2018 की तरह कांग्रेस के भीतर अगर सचिन पायलट और अशोक गहलोत की जुगलबंदी होती तो, राजस्थान का रिवाज बदल सकता था. राजस्थान 20 सीटों पर कांग्रेस पायलट और गहलोत के आपसी मनमुटाव की वजह से चुनाव हार गई है. चुनाव परिणाम के आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं.
पायलट और गहलोत के झगड़े की वजह से कांग्रेस 14 सीटें 10 हजार से भी कम मार्जिन से हार गई है. इन सीटों में ममता भूपेश की सिकराय, प्रमोद जैन भाया की अंटा, विश्वेंद्र सिंह की डीग-कुम्हेर और वाजिब अली की नगर सीट शामिल हैं.
गहलोत से झगड़ा का नुकसान पायलट खेमे को भी हुआ है. पायलट गुट को नसीराबाद, विराटनगर और चाकसू में हार का सामना करना पड़ा है.
जानकारों का मानना है कि अगर ये 20 सीटें कांग्रेस जीत जाती, तो राज्य का समीकरण कुछ और होता. चुनाव आयोग के मुताबिक राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को 115, कांग्रेस को 69, बीएपी को 3, बीएसपी को 2 और आरएलपी को 1 सीटों पर जीत मिली है.
राज्य की 8 सीटें निर्दलीय के खाते में गई हैं. इनमें से 6 निर्दलीय भारतीय जनता पार्टी से बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे थे.
दोनों की अदावत से इन सीटों पर बिगड़ा कांग्रेस का खेल
अंटा और छबरा- बारां जिले की इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की हार अंदरूनी राजनीति की वजह से हुई. अंटा सीट से गहलोत सरकार के मंत्री प्रमोद जैन भाया चुनाव लड़ रहे थे. भाया बीजेपी के कंवरलाल मीणा से 5861 वोटों से चुनाव हारे हैं.
इसी तरह छबरा में पूर्व विधायक करण सिंह को पार्टी ने उतारा था. करण सिंह भी 5108 वोटों से हारे हैं. यहां से बीजेपी के प्रताप संघवी ने जीत दर्ज की है.
दोनों सीट पर कांग्रेस उम्मीदवारों के हारने की मुख्य वजह सचिन पायलट गुट के नरेश मीणा हैं. यह दोनों सीट मीणा बहुल मानी जाती है. चुनाव से पहले नरेश ने भाया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
नरेश अंटा या छबरा सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने मीणा समाज की बैठक बुलाई और छबरा सीट से लड़ने का ऐलान कर दिया. छबरा सीट से नरेश जीतने में सफल नहीं रहे, लेकिन उन्हें 41 हजार वोट मिले.
नरेश की वजह से अंटा सीट पर भी मीणा वोटर्स पोलराइज हो गए. यहां खेल बिगड़ने की आशंकाओं के बावजूद पायलट और गहलोत ने मिलकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश नहीं की.
खंडेला- सीकर जिले की खंडेला सीट भी कांग्रेस पायलट और गहलोत की अदावत की वजह से हारी है. पायलट अपने करीबी सुभाष मील को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन गहलोत निर्दलीय महादेव खंडेला के लिए अड़ गए.
सुभाष मील पिछली बार सिर्फ 4 हजार वोट से चुनाव हारे थे. टिकट नहीं मिलने के बाद मील ने तुरंत बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी ने भी मील को हाथों-हाथ टिकट दे दिया. मील यहां से 42 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं.
चौहटन- यहां से कांग्रेस के टिकट पर पद्माराम चुनाव लड़ रहे थे. पद्माराम को जिताने के लिए 2018 में सचिन पायलट ने पूरी ताकत झोंक दी थी. गहलोत-पायलट की अदावत की वजह से इस बार चोहटन में पद्माराम अकेले पड़ गए.
पद्माराम 1428 वोटों से चुनाव हारे हैं. पद्माराम के हार के पीछे स्थानीय समीकरण भी जिम्मेदार है. जानकारों का कहना है कि अगर दोनों सीनियर नेता सही से बिसात बिछाते तो पद्माराम चुनाव जीत सकते थे.
डीडवाना- यहां से निर्दलीय यूनूस खान ने कांग्रेस के चेतन डूडी को 2392 वोटों से हराया है. डीडवाना गुर्जर और मुस्लिम बहुल इलाका है. मानेसर प्रकरण से पहले डूडी पायलट के खास माने जाते थे, लेकिन इस प्रकरण में उन्होंने गहलोत का साथ दे दिया.
सचिन पायलट समर्थक खुले तौर पर डीडवाना में चेतन को हराने की अपील कर रहे थे. एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए चेतन डूडी ने हार का बड़ा कारण बीजेपी के सभी वोट यूनूस खान में शिफ्ट होना बताया है.
क्या पायलट आपके लिए कैंपेन करते तो स्थिति बदल सकती थी? इस सवाल के जवाब में डूडी कहते हैं- जरूर बदल सकती थी, लेकिन अब इस पर विचार और बात करने से कोई फायदा नहीं होगा. मैं आलाकमान को अपनी रिपोर्ट दूंगा.
डीग-कुम्हेर- एक वक्त सचिन पायलट के वफादार रहे महाराज विश्वेंद्र सिंह भी चुनाव हार गए हैं. डीग-कुम्हेर सीट पर बीजेपी के शैलेंश सिंह ने उन्हें 7895 वोटों से हराया है. विश्वेंद्र सिंह गहलोत सरकार में पर्यटन मंत्री थे.
विश्वेंद्र की हार की वजह पायलट छोड़ गहलोत खेमे में जाना बताया जा रहा है. पायलट की वजह से सिंह के बेटे भी उनसे बागी हो गए थे.
सिंह के गहलोत खेमे में जाने की वजह से पायलट ने इस बार डीग-कुम्हेर में कोई रैली नहीं की. एक वक्त पायलट और विश्वेंद्र की दोस्ती की चर्चा सियासी गलियारों में खूब होती थी. मानेसर की बाड़ेबंदी में सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
हवामहल- जयपुर की हवामहल सीट भी कांग्रेस करीबी मुकाबले में हार गई है. बीजेपी के बालमुकुंद आचार्य ने कांग्रेस के आरआर तिवारी को 974 वोटों से हराया है. यह सीट भी पायलट और गहलोत की अदावत में कांग्रेस के हाथ से खिसक गई है.
दरअसल, इस सीट से गहलोत सरकार में मंत्री महेश जोशी विधायक थे, लेकिन सितंबर 2022 की घटना की वजह से कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया. आखिर में आरआर तिवारी को टिकट मिला, जिसकी वजह से वे चुनाव जीतने में असफल साबित हुए.
सितंबर 2022 में अशोक गहलोत के समर्थन में 89 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. इन विधायकों का नेतृत्व महेश जोशी और शांति धारीवाल कर रहे थे.
कोटपूतली- जयपुर की इस सीट पर गहलोत के मंत्री राजेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन यादव बीजेपी के हंसराज पटेल से 321 वोटों से चुनाव हार गए हैं. कोटपूतली गुर्जर बहुल इलाका है.
पिछली बार पायलट ने कोटपूतली में जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इस बार वे यहां के कैंपेनिंग से नदारद रहे. यादव की हार की चर्चा इसलिए भी हो रही है, क्योंकि बीजेपी इस बार मजबूत बागी यहां मैदान में थे.
कहा जा रहा है कि गुर्जर मतदाताओं ने पटेल का रूख किया, जो हार का बड़ा कारण बना.
नगर- 2018 में इस सीट से सचिन पायलट के चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही थी. यह सीट मुस्लिम और गुर्जर बहुल है. वाजिब अली इस बार नगर सीट से चुनाव मैदान में थे, लेकिन उन्हें 1531 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है.
बीजेपी के जवाहर सिंह बेधम ने उन्हें चुनाव हराया है. वाजिब 2018 में बीएसपी से चुनाव जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए थे. मानेसर और सितंबर 2022 के प्रकरण में उन्होंने खुलकर गहलोत का साथ दिया था.
नसीराबाद- कांग्रेस ने नसीराबाद सीट पर शिवप्रकाश गुर्जर को मैदान में उतारा था. गुर्जर को टिकट दिलाने में सचिन पायलट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. शिवप्रकाश गुर्जर 1135 वोटों से चुनाव हार गए है.
पायलट ने शिवप्रकाश को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. मुस्लिम, रावत और गुर्जर बहुल नसीराबाद में माली वोटर्स भी गेम बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस सीट पर करीब 12 हजार माली वोटर्स हैं.
कहा जा रहा है कि पायलट के करीबी होने की वजह से शिवप्रकाश को माली वोट नहीं मिले.
ओसियां- फायरब्रांड दिव्या मदरेणा भी जोधपुर की ओसियां से चुनाव हार गई है. मदरेणा को बीजेपी के भेराराम चौधरी ने 2807 वोटों से हराया है. दिव्या गहलोत पर लगातार हमलावर थी.
हार के बाद दिव्या ने शिवमंगल सिंह सुमन की कविता का एक अंश शेयर किया है, जिसमें लिखा है- ‘यह हार एक विराम है. जीवन महासंग्राम है. तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं. वरदान माँगूँगा नहीं.’
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के बड़े नेता अगर दिव्या के पक्ष में समीकरण बनाते, तो शायद ओसियां सीट कांग्रेस के खाते में आ जाती.
सवाई माधोपुर- पूर्वी राजस्थान में आमतौर पर गुर्जर और मीणा के बीच सियासी अदावतें खूब देखने को मिलती है, लेकिन सवाई माधोपुर सीट पर इस बार गुर्जर और मीणा ने मिलकर बीजेपी को वोट किया है. वजह- पायलट और गहलोत की अदावत है.
सवाई माधोपुर सीट पर गुर्जर, मुस्लिम और मीणा का दबदबा है. कांग्रेस यहां गुर्जर और मुस्लिम समीकरण के सहारे चुनाव जीत रही थी. पार्टी ने इस बार भी मुस्लिम दानिश अबरार को मैदान में उतारा था.
अबरार मानेसर प्रकरण से पहले सचिन पायलट के करीबी थे, लेकिन बाद में गहलोत खेमे में आ गए. चुनाव से पहले गुर्जरों ने दानिश का खूब विरोध किया था और उन्हें गद्दार बताया था.
विरोध कर रहे नेताओं का कहना था कि सचिन ने दानिश को 2018 में जितवाया, लेकिन उन्होंने गहलोत का साथ दे दिया. गुर्जरों का विरोध देखते हुए दानिश ने पायलट से सवाई माधोपुर में रैली करने का निवेदन किया था.
अबरार समर्थकों का कहना है कि उन्होंने पायलट से 3 बार यहां जनसभा करने के लिए कहा था, लेकिन पायलट तैयार नहीं हुए. सवाई माधोपुर में दानिश बीजेपी के किरोड़ी लाल मीणा से 22510 वोटों से चुनाव हार गए हैं.
शिव- बाड़मेर की शिव सीट पर तो कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही है. यहां से निर्दलीय रविंद्र भाटी चुनाव जीते हैं. दूसरे नंबर पर फतेह खान रहे हैं, जो पायलट के करीबी माने जाते हैं. शिव सीट पर जीत का अंतर मात्र 3950 वोटों का है.
सिकराय- इस सीट पर गहलोत सरकार की मंत्री ममता भूपेश कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थी. सिकराय सीट गुर्जर और मीणा बाहुल्य है. ममता भूपेश 9428 वोटों से चुनाव हार गई हैं. बीजेपी के विक्रम वंशीवाल ने उन्हें हराया है.
चुनाव से पहले पायलट के समर्थकों ने ममता का विरोध किया था. ममता भूपेश की गिनती अशोक गहलोत के वफादार के रूप में होती है.
जमवारामगढ़- कांग्रेस यह सीट भी हार गई है. गोपाल मीणा यहां से उम्मीदवार थे. चुनाव से पहले मीणा का एक पत्र खूब वायरल हो रहा था. उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को यह पत्र लिखा था, जिसमें अपने क्षेत्र में पायलट की सभा कराने की गुजारिश की थी.
जमवारागढ़ सीट मीणा, ब्राह्मण, गुर्जर एवं एससी बाहुल्य है. गोपाल मीणा गुर्जर और मीणा समीकरण के सहारे जीत का स्क्रिप्ट लिखना चाहते थे, लेकिन पायलट ने उनके लिए रैली नहीं की.
पुष्कर- अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अदावत की वजह से पुष्कर सीट भी कांग्रेस के हाथ से फिसल गई है. कांग्रेस ने गहलोत के करीबी नसीम अख्तर को यहां से मैदान में उतारा था. बीजेपी के सुरेश रावत ने उन्हें करीब 13 हजार वोटों से हराया है.
नसीम की हार में पायलट गुट के श्रीगोपाल बहेती ने अहम भूमिका निभाई. बहेती टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय मैदान में उतर गए और खुद 8500 वोट ले आए. इस सीट पर करीब 15 हजार गुर्जर वोटर हैं.
बयाना- कांग्रेस के अमर सिंह यहां से उम्मीदवार थे, जो पायलट कैंप के माने जाते हैं. यहां से बीजेपी के बागी निर्दलीय ऋतु बनावत ने जीत हासिल की है. अमर सिंह को जिताने के लिए पायलट ने पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन समीकरण फिट नहीं बैठ पाया.
बयाना सीट दलित, गुर्जर और ब्राह्मण-जाट बाहुल्य है, लेकिन माली वोटर्स भी यहां जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं.
वैर- गहलोत सरकार के मंत्री भजनलाल जाटव यहां से चुनाव लड़ रहे थे. जाटव को बीजेपी के बहादुर सिंह ने 6972 वोटों से चुनाव हराया है. वैर सीट में भी गुर्जर काफी ज्यादा प्रभावी हैं. यहां गुर्जर मतदाताओं की संख्या करीब 33 हजार के आसपास है.
जाटव अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं. उनकी हार की वजह गुर्जर वोटरों का बीजेपी की ओर मूव करना है.
विराटनगर- सचिन पायलट के करीब इंद्राज गुर्जर भी इस सीट से चुनाव हार गए हैं. बीजेपी के कुलदीप ने उन्हें 17589 वोटों से हराया है. चुनाव से पहले गहलोत से करीबी रामचंद्र सरधना ने यहां बगावत कर दी थी.
सरधना आजाद समाज पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़े थे. चुनाव में उन्हें 18 हजार से ज्यादा मत मिले हैं. एक रैली में राहुल गांधी दोनों नेताओं को एक साथ लाए थे