डॉक्टरों के आंदोलन को लगातार मिल रहा आम लोगों का साथ, कोई पानी तो कोई पहुंचा रहा खाना, लोगों ने खोल दिए हैं दरवाजे

कोलकाता। बुधवार रात लगभग 11 बजे, कोलकाता एयरपोर्ट के अधिकारी कैलाशपति मंडल ने फोन पर पूछा, “जो बच्चे सड़क पर धरना दे रहे हैं, क्या उन्हें खाना या पानी चाहिए? मैं अभी पहुंचाना चाहता हूं।” वहीं, सीनियर महिला पल्मोनोलॉजिस्ट सुष्मिता राय चौधरी ने भी चिंतित स्वर में फोन पर पूछा, “क्या स्वास्थ्य भवन के पास लड़कियों के लिए कहीं वॉशरूम की व्यवस्था की जा सकती है?”

शहर के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों से लोग किसी न किसी तरह से आंदोलन में सहयोग करना चाहते हैं। यह समर्थन जूनियर डॉक्टरों की आंखों में चमक लेकर आ रहा है। मंगलवार रात तक, जब लड़कियों को वॉशरूम के लिए इधर-उधर दौड़ना पड़ रहा था, तब सेक्टर 5 में स्वास्थ्य भवन के पास सड़कों पर 13 बायो-टॉयलेट्स की व्यवस्था कर दी गई थी। बुधवार शाम तक इनकी संख्या और भी बढ़ गई। आंदोलन के मुख्य चेहरों में से एक किंजल नंद ने कहा कि लोग जिस तरह से हमारे साथ खड़े हो रहे हैं, हम उनके आभारी हैं। यही हमारी मुख्य ताकत है।

26 अगस्त की रात जब जूनियर डॉक्टरों ने लालबाजार तक मार्च किया था, तो बीबी गांगुली स्ट्रीट और फियरस लेन के मोड़ पर भी लोग रातभर जागते रहे। आस-पास के घरों से कई लोगों ने अपने दरवाजे खोल दिए और कहा कि तुम्हें जो भी जरूरत हो, आ सकते हो।

हालांकि, स्वास्थ्य भवन के आस-पास सिर्फ ऑफिस की इमारतें हैं, जो रात में खाली रहती हैं। मंगलवार और बुधवार की रात जब इन इमारतों के केयरटेकर्स से मदद मांगी गई, तो कुछ ने “अज्ञात” डर से मुंह फेर लिया। इसके बावजूद शहर के नागरिकों ने हालात को समझा और लगातार फोन आने लगे – “क्या चाहिए, बताइए।” टेलीविज़न पर स्थिति देखकर कई लोग अपने वाहनों में भोजन और पानी लेकर सेक्टर पांच पहुंच गए।

बुधवार सुबह से ही लोग अपनी जेब से खर्च कर बिरयानी के पैकेट, बिस्कुट, सूखा खाना, नैपकिन और पानी की बोतलें लेकर जूनियर डॉक्टरों तक पहुंच रहे थे। दिन में तेज धूप के दौरान किसी ने उनके हाथ में पंखे भी थमा दिए।

अलग-अलग कॉर्पोरेट कंपनियों ने भी मदद का हाथ बढ़ाया है, यहां तक कि विदेशों से भी सहायता मिल रही है। शहर के लोग भी इस सहयोग से प्रभावित हैं। आर.जी. कर के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग के साथ, जूनियर डॉक्टर मंगलवार से स्वास्थ्य भवन के सामने धरने पर बैठे हुए हैं।

आंदोलन लंबा खिंचने की संभावना को देखते हुए उन्हें सूखा भोजन, पानी, कपड़े आदि की व्यवस्था करने की सलाह दी गई थी। लेकिन मंगलवार रात से ही आम लोग जिस तरह से उनका समर्थन कर रहे हैं, आंदोलनकारियों को अपनी आवश्यकताएं खुद पूरी करने की जरूरत नहीं पड़ी।

इस बीच, दक्षिण बंगाल में अभी भी मानसून नहीं गया है और कोलकाता में बीच-बीच में बारिश हो रही है। इस स्थिति में खुले में धरना देने को लेकर आंदोलनकारी चिंतित थे। लेकिन एक डेकोरेटर ने उनकी इस चिंता को दूर कर दिया। मंगलवार रात 1:30 बजे जब बारिश होने लगी, तो डेकोरेटर ने तेज़ी से तिरपाल और प्लास्टिक बिछाकर छतरी का इंतजाम कर दिया। इसके अलावा, बायो-टॉयलेट्स और बड़े स्टैंड फैन का भी इंतजाम कर दिया गया है।

टेक्नो इंडिया यूनिवर्सिटी ने बुधवार दोपहर आंदोलनकारियों के लिए भोजन भेजा, जिसमें चावल, दाल, सब्जी, अंडे की करी, खिचड़ी और सब्जी शामिल थी। एक निजी कंपनी ने 500 बिरयानी के पैकेट भेजे, जबकि दूसरी कंपनी ने 250 पैकेट भेजे। इसके अलावा, व्यक्तिगत रूप से भी लोग मदद के लिए आगे आए।

एनआरएस अस्पताल की एक डॉक्टर की मां, सुपर्णा दासगुप्ता, जो सापुईपाड़ा की रहने वाली हैं, 50 बिरयानी पैकेट, कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की बोतलें लेकर आईं। एक रिटायर्ड प्रोफेसर दंपत्ति, दिलीप खां और कृष्णा खां, ने अपनी गाड़ी में पानी की बोतलों की पेटियां और ग्लूकोन-डी के पैकेट लाकर दिए। मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के एक समूह ने बिस्कुट और सूखा भोजन दिया, जबकि एक नाट्य समूह ने हाथ पंखे और तौलिए दिए।

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