गोंडा : उत्तर प्रदेश में माफियाओं और बदमाशों के खिलाफ सख्ती से पेश आने वाले सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशाओं पर सरकारी मशीनरी पलीता लगाने में जुटी है।यही वजह है कि फरियादी थाने व पुलिस अधीक्षक कार्यालय के चक्कर काट रहे है, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही है।अगर मामला सुना भी गया तो राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। यही वजह है कि फरियादियों का थानों से विश्वास उठता जा रहा है।सरकारें बदली लेकिन थानों में न राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हुआ और न ही दलालों का वर्चस्व। लिहाजा लोगों को अपनी फरियाद लेकर पुलिस अधीक्षक के दफ्तर जाना पड़ रहा है।एसपी दफ्तर ही नहीं लोग योगी के जनता दरबार में भी फरियाद लगा रहे हैं।शासन जन सुनवाई को लेकर काफी गंभीर है।फरियादियों को अपनी समस्याएं लेकर बेवजह अफसरों के पास दौड़ न लगानी पड़े, इसके लिए समाधान दिवस आयोजित किए जाते हैं, फिर भी लोगों की समस्याओं का निस्तारण नहीं हो पाता। अक्सर देखा जाता है कि जब पीड़ित व्यक्ति थाने पर जाता है तो उसकी सुनवाई नहीं हो पाती। पुलिस उसका शिकायती पत्र ले तो लेती है, लेकिन इसका उपयोग अक्सर दूसरे पक्ष से आर्थिक लाभ लेने में करती है। इससे पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता है। यहां तक कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं,जिनमें पुलिस शिकायतकर्ता के विरोध में ही गलत रिपोर्ट लगाकर भेज देती है। इससे पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए भटकता रहता है। हालात यह हैं कि अब लोगों को सीओ व अपर पुलिस अधीक्षक स्तर से न्याय मिलने का भी भरोसा समाप्त हो गया है। पीड़ित को आस रहती है कि यदि वह पुलिस अधीक्षक से मिलेगा तो उसे न्याय मिल सकता है। इसी उम्मीद को लेकर पीड़ित व्यक्ति पुलिस अधीक्षक के कार्यालय के चक्कर काटता रहता है।एसपी दफ्तर के जांच शिकायत प्रकोष्ठ के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रतिदिन 50 से 60 तक प्रार्थना पत्र आते हैं।इनमें सर्वाधिक शिकायतें देहात कोतवाली,छपिया मनकापुर कोतवाली कर्नलगंज कोतवाली,परसपुर व तरबगंज थाना क्षेत्र की होती हैं।
मुख्यमंत्री योगी का नहीं है अधिकारियों में खौफ
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहाँ एक तरफ
अधिकारियों को जन शिकायत निस्तारण को लेकर बैठकों में भी अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते हैं और उनका प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण करने की बात कहते हैं।यहां तक कि लापरवाही करने पर दंडित करने की बात कहने में भी कोई गुरेज नहीं करते, लेकिन जिले के अधिकारियों व थानेदारों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।एसपी नें अभी हाल में क्राइम बैठक में ही जनशिकायतों के निस्तारण करने पर जोर दिया था, लेकिन उनके दफ्तर पर आई शिकायतों के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि थानों पर अधिकारी जिम्मेदारी के साथ जनसमस्याओं का निस्तारण नहीं करते।थानों मे राजनीतिक हस्तक्षेप और दलालों का वर्चस्व सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो, लेकिन थाने दलालों से मुक्त नहीं हो पाए हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप का आलम यह है कि अक्सर नेता उत्पीड़न करने वालों और आपराधिक तत्वों के पक्ष में पैरवी करते नजर आते हैं।पीड़ित व्यक्ति को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।यही हाल दलालों का भी है।वे भी अपराधियों की तरफदारी करके मोटी कमाई करते और कराते हैं। इससे पीड़ित पक्ष को थाने से निराशा हाथ लगती है।
जमीन के विवाद और घरेलू हिंसा के मामले अधिक
पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर आने वाली शिकायतों पर यदि गौर करें तो अधिकतर मामले जमीन के विवाद और घरेलू हिंसा से जुड़े होते हैं।जमीन के विवाद राजस्व विभाग से जुड़े होने के कारण पुलिस इन विवादों के निस्तारण में लाचार नजर आती है।पीड़ित को लगता है कि पुलिस मामले को जान बुझकर टाल रही है।