पढ़िए मां ललिता की पौराणिक कथा

नई दिल्ली। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर ललिता जयंती मनाई जाती है। यह दिन माता ललिता को समर्पित माना जाता है, जो माता सती का ही रूप हैं। शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता है कि माता ललिता दस महाविद्याओं में से तीसरी महाविद्या हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ललिता जयंती पर पूरे विधि-विधान से माता ललिता की पूजा करने से साधक को सुख-वैभव की प्राप्ति हो सकती है। 

ललिता जयंती की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब एक बार माता सती के पिता दक्ष यज्ञ करवा रहे थे, जिनमें उन्होंने शिव जी को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन माता पार्वती यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। भगवान शंकर के मना करने पर वह उनसे अनुमति लिए बिना ही दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पहुंच गईं। वहां, दक्ष ने शिव जी का अपमान किया, जो माता सती सुन सकीं। खुद को अपमानित महसूस करते हुए सती ने अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

भगवान विष्णु ने उठाया ये कदम

इस बात का पता चलने पर महादेव क्रोधित हो उठे। उन्होंने मां सती के शव को कंधे पर उठाया और उन्मत्त भाव से इधर-उधर घूमने लगे। इस दौरान पूरे विश्व की व्यवस्था छिन्न भिन्न होने लगी। ऐसे में स्थिति को संभालने के लिए विष्णु जी ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। उनके अंग जहां-जहां गिरे वह उन्हीं आकृतियों में वहां विराजमान हुईं। आज यह स्थान शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक स्थान मां ललिता का भी है।

यहां गिरा था सती का हृदय

बताया जाता है कि नैमिषारण्य में माता सती का हृदय गिरा था। यह एक लिंग्धारिणी शक्तिपीठ स्थल माना जाता है। इस स्थान पर भगवान शिव की लिंग स्वरूप में पूजा की जाती है। इसी के साथ माता ललिता की भी पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं, अन्य मान्यताओं के अनुसार माता सती ने शिव जी को हृदय में धारण किया था, इसलिए नैमिष में लिंग्धारिणी नाम से प्रसिद्ध माता को ललिता देवी के नाम से भी पुकारा जाता है।

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