रामगढ़ताल का जलस्तर करीब एक मीटर कम हो गया है। अप्रैल से ही ताल से उठ रही बदबू पर जिम्मेदारों ने ध्यान नहीं दिया। ताल के पानी की निचली सतह भी गरम होने से उसमें ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया है, जिससे मछलियां मरने लगी हैं। शुक्रवार को तेज हवा बहने पर लहरों के साथ मरी मछलियां किनारे उतराईं तो हड़कंप मच गया।
मछली पालन से जुड़े लोगों का कहना है कि दो दिन में ही मछलियों की मौत हुई है। हालांकि, जल निगम पानी की गुणवत्ता व स्तर को सही बता रहा है, लेकिन मछलियां क्यों मर रही हैं, इसका सीधा जवाब कोई जिम्मेदार नहीं दे रहा है।
गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने सितंबर 2023 में मत्स्य जीवी सहकारी समिति लिमिटेड तारामंडल को रामगढ़ताल में मछलीपालन का पट्टा दिया है। समिति को यह पट्टा 10 साल के लिए 20.30 करोड़ रुपये में दिया गया है। समिति अब यहां मछली पालन का काम करती है। इस बार बेतहाशा गर्मी पड़ने और तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहने से रामगढ़ताल के पानी का ऊपरी सतह भी गरम हो गया था।
इस बीच जल निगम की तरफ से सिक्टौर के पास ताल पर लगे फाटक को बदलने का काम शुरू कर दिया गया। फाटक हटने पर रामगढ़ताल का पानी तेजी से राप्ती नदी में जाने लगा। मछली पालन से जुड़े लोगों ने मौके पर पहुंचकर फाटक खोलने का विरोध भी किया, लेकिन अफसरों ने उनकी एक न सुनी।
करीब 40 से 50 लाख रुपये का हुआ नुकसान
मत्स्य पालन समिति से जुड़े नंदकिशोर साहनी ने बताया कि पैडलेगंज से नौकायन के बीच ताल के किनारे मृत पड़ी मछलियों को पांच नाव लगाकर निकलवाया जा रहा है। करीब 40 से 50 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। अफसरों को पहले ही ताल में पानी कम होने की बात बताई गई थी, लेकिन कोई हमारी बात सुन नहीं रहा था। अब जब नुकसान हो गया, तब अफसर नई-नई कहानी सुना रहे हैं।
अप्रैल में रामगढ़ताल से उठने लगा था बदबू
रामगढ़ताल में किनारे की तरफ काई जमने से अप्रैल में ही बदबू उठने लगा था। इसकी जानकारी होने पर जीडीए ने जलकुंभी की सफाई कराई, जिसके बाद बदबू उठना बंद हो गया। हालांकि स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ताल की सतह की सफाई नहीं कराई गई। शुक्रवार को ताल में मछली मरने की जानकारी पर सफाई कार्य शुरू कराया गया। ताल की सतह पर भी प्लास्टिक की बोतल व गंदगी दिख रही थी।
तापमान अधिक होने से वर्ष 2014-15 में भी मरी थीं मछलियां
डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार द्विवेदी ने बताया कि वर्ष 2014-15 में भी रामगढ़ताल में मछलियां मरी थीं। उस समय भी ताल का तापमान अधिक हो गया था। जिस तरह इंसानों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, उसी तरह जलीय जीवों को जीवित रहने के लिए पानी में घुली ऑक्सीजन की जरूरत होती है।
किसी जलाशय में ऑक्सीजन की कमी का मुख्य कारण फास्फोरस और नाइट्रोजन के उच्च स्तरों की ओर से संचालित अत्यधिक शैवाल और फाइटोप्लांकटन वृद्धि है। जिस भी ताल में जलीय जीव रहते हैं, उनका तापमान 21 से 22 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। निचली सतह का तापमान बढ़ने से ऑक्सीजन लेवल घटने लगता है।
डी श्रेणी में है रामगढ़ताल की जल गुणवत्ता
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से मई में रामगढ़ताल की जल गुणवत्ता को मापा गया था। इसका विवरण बोर्ड की वेबसाइट पर भी अपलोड है। इसमें रामगढ़ताल में डीओ (घुलित ऑक्सीजन) 7.9, बीओडी 4.20 और टोटल कोलीफाॅर्म 29000 और फीकॅल कोलीफार्म 21000 पाया गया। इस वजह से ताल के पानी को डी श्रेणी में रखा गया है। डी श्रेणी का पानी दूषित माना जाता है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नहीं ली सुधि
रामगढ़ताल के पानी की गुणवत्ता खराब है, इसके बावजूद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से ध्यान नहीं दिया गया। अप्रैल में यहां क्षेत्रीय अधिकारी रहे अनिल शर्मा अब सेवानिवृत्त हो गए हैं। कुनराघाट में स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी का चार्ज आजगमढ़ के क्षेत्रीय अधिकारी के पास अतिरिक्त प्रभार के तौर पर है।
वह पिछले सप्ताह गोरखपुर दफ्तर पहुंच कर कार्यभार ग्रहण कर चले गए। तबसे वह गोरखपुर नहीं आए। महीने भर से प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित सारे कार्य ठप पड़े हैं।
जल निगम के अधीक्षण अभियंता रतनसेन सिंह ने बताया कि रामगढ़ताल में मछलियां क्यों मरी हैं, इसकी जांच कराई जा रही है। जलस्तर घटने से मछलियों के मौत का आरोप निराधार है। दो दिन पहले पुराने फाटक की जगह नया लगाने का काम शुरू किया गया है। जितने जल की निकासी हो रही है, गोड़धोइया और हाल में हुई बारिश से उसकी भरपाई हो गई है।
जल निगम की जांच में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा मिली सही
जल निगम के अधीक्षण अभियंता रतनसेन सिंह ने बताया कि रामगढ़ताल में मछलियों के मरने की जानकारी होने पर तत्काल ऑक्सीजन लेवल की जांच कराई गई। रामगढ़ताल के अलग-अलग सात-आठ हिस्सों से नमूना लेकर जांच की गई। जांच में ताल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा सही पाई गई है। उन्होंने संभावना व्यक्त की कि पिछले दिनों पड़ी भीषण गर्मी में मछलियां मरकर अंदर पड़ी रही होंगी। इधर तेज हवा चलने पर वह उतरा कर ऊपर आ गई हैं।