उन्नाव। कल्याणी नदी के कल्याण में जुटे प्रशासन ने अब जर्मनी की एक्सपर्ट एजेंसी के माध्यम से सैटेलाइट सर्वे का खाका तैयार किया है। पिछले माह स्थलीय सर्वे करने के बाद रिपोर्ट तैयार करने के आदेश पर बारिश ने रोक लगा दी। इसके बाद प्रशासन ने सैटेलाइट सर्वे की कवायद शुरू की और संस्था से नदी की भौगोलिक स्थिति पर 15 सितंबर तक रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
हरदोई के माधौगंज से निकलने वाली कल्याणी नदी गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में एक है। जिले के गंजमुरादाबाद, बांगरमऊ, फतेहपुर चौरासी, सफीपुर व सिकंदरपुर सरोसी ब्लाक के लगभग 32 गांवों से कल्याणी नदी निकलती है। पिछले कई सालों से इस नदी के प्रवाह क्षेत्र पर कटरी के भू और खनन माफियाओं ने कब्जा करके अवैध तरीके से खनन किया। कई स्थानों पर कब्जा कर इसे समतल कर खेती भी शुरू कर दी गई। इससे पड़ोसी जिले हरदोई और उन्नाव के कई गांवों के लिए कभी जीवनदायिनी रही कल्याणी नदी अब विलुप्त सी हो गई है। 80 किमी लंबी यह नदी क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर को भी सहेजे थी। यह नदी बिठूर के पास पहुंचकर गंगा नदी में मिलती है। बीते नौ जुलाई को डीएम गौरांग राठी व सीडीओ प्रेम प्रकाश मीणा ने सिंचाई विभाग, बांगरमऊ तहसील के अधिकारियों और लखनऊ से आई निजी संस्था के साथ चंपूपुरवा और नानामऊ मार्ग स्थित नदी की वर्तमान स्थिति को देखा था। डीएम ने सिंचाई विभाग के एक्सईएन दीपक यादव से स्थलीय सर्वे के मध्यम से नदी की कुल लंबाई, चौड़ाई और गहराई की पूरी रिपोर्ट देने के लिए कहा था। हालांकि इसके बाद बारिश शुरू हो गई थी, इससे स्थलीय सर्वे का काम शुरू होने से पहले ही रुक गया था। बारिश का पानी सूखने का इंतजार करना छोड़ जिला प्रशासन ने जर्मनी की संस्था जीआईजेड से संपर्क किया। यह संस्था सैटेलाइट के जरिए कई नदियों का सर्वे कर चुकी है।
सीडीओ प्रेम प्रकाश मीणा ने बताया कि धरातलीय सर्वे के लिए नदी के सूखने का इंतजार करना पड़ेगा। उसमें समय ज्यादा लगेगा। संस्था के पदाधिकारियों से 15 सितंबर तक सर्वे रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। रिपोर्ट के आधार पर आगे की तैयारी शुरू की जाएगी।
दो साल पहले मंत्री ने चलाया था फावड़ा
वर्ष 2022 में जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बांगरमऊ के एक गांव से फावड़ा चलाकर पुनरोद्धार कार्य की शुरुआत की थी। इसके बाद कुछ गांवों में मनरेगा से खोदाई भी की गई लेकिन बाद में बारिश, फिर चुनाव और आखिर में अफसरों के तबादलों से नदी को पुराने स्वरूप में लाने की योजना ठंडे बस्ते में चली गई।