रमेश शर्मा
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुछ ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपने संघर्ष से अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिये नया इतिहास रचने वाली पीढ़ी तैयार की। ऐसे ही महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे शरत चन्द्र बोस। ये नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बड़े भाई थे। नेताजी सुभाषचन्द्र को उन्होंने ही आजाद हिन्द फौज गठित करने के लिये प्रेरित किया था।
ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व और विचारक शरत चन्द्र बोस का जन्म 6 सितम्बर 1889 को उड़ीसा प्राँत के अंतर्गत कटक में हुआ था। पिता जानकी नाथ बोस कटक (उड़ीसा) क्षेत्र के सुविख्यात एडवोकेट थे। उन्हें अंग्रेजों ने राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था। माता प्रभावती संस्कारवान महिला थीं जो भारतीय परंपराओं के अनुरूप जीवन जीने की समर्थक थीं। शरत बाबू नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बड़े भाई थे। दोनों की आयु में आठ वर्षों का अंतर था। सुभाष बाबू बचपन से शरत जी का अनुसरण करते थे और उनका मार्ग दर्शन लेकर आगे कार्य करते थे। समय के साथ शरत चन्द्र बोस का विवाह विभावती देवी से हुआ और परिवार कलकत्ता आ गया। शरद बाबू की आरंभिक शिक्षा कटक में हुई और आगे की पढ़ाई कलकत्ता में हुई। जब कलकत्ता आये तब पूरे बंगाल का वातावरण उथल-पुथल भरा था। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी थी, जिसका भारी विरोध होनै लगा। यह विरोध दोनों प्रकार से था- अहिसंक और क्राँतिकारी आँदोलन। शरत बाबू छात्र जीवन में थे और बंगाल विभाजन विरोधी आँदोलन से शामिल हुये। इसके साथ ही वे काँग्रेस से जुड़ गये।
1909 में उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से एमए किया और इसी वर्ष काँग्रेस की विधिवत सदस्यता भी ली। लगभग दो वर्ष कलकत्ता रहे और 1911 में वकालत पढ़ने लंदन चले गये। 1914 में बैरिस्टर बन कर भारत लौट आये। कलकत्ता लौट कर वकालत के साथ सामाजिक जीवन में भी सक्रिय हुये। वे कई बार कलकत्ता नगर निगम के एल्डरमैन बने और बंगाल विधान परिषद के सदस्य भी रहे। वे अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के अपमान के विरुद्ध थे और प्रयास करते थे कि भारतीयों को वही नागरिक सम्मान मिले जो अंग्रेजों का था। वे गुप्त रूप से क्राँतिकारियों की सहायता करने लगे। उनकी ओर से अदालत में पैरवी भी की गई। इसके साथ वे भारतीय परिवारों के आंतरिक जीवन में अपनी परंपराओं के समर्थक थे लेकिन खुल कर सामने आये 1930 में। तब देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ हुआ। शरत जी अपनी प्रैक्ट्रिस और अन्य सभी दायित्व त्याग कर आँदोलन में शामिल हो गये। सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने के कारण 1932 में वे गिरफ्तार हुये और उनहें तीन साल का कारावास मिला।
जेल से निकलने के बाद अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयारी आरंभ की। शरत जी फारवर्ड ब्लॉक से जुड़े और अनेक विदेश यात्राएँ कीं। वे भारत के बाहर अंग्रेजों के विरुद्ध विश्व जनमत बनाना चाहते थे। जापान और जर्मनी की राजशक्ति को भारतीय क्राँतिकारियों से जोड़ने में शरत जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व संभालने के लिये न केवल प्रेरित किया अपितु गुप्त रूप से सैन्य भर्ती अभियान भी चलाया। 11 दिसंबर 1941 को उन्हें घर में नज़रबंद कर दिया गया। यह नजरबंदी उनकी अकेले की नहीं थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को भी उनके साथ नजरबंद किया गया था। उन्होंने सुभाष बाबू को वेष बदलकर और शरीर पर भूरा लेप लगाकर नजरबंदी से निकाल दिया था। यह शरत बाबू की ही युक्ति थी जिससे सुभाष चंद्र बोस सुरक्षित निकल सके और आजाद हिन्द फौज का काम आगे बढ़ सका। वे चार वर्षों तक अपने ही घर में नजरबंद रहे। नजरबंदी हटी तो पुनः कांग्रेस में सक्रिय हो गये।
1945 के बाद भारत से अंग्रेजों की विदाई और भारत विभाजन की भूमिका बनने लगी। वे संविधान सभा के सदस्य बने लेकिन उन्हें जल्दी ही संविधान सभा को छोड़ना पड़ा। शरत जी चाहते थे कि भारत का संविधान अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त रहे और पूर्णतया भारतीय बने। इसी बिन्दु पर उनके काँग्रेस और अन्य सदस्यों से मतभेद हुये और शरत जी ने संविधान सभा से त्यागपत्र दे दिया। काँग्रेस और तत्कालीन राजनेताओं से उनके मतभेद केवल संविधान के प्रारूप को लेकर ही नहीं हुये, वे भारत विभाजन के विरुद्ध थे। उन्होंने भारत विभाजन का खुलकर विरोध किया। विभाजन के विरुद्ध बंगाल का जनमत तैयार करने के लिये सभायें कीं। लेकिन उस समय बंगाल का वातावरण कुछ ऐसा था जिसमें किसी को किसी बात समझ न आ रही थी। सबको अपनी जानमाल की पड़ी थी।
शरत जी चाहते थे कि काँग्रेस, मुस्लिम लीग और अँग्रेजों की मिलीभगत में साथ न दे और भारत विभाजन का विरोध करे लेकिन पाकिस्तान की माँग को लेकर मुस्लिम लीग द्वारा अगस्त 1946 से चलाये गये डायरेक्ट एक्शन से भारी हिंसा होने लगी और भारत विभाजन के लिये काँग्रेस ने सहमति दे दी। इससे असंतुष्ट होकर शरत जी ने जनवरी 1947 में काँग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फरवरी 1947 से माउंटबेटन की भारत विभाजन योजना के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया। वे चाहते थे कि बंगाल संयुक्त रहे। इसके लिये उन्होंने समाचार पत्र निकाल कर जनजागरण भी करना चाहा। लेकिन बंगाल में मुस्लिम लीग की हिंसक आँधी चल रही थी। हजारों लोगों के प्राण गये। लाखों बेघर हुये। शरत जी का अखंड बंगाल सपना टूट गया। रक्त की मानों नदी बह गई और बंगाल विभाजन के साथ भारत भी विभाजित हो गया। इस विभाजन से आहत शरत जी ने स्वयं को सार्वजनिक जीवन से अलग कर लिया और पूरी तरह लेखन को समर्पित हो गये। शरत जी 20 फरवरी 1950 को देह त्याग कर परम ज्योति में विलीन हो गये। बाद में उनके भाषणों और लेखन का संग्रह प्रकाशित हुये जिनमें “बंधन की महिमा” संग्रह सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ।