कोलकाता। आरजी कर अस्पताल में महिला जूनियर डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या मामले की जांच जारी है। वारदात को लेकर 43 दिनों तक विरोध प्रदर्शन के बाद जूनियर डॉक्टर आज शनिवार से इमरजेंसी सेवाओं में काम पर लौट आए हैं। इस बीच सीबीआई जांच में पता चला है कि पीड़िता ने अस्पताल में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर प्रिंसिपल संदीप घोष से शिकायतें की थी। इसके बाद उसके सहकर्मियों ने उसे सचेत किया था लेकिन फिर भी वह भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठा रही थी। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या इसी वजह से उसे मौत के घाट उतारा गया? हालांकि केंद्रीय एजेंसी ने इस बारे में फिलहाल विस्तार से नहीं बताया है।
डॉक्टरों का कहना था कि सर्जरी के बाद दी जा रही एंटीबायोटिक दवाइयां प्रभावी नहीं हो रहीं, जिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा पैदा हो रहा है। कुछ मामलों में तो ऑपरेशन सफल होने के बावजूद मरीजों की जान चली गई। शिकायतों के बावजूद, इन मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
चिकित्सकों का कहना है कि सर्जरी के बाद दी जा रही एंटीबायोटिक दवाइयां अपना काम नहीं कर रही हैं। एक शल्य चिकित्सक ने कहा, “बहुत से मामलों में, घाव साफ करने वाला तरल पदार्थ सिर्फ रंगीन पानी जैसा होता है, जो संक्रमण को कम करने के बजाय बढ़ा देता है। ऐसे कई मरीजों को हमने खो दिया, जो ऑपरेशन के बाद ठीक हो सकते थे।”
बच्चों के इलाज में भी दवाइयों की प्रभावशीलता को लेकर शिकायतें आई हैं। बच्चों के विभाग के कुछ चिकित्सकों ने भी अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को सूचित किया था कि कई बच्चों को दवाइयों के असर न करने के कारण नहीं बचाया जा सका है। लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
क्या है नियम
राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के निर्देशों के अनुसार, हर मेडिकल कॉलेज में एक फार्माको-वीजिलेंस समिति होनी चाहिए, जिसका काम दवाइयों के प्रभाव और उनके दुष्प्रभावों की निगरानी करना है। हालांकि, ऐसी किसी समिति की सक्रियता अस्पतालों में दिखाई नहीं दे रही है।
स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले में करोड़ों रुपये की हेराफेरी शामिल है। यह घोटाला वर्षों से चला आ रहा है, जिसके चलते आम जनता का जीवन संकट में पड़ा है। चिकित्सकों का मानना है कि सरकार द्वारा खरीदी गई दवाइयां घटिया गुणवत्ता की होती हैं, जो कि सेंट्रल मेडिकल स्टोर्स (सीएमएस) के जरिए खरीदी जाती हैं। आरोप है कि टेंडर प्रक्रिया में भी भारी भ्रष्टाचार होता है, जिसके चलते असक्षम कंपनियां ठेका हासिल कर लेती हैं।
स्वास्थ्य सचिव नारायण स्वरूप निगम का कहना है कि जब भी दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें आती हैं, तो उनकी जांच कराई जाती है। उनके अनुसार, राज्य ड्रग कंट्रोल लैब और कुछ एनएबीएल स्वीकृत लैब्स के जरिए दवाइयों की जांच की जाती है। हालांकि, अभी तक अधिकांश जांच रिपोर्ट्स में कोई बड़ी खामी सामने नहीं आई है।