भाजपा नहीं दोहरायेगी अब कोई पुरानी गलती, मुख्यमंत्री तो देवेंद्र फडणवीस को ही बनाएगी !

अशोक भाटिया

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद महायुति में मुख्यमंत्री को लेकर मंथन चल रहा है। मुकाबला देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के बीच है। बाजी कौन मारता है, ये तो समय बताएगा। लेकिन उससे पहले दोनों ही पक्षों के नेताओं के अलग-अलग दावे हैं। महाराष्ट्र बीजेपी के नेता फडणवीस को सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं तो शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता एकनाथ शिंदे को राज्य की कमान देने की अपील कर रहे है। शिवसेना के सांसद नरेश म्हस्के ने राज्य में बिहार मॉडल अपनाने की सलाह भी दे दी। उन्होंने कहा कि जैसे बीजेपी ने बिहार में नीतीश कुमार को सीएम बनाया वैसी ही महाराष्ट्र में शिंदे को सीएम बनाए। हालांकि बीजेपी शिंदे गुट के नेता की बात से सहमत नहीं है।

देखा जाय तो मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा इसके लिए देर हो रही है तो कहीं ना कहीं बीजेपी की ओर से यह देरी हो रही है। दरअसल, शिवसेना अपना विधायक दल का नेता चुन चुकी है। एनसीपी की ओर से विधायक दल का नेता चुना जा चुका है जबकि भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की ओर से अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुना गया है। जानकार यह भी बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी देवेंद्र फडणवीस के इतर भी मुख्यमंत्री पद के लिए कुछ नाम पर विचार कर रही है और अंतिम नाम चुकी अभी तक फाइनल नहीं हो पाया है जिसकी वजह से इस पूरे प्रक्रिया में देरी हो रही है।

हालिया समाचारों के अनुसार महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का नाम करीब करीब फाइनल हो चुका है। हालांकि शिवसेना नेता और प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी दोबारा सीएम बनने का मोह त्याग नहीं पा रहे थे। इसलिए कई बार शिवसेना की ओर से भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाया गया, कि क्यों न महाराष्ट्र में भी बिहार मॉडल लागू किया जाए। पर मंगलवार को महाराष्ट्र में नई महायुति सरकार के नेतृत्व को लेकर बीजेपी ने शिवसेना नेताओं द्वारा सुझाए गए बिहार मॉडल को खारिज कर दिया है।

पार्टी के नेताओं ने महाराष्ट्र में बिहार मॉडल को भी सिरे से खारिज कर दिया है। बिहार में चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार को सीएम घोषित किया गया था, जिसे बीजेपी ने जीत के बाद पूरा किया। महाराष्ट्र में बिहार मॉडल लागू करने का वादा नहीं किया गया था। एकनाथ शिंदे बड़े नेता हैं, उनका सम्मान कायम रहेगा। बीजेपी ने चुनाव में ऐतिहासिक 132 सीटें जीती हैं, ऐसे में सीएम पद को सरेंडर करने का कोई औचित्य नहीं हैं। शिवसेना को मंत्रिमंडल में दमदार विभाग दिया जा सकता है ।

इस बीच एकनाथ शिंदे भी कुछ नरम होते नजर आए। सोमवार रात को X पर पोस्ट कर स्थिति को ठंडा करने की कोशिश की। उन्होंने लिखा, महायुति की शानदार जीत के बाद, हमारी सरकार एक बार फिर राज्य में बनेगी। महायुति के रूप में, हमने चुनाव साथ लड़ा और आज भी एकजुट हैं। मेरे प्रति प्रेम के कारण, कुछ लोगों ने मुंबई में इकट्ठा होने की अपील की है। मैं आपके इस प्रेम का गहराई से आभारी हूं। लेकिन मैं अपील करता हूं कि मेरे समर्थन में इस तरह से कोई इकट्ठा न हों।

अपने नेता को दोहराते हुए शिवसेना के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री दीपक केसरकर ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय सभी को स्वीकार्य होगा। हर पार्टी चाहती है कि मुख्यमंत्री उनके पक्ष से हो, लेकिन तीनों पार्टियों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह जो भी निर्णय लेंगे, वह सभी को स्वीकार होगा। शिंदेजी नाराज नहीं हैं और महायुति सहयोगियों के बीच कोई मतभेद नहीं है। आखिर वे कौन से कारण रहे कि शिवसेना यह मान गई कि अब सीएम का पद नहीं मिलने वाला है। दरअसल बीजेपी एकनाथ शिंदे के साथ नीतीश कुमार वाला वाला ट्रीटमेंट न देने के पीछे कई कारण हैं जिसे शायद शिवसेना ने जल्द ही समझ लिया।

गौरतलब यह भी है कि बिहार में आज की तारीख में भी भारतीय जनता पार्टी के पास एक भी नेता ऐसा नहीं है जो बिहार के सीएम नीतीश कुमार या अन्य विरोधी पार्टियों के नेताओं से अधिक मजबूत हो या उनका आभामंडल ही उनके बराबर का हो। देवेद्र फडणवीस महाराष्ट्र में काफी दिनों सक्रिय रहे हैं। आरएसएस और बीजेपी दोनों ही में उनकी बराबर पैठ है। यही नहीं राज्य की राजनीति में महायुति ही नहीं महाविकास अघाडी में भी उनकी जबरदस्त पहुंच है। विधानसभा चुनावों में उन्होंने राज्य भर में अकेले चुनावों की कैंपनिंग की है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं भी उनके द्वारा ही की गईं हैं। भारतीय जनता पार्टी की रैलियों में उनके आते ही देवा भाऊ-देवा भाऊ की गूंज उनकी लोकप्रियता की कहानी कह रहा था। जबकि बिहार में आज भी दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की चमक इतनी नहीं है कि नीतीश कुमार के प्रभाव को मद्धिम भी कर सकें। दोनों डिप्टी सीएम के अलावा भी बिहार बीजेपी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो केंद्रीय नेतृत्व के बिना बिहार में बीजेपी को खड़ा कर सके। इस बात को महराष्ट्र में शिवसेना मॉडल की मांग करने वाले शिवसेन नेता भी समझ रहे हैं। शायद यही कारण है कि जल्दी ही वो समझ गए कि बिहार और महाराष्ट्र की परिस्थितियों में जमीन आसमान का अंदर है।

एक नेता के रूप में नीतीश कुमार और एकनाथ शिंदे की तुलना नहीं की जा सकती है। नीतीश कुमार देश के उन कद्दावर नेताओं में से हैं जो कभी पीएम पद के दावेदार रहे हैं। आज की तारीख में भी अगर वो एनडीए में नहीं होते तो उन्हें पीएम पद के एक दावेदार के रूप में देखा जाता। ये बात अलग है कि देश में अभी विपक्ष गठबंधन के सत्ता में आने की उम्मीद नहीं है। इंडिया गठबंधन का जो रूप आज सबके सामने दिख रहा है उसके पीछे नीतीश कुमार का ही दिमाग था। इंडिया गठबंधन नीतीश कुमार का न केवल ब्रेन चाइल्ड है बल्कि उन्हीं के प्रयासों से यह रूप ले सका था। देश भर के विपक्षी नेताओं को एकजुट करना उन्हीं के वश का था। देश में कोई भी दूसरा नेता यह कार्य करने में सक्षम नहीं था। इसके साथ ही नीतीश कुमार बिहार में एक विचार भी हैं। अतिपिछड़ों के रूप में एक नया वोट बैंक उन्होंने तैयार किया जिसके बल पर करीब ढाई दशक से वो बिहार पर राज कर रहे हैं।इस तरह बिहार में नीतीश कुमार के नीचे काम करना नेताओं के लिए सम्मानजनक बन जाता है। एकनाथ शिंदे को अभी नीतीश कुमार बनने में बहुत खून पसीना बहाना होगा। एकनाथ शिंदे को बिहार का सीएम इसलिए नहीं बनाया गया था कि वो महाराष्ट्र के कद्दावर नेता हैं या एक कुशल प्रशासक हैं। वो समय की मांग थी। शिवसेना तोड़कर आये थे। महाराष्ट्र में ये संदेश न जाए कि इस तोड़फोड़ से शिंदे को क्या मिला?

बिहार वाली गलती महाराष्ट्र में करके बीजेपी पछता ही रही है। इसलिए अब दुबारा गलती नहीं करना चाहेगी। हम सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में लाड़की बहिन योजना ने महाराष्ट्र चुनावों में जीत में बड़ी भूमिका निभाई है। पर इसका श्रेय एकनाथ शिंदे को मिल रहा है। क्योंकि जब ये लागू किया गया मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही थे। जबकि सरकार एनडीए की थी। योजना लागू करने का फैसला पूरी सरकार का था। बिना बीजेपी की सहमति के कोई फैसला लागू नहीं हो सकता था। इसी तरह बिहार में जितनी लोककल्याणकारी योजनाएं लागू हो रही हैं उसका श्रेय नीतीश कुमार के नाम जा रहा है। जबकि दो डिप्टी सीएम बीजेपी के हैं। इसलिए बिहार वाली गलती एक बार फिर महाराष्ट्र में बीजेपी नहीं करेगी। इस बात को शिवसेना भी अब समझ गई है।

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि बिहार में नीतीश कुमार के नीचे रहने के लिए बीजेपी की मजबूरी यह है कि आरजेडी वहां एक सशक्त विपक्ष के रूप में मौजूद है। आरजेडी को सरकार में आने के लिए मात्र 9 विधायकों की जरुरत है। बिहार में आरजेडी और बीजेपी के पास विधायकों की संख्या करीब करीब बराबर ही हैं। जेडीयू के आने के बाद भी बिहार में एनडीए के पास मात्र 6 विधायक ही बहुमत से ज्यादा हैं।जबकि महाराष्ट्र में आज ऐसी स्थिति नहीं है। महाराष्ट्र में बीजेपी एक बहुत बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। 132 बीजेपी विधायक दूसरी पार्टियों के मुकाबले बहुत बड़ी संख्या है। इसलिए नैतिक रूप से भी महाराष्ट्र में उसका सीएम बनने का अधिकार बनता है।

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