ऋषिकेश । ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस की अंतरराष्ट्रीय महासचिव और परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में स्थित डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती ने विश्व विख्यात धर्म संसद में एक विशिष्ट वक्ता के रूप में सहभाग कर विश्व के लगभग 100 देशों से आये प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। शिकागो में आयोजित धर्म संसद में साध्वी भगवती सरस्वती ने 7 सत्रों को सम्बोधित किया है।
धर्म संसद अमेरिका में उसी शहर में आयोजित की गयी है, जहां 1893 की मूल संसद हुई थी, जिसमें स्वामी विवेकानन्द ने भारत का प्रतिनिधित्व कर अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था। इस वर्ष फिर से वहीं पर धर्म संसद का आयोजन किया गया जिसमें विश्व के लगभग 100 देशों से 6500 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभाग कर ‘स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा हेतु आह्वान’ विषय पर अपना उद्बोधन दिया।
धर्म संसद मं साध्वी भगवती सरस्वती ने विभिन्न विषयों पर भारतीय चिंतन और दर्शन पर आधारित वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि जल व पर्यावरण संरक्षण के लिए आस्था आधारित संगठन (धार्मिक संगठन) मिलकर अद्भुत कार्य कर सकते हैं। हमारी धरती माता, हमारे ग्रह और जल स्रोतों के संरक्षण में धर्मगुरुओं और आस्था आधारित संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।साध्वी भगवती सरस्वती ने महिला धर्मगुरुओं पर केंद्रित दो पैनलों में भी सहभाग किया। पहला, ‘शांति निर्माता के रूप में आस्था आधारित संगठनों की नारी शक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान’ और दूसरा ‘शांतिपूर्ण व टिकाऊ दुनिया के निर्माण के लिए महिला धर्मगुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका’ पर चितंन किया गया। इन दोनों पैनलों में शांति और स्थिरता लाने में महिला धर्मगुरुओं के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया।
भगवती सरस्वती ने जलवायु परिवर्तन पर धर्म संसद द्वारा आयोजित किए गए एक शक्तिशाली सत्र में भी सहभाग कर उद्बोधन दिया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने प्रार्थनाएं, शिक्षाएं, संदेश, मंत्र और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सतत व सुरक्षित सिद्धांत साझा किए।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी की एक गरिमा होती है, यह अपने आप में बहुमूल्य है, और मनुष्य होने के नाते उसे गरिमामय जीवन जीने का पूरा अधिकार है, इसलिए जन्म लेते ही प्रकृति उसे वे सब अधिकार प्रदान करती है जो एक मानव जाति के अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। प्रकृति द्वारा दिये गये अधिकारों का उपभोग करने के साथ ही प्रकृति के प्रति अपने जो भी कर्तव्य है उसका भी निर्वहन करना सभी का परम धर्म है, यही संदेश भारतीय संस्कृति हमें देती है।