योगी जी थानों से लेकर एसपी ऑफिस तक नहीं हो रही पीड़ितों की सुनवाई,सरकार की मंशा पर लग रहा पलीता

गोण्डा: जिले में पीड़ितों की थानों पर सुनवाई नहीं हो रही है।वह सीओ के यहां जाते हैं तो वहां भी समझा-बुझाकर वापस कर दिया जाता है।इसके बाद न्याय की उम्मीद लेकर पुलिस अधीक्षक के दरबार में हाजिरी देते हैं। कुछ  मामलों को छोड़कर यहां भी फरियादियों को न्याय नहीं मिल पाता है।दरअसल,न्याय प्रक्रिया की इस कड़ी में सबसे बड़ी बाधा संबंधित थानों की पुलिस होती है जो हाकिमों को गुमराह करते हुए अपनी सफाई पेश कर देती है और अफसर भी उसी को सच मान लेते हैं जिससे पीड़ित न्याय पाने से वंचित रह जाते हैं।पुलिस अधीक्षक से लेकर डीआईजी तक के जनता दर्शन कार्यक्रम में फरियादियों की भीड़ दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है।कुछ मामलों में अधिकारी तत्काल न्याय मुहैया करा देते हैं तो तमाम मामले जांच रिपोर्ट और कार्रवाई के आश्वासनों की गर्द में दब जाते हैं।एसपी के यहां से न्याय न मिलता देखकर पीड़ित डीआईजी का दरवाजा खटखटाता है। वहां भी वही दोहराया जाता है,जो प्रक्रिया एसपी के यहां अपनाई गयी थी।संबंधित थानाध्यक्ष को लाइन पर लेकर पूछताछ की जाती है।इस पर थानेदार द्वारा पहले से ही तैयार रटा-रटाया स्क्रिप्ट सुना दिया जाता है।हालांकि, पीड़ित की संतुष्टि के लिए जांच का झुनझुना थमा दिया जाता है जिससे दर्द कम होने के बजाय बढ़ जाता है।

देहात कोतवाली थाना सालपुर चौकी क्षेत्र अंतर्गत एक पीड़ित महिला का कहना है कि वह अपनी फरियाद लेकर सालपुर चौकी, देहात कोतवाली,एसपी ऑफिस और डीआईजी तक की फरियाद लगा चुकी हूं लेकिन मेरी सुनाई नहीं हो रही है।पहले तो चौकी और देहात कोतवाली में मुझ पर सुलह के लिए दबाव बनाया गया 

 मोतीगंज थाना क्षेत्र के एक गांव निवासी महिला ने बताया कि उसकी नाबालिग लड़की को एक युवक बहला-फुसलाकर भगा ले गया था।इस संबंध में नामजद मुकदमा दर्ज कराया गया था, लेकिन पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर रही थी। वह चौकी,थाना और पुलिस अधीक्षक के यहां दौड़ती रही। आखिरकार,अपर पुलिस अधीक्षक पूर्वी आईपीएस मनोज कुमार रावत के संज्ञान में लेने के बाद मोतीगंज पुलिस हरकत में आई और मंगलवार को आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय रवाना किया। मनकापुर निवासी एक व्यक्ति ने बताया कि दबंगों ने उसे मारा-पीटा, लेकिन थाने की पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।इस पर वह डीआईजी के यहां पेश हुआ,लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं हुआ। पुलिस कहती है कि कहीं भी जाओगे, वापस थाने पर ही आना है।सच भी यही है।थानों की पुलिस बेलगाम और मनबढ़ हो चुकी है। लम्बे समय से जमे कई थानाध्यक्ष व चौकी प्रभारी पीड़ितों की बात सुनना ही नहीं चाहते हैं। वे अपने मन-मुताबिक काम करते हैं, क्योंकि बॉस की उन पर कृपा बरस रही है। थानों पर सुनवाई न होने से एसपी और डीआईजी जैसे बड़े अफसरों के दरबार में भीड़ उमड़ रही है, लेकिन हाकिम यह जानने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि आखिर थानों की भीड़ उनके यहां क्यों आ रही है ? इसके इतर सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए दबाव बनाया जाता है।हद तो यह है कि मीडिया कर्मियों को भी डराने-धमकाने की कोशिश की जाती है। वैसे उच्चाधिकारियों के दरबार में फरियादियों की बढ़ती भीड़ का जवाब साफ है कि यदि थानों-कोतवालियों में पीड़ितों की फरियाद सुनकर उन्हें न्याय मुहैया करा दिया जाता, तो वे आलाधिकारियों की चौखट पर क्यों दस्तक देते ?

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