में योगदान को लेकर उठते सवालों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आलोचकों को जवाब देते भी रहते है। राष्ट्रिय स्वयं संघ ने कुछ वर्ष पूर्व एक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर डाक्यूमेंट्री जारी कर देश की आजादी के लिए चले सभी बड़े आंदोलनों में संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और स्वयंसेवकों के योगदान का जिक्र किया था । संघ का कहना है कि आजादी के आंदोलन में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह अलग बात है कि स्थापना के बाद से संगठन को कभी श्रेय लेने की आदत नहीं रही। लेकिन, समाज में सुनियोजित साजिश के तहत संघ को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जाती हैं।
इतिहास के अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन अक्सर इस भूमिका को अनदेखा कर दिया गया। 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित इस संगठन का उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट करना और उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए तैयार करना था। क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में अपनी भागीदारी से गहराई से प्रभावित डॉ. हेडगेवार इस उद्देश्य के लिए समर्पित थे। उन्होंने कोलकाता में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया, जहाँ उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया और ब्रिटिश विरोधी कार्यों के लिए 1921 और 1931 में दो बार जेल गए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक मुख्य उद्देश्य भारत के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करना था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का समर्पण स्पष्ट था क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और कई लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। 1929 में, जब कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ (पूर्ण स्वतंत्रता) की घोषणा की, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी सभी शाखाओं में इसका जश्न मनाया।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सक्रिय रूप से शामिल थे। उनका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे नेता एमएस गोलवलकर ने किया था। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में, रमाकांत देशपांडे के नेतृत्व में चिमूर में स्वयंसेवकों ने एक जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू किया जो हिंसक हो गया। परिणामस्वरूप, कुछ ब्रिटिश अधिकारियों की जान चली गई। यह घटना, जिसे ‘चिमूर आष्टी प्रकरण’ के रूप में जाना जाता है, आंदोलन के इतिहास में एक उल्लेखनीय अध्याय है। एक और वीर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्ति सिंध के सक्खर से हेमू कलानी थे, जिन्होंने रेलवे फिशप्लेट्स को हटाकर ब्रिटिश सेना के आंदोलन को पटरी से उतारने का प्रयास किया था। उन्हें अपने कार्यों के लिए 1943 में सेना अदालत द्वारा मौत की सजा भी सुनाई गई थी।
सोलापुर के कांग्रेस कमेटी के सदस्य गणेश बापूजी शिंकर ने 1948 में संघ पर प्रतिबंध हटाने के लिए दबाव बनाने हेतु सत्याग्रह में भाग लिया था ( महात्मा गांधी की हत्या के बाद नेहरू सरकार ने गलत तरीके से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में प्रतिबंध हटाना पड़ा था )। सत्याग्रह में शामिल होने से पहले उन्होंने लोकतांत्रिक नैतिकता के आधार पर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपना रुख स्पष्ट करते हुए एक बयान जारी किया और यह 12 दिसंबर, 1948 को प्रकाशित हुआ। वे कहते हैं, “मैंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। उस समय पूंजीवादी और कृषक समुदाय सरकार से डरे हुए थे। इसलिए, हमें उनके घरों में सुरक्षित आश्रय नहीं दिया गया। हमें भूमिगत काम करने के लिए संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) कार्यकर्ताओं के घरों में रहना पड़ा। संघ के लोग हमारे भूमिगत काम में खुशी-खुशी हमारी मदद करते थे। वे हमारी सभी जरूरतों का भी ख्याल रखते थे। इतना ही नहीं, अगर हममें से कोई बीमार पड़ जाता था, तो संघ के स्वयंसेवक डॉक्टर हमारा इलाज करते थे। संघ के स्वयंसेवक, जो वकील थे, निडरता से हमारे मुकदमे लड़ते थे। उनकी देशभक्ति और मूल्य आधारित जीवनशैली निर्विवाद थी।
दिल्ली के संघचालक (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिल्ली इकाई के प्रमुख) लाला हंसराज के घर का इस्तेमाल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली ने भूमिगत रहने के लिए किया था। अगस्त 1967 में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया, “मैं 1942 के आंदोलन में भूमिगत थी; दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज ने मुझे 10-15 दिनों के लिए अपने घर में शरण दी और मेरी पूरी सुरक्षा का प्रबंध किया। उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि किसी को भी मेरे उनके घर पर रहने की खबर न मिले।”
प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर औंध (महाराष्ट्र) के संघचालक थे। उन्होंने क्रांतिकारी भूमिगत नेता नाना पाटिल के ठहरने की व्यवस्था अपने घर पर की थी। पाटिल को ‘पात्री सरकार’ के नए विचार के साथ प्रयोग करने के लिए जाना जाता है। पाटिल के सहयोगी किसनवीर अंग्रेजों के खिलाफ भूमिगत अभियान चलाते समय सतारा (महाराष्ट्र) के संघचालक के घर पर रुके थे। प्रसिद्ध समाजवादी नेता अच्युतराव पटवर्धन अंग्रेजों के खिलाफ भूमिगत आंदोलन के दौरान कई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयंसेवकों के घरों पर रुके थे।
संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। विदर्भ के अष्टी चिमूर क्षेत्र में समानान्तर सरकार स्थापित कर दी। अमानुषिक अत्याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान किया। नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकान्त केशव देशपाण्डे उपाख्य बालासाहब देशपाण्डे को आन्दोलन में भाग लेने पर मृत्युदण्ड सुनाया गया। आम माफी के समय मुक्त होकर उन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की। देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्डा फहराते स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, अनेक घायल हुए। आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्व का था। केवल अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्तों को पकड़वा रहे थे। ऐसे जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज गुप्त के यहाँ आश्रय पाते थे। प्रसिद्ध समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरुजी ने पूना के संघचालक श्री भाऊसाहब देशमुख के घर पर केन्द्र बनाया था। ‘पतरी सरकार ‘ गठित करने वाले प्रसिद्ध क्रान्तिकमीं नाना पाटिल को औौंध (जिला सतारा) में संघचालक पं।सातवलेकर जी ने आश्रय दिया।
महाराष्ट्र के औंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व करने वाले पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने नाना पाटिल को शरण दी, जो एक ऐसे नेता थे जिन्होंने ‘पात्री सरकार’ या वैकल्पिक सरकार स्थापित करने की कोशिश की थी। नाना पाटिल और उनके दोस्त किसनवीर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने छिपा दिया था, जब वे अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त रूप से काम कर रहे थे। जाने-माने समाजवादी नेता अच्युतराव पटवर्धन भी कई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सदस्यों के घरों में सुरक्षित रहे, जब वे गुप्त गतिविधियाँ कर रहे थे।
1940 और 1947 के बीच, ब्रिटिश पुलिस अक्सर इस बारे में बात करती थी कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अधिक से अधिक शक्तिशाली होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं में से एक गोलवलकर लोगों को भारतीय होने पर गर्व महसूस करा रहे थे और उन्हें एक साथ ला रहे थे। 30 दिसंबर, 1943 की एक रिपोर्ट में, उन्होंने उल्लेख किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कितनी तेज़ी से बढ़ रहा था और हिंदुओं को एक साथ लाने का उसका लक्ष्य क्या था। उन्होंने यह भी लिखा कि गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को प्रेरित करने और संगठित करने के लिए बहुत यात्रा करते थे, जिससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कई जगहों पर, यहाँ तक कि दूरदराज के इलाकों में भी बढ़ने में मदद मिली।
1940 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तेजी से विकास हुआ क्योंकि लोग स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले इसके स्वयंसेवकों का सम्मान करते थे। पहले तो वे चुपचाप काम करते थे। लेकिन जैसे-जैसे स्वतंत्रता करीब आती गई, वे और अधिक सक्रिय होते गए। उन्होंने बहुत कुछ किया, जैसे विभाजन के दौरान लाखों लोगों की मदद करना और उन हिंदुओं और सिखों की सहायता करना जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा था। इससे पता चलता है कि वे कितने समर्पित थे, और हमें उनकी बहादुरी और प्रतिबद्धता के बारे में और अधिक जानना चाहिए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान इतिहास का एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा किया जाने वाला हिस्सा है। उनकी निस्वार्थ सेवा और मौन बलिदान ने देश की स्वतंत्रता के मार्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय समाज में कई काम करता है, जैसे स्थानीय स्तर पर लोगों को शामिल करना और यहां तक कि सरकारी फैसलों को प्रभावित करना। कई भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पसंद करते हैं क्योंकि यह दूसरों की मदद करने, अनुशासित रहने और अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस करने पर ध्यान केंद्रित करता है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बढ़ता जा रहा है, राष्ट्र की सेवा और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए इसका समर्पण भारत के भविष्य को आकार देना जारी रखेगा।