गरीब दलित परिवार फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर

सूरतगंज बाराबंकी। अभी कुछ दिनों बाद लोकसभा चुनाव होने हैं केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने 195 टिकटों का ऐलान भी कर दिया है तो वहीं उत्तर प्रदेश में विपक्ष की भूमिका निभा रही आईएनडीआईए गठबंधन का हिस्सा समाजवादी पार्टी ने भी अपने अधिकतर उम्मीदवारों के नाम तय कर दिए हैं। और अभी सभी दल जनता के दरवाजे पर दस्तक देंगे। जिसके बाद जनता से तरह-तरह के लुभावने वादे भी किए जाएंगे। खैर जो सभी चुनावों में होता रहा है वही इस चुनाव में भी होगा। केंद्र की सत्तासीन मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गरीबों के चहुमुखी विकास के लिए खजाने खोल रखा है। जिससे गरीबों को उनकी चौखट पर सरकारी योजनाओं का लाभ मिले इसके लिए सरकारों ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को हिदायत भी दे रखी है और पंचायत के चहुमुखी विकास के लिए पंचायत भवन में सभी व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। बाद इसके भी तमाम ऐसे गरीब हैं जिनतक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। इसी तरह का एक ताजा मामला ब्लॉक फतेहपुर इलाके के सिहाली ग्राम पंचायत से प्रकाश में आया है। जहां के ग्राम प्रधान और सचिव की उदासीनता गरीब दलित और पिछड़े परिवारों पर भारी पड़ रही है। सिहाली निवासी दलित पिंकी गौतम पत्नी रामू गौतम ने बताया कि उनके साथ लोगों का परिवार है जिसमें पांच छोटे-छोटे बच्चे हैं उनके पति मजदूरी करते हैं जिनके सहारे बच्चों का भरण पोषण होता है कई बार प्रधान और ब्लॉक के संबंधित अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी अबतक उन्हें आवास नसीब नहीं हुआ है। जिससे कारण उनके साथ 5 बच्चे फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। ऐसे हालात में एक बात तो साफ है कि यदि ग्राम प्रधान और सरकार के अधीन अधिकारियों और कर्मचारियों को शासन के निर्देश का जरा भी खौफ होता तो शायद इन जैसे गरीब परिवारों को अब तक आशियाना मिल चुका होता। यह हालात केवल पिंकी के ही नहीं है कुछ इसी तरीके हालत इसी गांव निवासी गरीब पिछड़े परिवार सपना,नंदिनी, राजकुमारी पत्नी संतराम जिनके पास भी नाम मात्र की जमीन है और परिवार बड़ा होने के कारण बच्चों का भरण पोषण करना ही मुश्किल है तो आवास कैसे बनवाएं। और यह सभी दर्जनों परिवार आवास विहीन जीने को मजबूर हैं। पीड़ित ग्रामीणों की माने तो ग्राम प्रधान बदले की भावना से कार्य कर रहा है जिसके चलते उन्हें आवास नसीब नहीं हो रहा है। उक्त मामले पर जब ग्राम प्रधान से बात करने की कोशिश की गई तो उनका फोन नहीं रिसीव हुआ। ग्राम पंचायत के सचिव ने बताया कि जिसकी आवश्यकता हो वह मुझसे संपर्क कर सकता है। ग्रामीणों का आरोप यह भी है कि कभी भी उन लोगों ने अब तक अपने ग्राम पंचायत के सचिव का मुंह तक नहीं देखा। तो जब ग्राम प्रधान बदले की भावना से काम करें और सचिव अधिकारी बनकर ब्लॉक कार्यालय से निकलकर गांव ही न पहुंचे तो सरकार के विकास की मंशा कहां तक परवान चढ़ेगी यह अपने आप में बड़ा सवाल है ?

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