बुंदेलों के पराक्रम को देख अंग्रेज अपनी जान बचाकर भागे – तारा पाटकर

महोबा। बुंदेलों का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहां के वीरों ने अपने शौर्य और पराक्रम से मातृभूमि के दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली में गोरखगिरि में छुपे पांच अंग्रेज अफसरों को चरवाहों ने मौत की नींद सुलाया था। गोरखगिरी में आज भी इन अंग्रेज अफसरों की समाधि स्थित है, जो बुंदेलों के पराक्रम की गवाही दे रही है।

जब जब मातृभूमि पर संकट पड़ा है, तब तब बुंदेले अपनी वीरता दिखाने से पीछे नहीं हटे हैं। बुंदेली ने अपनी सौर एवं पराक्रम के दम पर अंग्रेजों की नींव हिला दी थी। जनपद मुख्यालय निवासी वरिष्ठ समाजसेवी बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने बताया कि 1857 के समर में बुंदेलों ने बुंदेलखंड में अंग्रेजी हुकूमत से डटकर लोहा लिया है। बुंदेलों ने अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का निर्णय लिया, जिसके बाद बुंदेलों के पराक्रम को देखते हुए अंग्रेज अपनी जान बचाकर भागने को मजबूर हो गए थे।

बताया जाता है कि भाग रहे अंग्रेजी सेना के पांच अंग्रेज अफसर अपनी जान बचाने को ऐतिहासिक गोरखगिरी पर्वत में जाकर छुप गए। जहां जानवरों को चराने पहुंचे चरवाहों की नजर अंग्रेज अफसरों पर पड़ी तो उन्होंने उन गोरों को वहीं पर मौत की नींद सुला दिया। बाद में उनके शवों को वहीं पर दफना दिया जिसे गोरों की समाधि के नाम से जाना जाता है।

गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली है गोरखगिरि

राजकींय महाविद्यालय के प्रवक्ता एलसी अनुरागी बताते हैं कि गोरों की समाधि ऐतिहासिक गोरखगिरि पर स्थित है।भगवान श्री राम के यहां पहुंचने के बाद गुरु गोरखनाथ ने इसे अपनी तपोस्थली बनाया था । लगभग 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सिद्ध बाबा के स्थान पर गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर विशाल भंडारा का आयोजन किया जाता है।

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