प्रयागराज । सरस्वती तट पर लगभग 2500 स्थल प्राप्त हुए हैं। इसलिए इसे सरस्वती सभ्यता कहना अधिक तर्कसंगत है। सिंधु घाटी सभ्यता में ऋग्वैदिक काल की निरंतरता है। नवीनतम शोध के अनुसार ऋग्वैदिक काल सिंधु घाटी सभ्यता से अधिक प्राचीन है।
यह बातें मुख्य वक्ता डॉ. डी.पी शर्मा, भूतपूर्व निदेशक, भारत कला भवन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने सिंधु-सरस्वती के उत्खनित स्थलों के बारे में विस्तार से बताते हुए व्याख्यान में कही। उन्होंने ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज में प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा ‘इण्डस-सरस्वती : न्यूडिस्कवरीज’ पर विशेष व्याख्यान में कहा कि 3700-3300 ई.पू में हड़प्पा लिपि की शुरुआत हो चुकी थी। सिंधु सभ्यता के विस्तार की सीमाएं भी उत्तर में तुर्कमेनिस्तान तक जा रही है।
कांस्य युग 5000 ई.पू से प्रारंभ हो रहा है। सरस्वती एक विशाल नदी थी। यह जमीन से 40 मीटर नीचे थी और इसकी तीव्रता बहुत ज्यादा थी। यह 8000-5000 ई.पू पहले ऋग्वैदिक काल की बहुत बड़ी नदी थी। इसे ही नदीत्मा कहा जाता था। उन्होंने बताया कि प्री-हड़प्पन स्तरों पर गर्त में रहने के प्रमाण मिले हैं। 4000-3700 ई.पू का चक्का मेहरगढ़ से प्राप्त है। प्री हड़प्पन चक्का बनाना सीख चुके थे। अब तक 24 पशुपति मिल चुके हैं। स्तूप परम्परा भी अति प्राचीन है। यह सिंधु घाटी में अपनाई गई थी।