5 साल से राजस्थान की राजनीति में बड़े पद के साथ लौटने की कवायद में जुटे सचिन पायलट फिर से एक्टिव हो गए हैं. पायलट इस बार दिल्ली से लेकर राजस्थान तक मजबूत सियासी बिसात बिछा रहे हैं. पायलट जहां दिल्ली में सक्रिय होकर कांग्रेस हाईकमान को साध रहे हैं, वहीं राजस्थान का दौरा कर अपनी सियासी जमीन को मजबूत कर रहे हैं.
पायलट की सक्रियता देख दिल्ली से जयपुर तक यह चर्चा है कि क्या इस बार उन्हें सफलता मिल पाएगी?
2025 में अध्यक्ष का चुनाव प्रस्तावित
कांग्रेस 2025 में संगठन पर्व चलाने जा रही है. बेलगावी में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसकी घोषणा भी कर दी है. इसके तहत हर राज्य में ऊपर से नीचे तक संगठन में बदलाव किए जाएंगे. राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी नियुक्ति होनी है. वर्तमान अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कार्यकाल इस साल के मध्य में खत्म हो जाएगा.
डोटासरा 2020 में कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे. उस वक्त पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. कहा जा रहा है कि वर्तमान में कांग्रेस जिसे अध्यक्ष नियुक्त करेगी, उसी के नेतृत्व में 2028 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी.
ऐसे में राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सचिन पायलट के लिए अहम है. 2018 में पायलट की अध्यक्षता में ही कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. हालांकि, अशोक गहलोत की वजह से पायलट मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे.
महासचिव पायलट की नजर अध्यक्ष कुर्सी पर
सचिन पायलट वर्तमान में राष्ट्रीय महासचिव हैं और उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रभारी भी नियुक्त किया गया है, लेकिन पायलट की नजर राजस्थान अध्यक्ष की कुर्सी पर है. 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही पायलट अध्यक्ष की कुर्सी के लिए जोर लगा रहे हैं.
यही वजह है कि अपने प्रभार वाले राज्य छत्तीसगढ़ से ज्यादा पायलट राजस्थान का ही दौरा कर रहे हैं. पायलट समर्थकों का मानना है कि अध्यक्ष की कुर्सी मिलने से सचिन पायलट फिर से मुख्यमंत्री पद की रेस में फ्रंटरनर बन सकते हैं.
गहलोत फॉर्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं पायलट?
राजस्थान कांग्रेस के भीतर अशोक गहलोत को सचिन पायलट का मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. 2018 में कांग्रेस ने पायलट की जगह गहलोत को सीएम की कुर्सा सौंप दी. इसके बाद दोनों की सियासी अदावत ने कई मौकों पर सुर्खियां बटोरा. हालांकि, राजस्थान की सियासत में मजबूती से पांव जमाने के लिए अब सचिन पायलट गहलोत के पुराने फॉर्मूले से ही आगे बढ़ रहे हैं.
कहा जाता है कि गहलोत शुरू से ही जितना राजस्थान की सियासत में एक्टिव रहे, उतने ही दिल्ली के क्षत्रपों को साधते रहे. हाईकमान को साधने की वजह से ही अशोक गहलोत को 3 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. गहलोत की वजह से कांग्रेस के कई दिग्गज राजस्थान की सियासत से साइड लाइन हो गए.
2018 में जब अशोक गहलोत को राजस्थान मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, उस वक्त वे संगठन महासचिव थे, जो कांग्रेस अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे बड़ा पद होता है. उस वक्त राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे.
अब पायलट भी उसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं. पायलट जहां राजस्थान का दौरा लगातार कर रहे हैं. वहीं दिल्ली को भी साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
- 3 दिन पहले सोनिया गांधी के दिवंगत निजी सचिव माधवन को लेकर एक आयोजन था. इस कार्यक्रम में सोनिया और राहुल पहुंचे थे. कार्यक्रम में इन दोनों नेताओं के अलावा पायलट ही बड़े नेता थे, जो मौजूद थे. पायलट को सोनिया और राहुल की बगल वाली कुर्सी दी गई थी. सोनिया और राहुल के साथ पायलट की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.
- कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव को लेकर स्टार प्रचारकों की जो सूची चुनाव आयोग को भेजी है, उन नामों की सिफारिश सचिन पायलट के लेटरपेड से ही की गई है. आमतौर पर नामों की सिफारिश संगठन के महासचिव करते हैं. कांग्रेस के भीतर पायलट के हस्ताक्षर से भेजे गए इन नामों की खूब चर्चा है.
- सचिन पायलट जहां दिल्ली में एक्टिव हैं. वहीं लगातार राजस्थान का भी दौरा कर रहे हैं. पायलट मंगलवार को राजसमंद और सिरोही जिले के दौरे पर थे. पिछले एक महीने में पायलट करीब 10 जिलों का दौरा कर चुके हैं.