नदी की धारा में दिशा भटक चुका व्यक्ति जैसे हर तिनके का सहारा लेने की कोशिश करता है, कांग्रेस कुछ वैसे ही हाथ-पांव मार रही है। लेकिन तिनकों से किसी का बचाव होता नहीं है।
कांग्रेस कार्यसमिति ने जातीय अस्मिता की राजनीति में अपनी पार्टी का उद्धार देखने की राहुल गांधी की लाइन पर मुहर लगा दी है। पार्टी ने अब आधिकारिक रूप से वादा कर दिया है कि अगर वह सत्ता में आई तो राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराएगी। संभवत: पार्टी को यह उम्मीद होगी कि इस वादे से ओबीसी जातियां कांग्रेस के पीछे गोलबंद हो जाएंगी।
जाहिरा तौर पर जातीय जनगणना की मांग ओबीसी राजनीति करने वाली यानी मंडलवादी पार्टियों की है। इसलिए कि अनुसूचित जाति और जातियों की गणना तो दशकीय जनगणना में होती ही रही है। विडंबना यह है कि ऐसी मांगों को अपनी सियासत के केंद्र में रखने के बावजूद मंडलवादी पार्टियों का आधार खिसकता गया है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए पिछड़ी से लेकर दलित जातियों तक में अपनी पैठ गहरी करती गई है। इस लिहाज से मंडलवादी नारे एक्सपायर्ड दवा होकर रह गए हैँ।
कांग्रेस को अब इसमें अपना उद्धार दिखता है, तो इसे पार्टी की भटकी सोच का संकेत ही माना जाएगा। भटकाव का आलम यह है कि एक तरफ पार्टी खुद पर मंडलवादी रंग चढ़ाने की होड़ में उतर गई है, उसी समय हरियाणा में पार्टी के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने ब्राह्मण सम्मेलन आयोजन किया। इस मौके पर उन्होंने वादा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो किसी ब्राह्मण को उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। अब कांग्रेस के दो रूप देखकर कौन-सी जाति क्या संदेश ग्रहण करेगी?
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने कांशीराम की विरासत को हथियाने की मुहिम शुरू करने का फैसला किया है। वैसे भी जातीय सम्मेलनों का आयोजन कांशीराम की रणनीति का ही हिस्सा था। तो एक साथ कांग्रेस लोहियावादी/मंडलवादी, कांशीरामवादी और ब्राह्मणवादी सब बनने की फिराक में है। यह क्या बताता है? यही कि नदी की धारा में दिशा भटक चुका व्यक्ति जैसे हर तिनके का सहारा लेने की कोशिश करता है, कांग्रेस कुछ वैसे ही हाथ-पांव मार रही है। लेकिन तिनकों से किसी का बचाव होता नहीं है। चूंकि कांग्रेस अपने लिए विचारधारा आधारित पुख्ता सियासी नौका तैयार नहीं कर पाई है, इसलिए उसे भी तिनकों में ही सहारा दिख रहा है।