मुख्यमंत्री वही बनेगा, जिसके पास ज्यादा सीटें हो… मुख्यमंत्री पर क्या पीछे नहीं हटेंगे एकनाथ शिंदे?

महाराष्ट्र में रूझान अब नतीजों में बदलने लगे हैं इसी बीच एकनाथ शिंदे ने प्रतिक्रिया दी है सीएम शिंदे ने कहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने कामों पर मुहर लगा दी है हमने ढ़ाई साल सिर्फ महाराष्ट्र की जनता के लिए काम किया है, जिसका नतीजा अब सामने आ गया है

इसी के साथ मुख्यमंत्री शिंदे ने यह कहकर बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है कि ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी के पास ही मुख्यमंत्री का पद हो, यह जरूरी नहीं है शिंदे ने कहा है कि हम मिलकर तय करेंगे अभी कुछ भी फाइनल नहीं है

बड़ा सवाल- शिंदे को मिलेगा सीएम पद?
2022 में जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत किया था, उस वक्त उनके पास सिर्फ 40 विधायक थे बीजेपी के पास 105 विधायकों क समर्थन था, लेकिन मुख्यमंत्री की कु्र्सी पार्टी ने शिंदे को दे दी इसे पार्टी का बड़ा सियासी दांव माना गया

अभी जो चुनाव के नतीजे आ रहे हैं उसमें बीजेपी 120 से ज्यादा सीटों पर बढ़त में है शिंदे की पार्टी 50 के करीब सीटें जीतती नजर आ रही है ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या 2022 की तरह ही बीजेपी इस बार शिंदे को सीएम की कुर्सी दे देगी?

अजित के 30 विधायक शिंदे के लिए टेंशन
महायुति में अजित पवार की पार्टी भी शामिल है खुद अजित मुख्यमंत्री पद के दावेदार है उनकी पार्टी को करीब 30 सीटों पर बढ़त हासिल है रूझान अगर नतीजों में बदलते हैं तो बीजेपी और अजित की पार्टी भी मिलकर आसानी से महाराष्ट्र में सरकार बना लेगीै

यह समीकरण एकनाथ शिंदे के लिए टेंशन बढ़ाने वाला है यही वजह है कि शिंदे अभी सीएम पद पर तो दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन मिलकर फैसला करने की बात कर रहे हैं

वहीं अजित गुट ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है कहा जा रहा है कि 25 नवंबर तक सबकुछ फाइनल हो जाएगा. इसके बाद महाराष्ट्र में सरकार गठन की कवायद शुरू होगी

लाड़की बहिन और टोल फ्री गेमचेंजर बना
एकनाथ शिंदे की लाड़की बहिन और मुंबई में टोल टैक्स फ्री करना गेमचेंजर साबित हुआ है महिलाएं और मुंबई के लोगों ने जमकर महायुति के पक्ष में मतदान किया है लाड़की बहिन योजना की वजह से पहली बार पिछले 30 सालों में महिलाओं के वोटबैंक में बढ़ोतरी देखी गई महिलाओं ने जमकर महाराष्ट्र में मतदान किए हैं

टोल नाका फ्री को भी शिवसेना ने बड़ा मुद्दा बनाया. शिवसेना शुरू से ही इसे मुद्दा बनाती रही है राज ठाकरे भी इसी मुद्दे के जरिए राजनीति करते रहे हैं

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