तपस्या रंग लाई आज विराजेंगे रघुराई

बाराबंकी। 22 जनवरी 2024 यानी आज अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस मंदिर की लड़ाई करीब 500 वर्षों चली जबकि कानूनी लड़ाई 134 साल चली। हुआ कुछ यूं कि 1526 में मुगल शासक बाबर भारत आया और 1528 में उसके सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में राममंदिर तोड़कर एक मस्जिद बनाई और बाबर के सम्मान में उस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा। राम जन्मभूमि तोड़े जाने को लेकर हिंदुओं में उबाल तो आया परंतु उस वक्त हिंदू मुखर होकर इसकी मुखालफत न कर सका। 22 दिसंबर 1949 को भी मंदिर के लिए एक मुकदमा कायम हुआ। जिसके बाद 16 जनवरी 1950 को हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह बिसारत ने सिविल कोर्ट फैजाबाद में राम जन्मभूमि को लेकर एक मुकदमा दायर किया। 30 अक्टूबर 1990 को रामजन्मभूमि पर हुए विवाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर कारसेवकों पर बे-रोक-टोक गोली चलाई गई जिसमे कई कारसेवक शहीद हुए और सैकड़ो कारसेवक घायल हो गए। सूत्रों की माने तो अयोध्या रक्त रंजित हो गई और यमुना का पानी कारसेवकों के खून से लाल हो गया था।

6 दिसंबर 1992 के दिन अयोध्या पहुंचे लाखों कार्य सेवकों ने इस विवादित ढांचे को जमींदोज कर दिया और उसी दिन शाम को ही कारसेवकों ने अस्थाई भगवान श्रीराम का मंदिर बनाकर पूजा अर्चना शुरू कर दी। जिस पर एक्शन लेते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बर्खास्त करते हुए अन्य भाजपा प्रदेशों की सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया। बर्खास्त हुए यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कहा था कि प्रभु श्रीराम के लिए ऐसी तमाम कुर्सियां कुर्बान हो जाएं तो उनका बड़ा सौभाग्य होगा। अर्थात माना यह जाता है कि उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को कुर्सी जाने से जरा सा भी दुख नहीं हुआ था। इसके विरोध में तत्कालीन श्री राम सेवक और कारसेवकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। घटना के ठीक 25 दिनो बाद 1 जनवरी 1993 को सुप्रीम कोर्ट के जज हरिनाथ दिलहरी ने हिंदुओं को दर्शन पूजन की अनुमति दे दी।

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया जिसमें राम मंदिर अधिनियस के पक्षकार निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को बराबर-बराबर ज़मीन बांट दी। और हाई कोर्ट इलाहाबाद के न्यायाधीशों ने गुंबद की नीचे की जमीन को राम जन्मभूमि का करार दिया। मुकदमा फिर भी जारी रहा 9 नवंबर 2019 को विवादित जमीन सहित आसपास के एरिया को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हिंदू पक्षकारों को यह कह कर दे दिया कि यह जमीन राम जन्मभूमि की है। इसके साथ ही केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाकर राम मंदिर निर्माण के लिए भी आदेशित कर दिया और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दूसरी जगह जमीन देने का आदेश जारी कर दिया। अयोध्या में जन्मभूमि को लेकर इस लम्बी लड़ाई में कारसेवकों सहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी,उमा भारती,विनय कटियार सहित देश के लाखों अज्ञात राम भक्तों ने बड़ी कुर्बानी दी। 22 जनवरी दिन सोमवार को हो रहे भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंगदल, हिन्दू महासभा, केंद्र की नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश की महंत श्री योगी आदित्यनाथ सरकार, मध्य प्रदेश सरकार राजस्थान सरकार छत्तीसगढ़ सरकार और उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी की सरकार सहित समूचे देश के अन्य भारतीय जनता पार्टी की सरकारों के साथ-साथ समूचे देश के सनातनियों में खासा उत्साह देखने को मिला।

22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा की जानकारी हुई तो भगवान श्रीराम के स्वागत के लिए अपने-अपने क्षेत्र के मंदिरों की साफ-सफाई सहित प्राण प्रतिष्ठा के दिन को भव्य बनाने के लिए दीपोत्सव की पुरजोर तैयारिया की। प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व जगह-जगह शोभायात्रा भगवान श्री राम की रैलिओ से समूचा देश गूंजायामान रहा। समूचे देश की सड़कों पर राम पताकाएं और भगवा झंडा नजर आ रहे थे। करोड़ों लोग देश के कोने-कोने से और प्रतिष्ठा की भव्य कार्यक्रम को देखने के लिए लालायित थे और साधनों सहित पैदल अयोध्या पहुंच रहे थे। विश्व हिंदू परिषद स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल की मुहिम से समूचे देश के एक-एक घर को भगवान श्री राम की अक्षत पहुंचाई गई थी। पूरा देश राम रंग से सराबोर था। इस दौरान मीडिया से बात करते हुए राम जन्मभूमि की लड़ाई में जेल काट चुकी उमा भारती ने कहा था आज उन कर सेवकों की सच्ची श्रद्धांजलि है जिन लोगों ने प्रभु श्री राम की जन्म भूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी मेरा भी सौभाग्य होता कि मैं भी राम भक्तों के साथ वीरगति को प्राप्त होती।

Related Articles

Back to top button