Raebareli News : भीमेश्वर से भंवरेश्वर बन गए बाबा भोलेनाथ,जानें किन जिलों की सीमा पर सई नदी किनारे स्थित है मंदिर..

उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर स्थित बाबा भोलेनाथ का मंदिर, जो कभी भीमेश्वर के नाम से जाना जाता था, अब भंवरेश्वर के रूप में पुकारा जा रहा है। यह मंदिर तीन जिलों की सीमा पर स्थित है और सई नदी के किनारे बसे हुए हैं।मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आकर बाबा भोलेनाथ के दर्शन करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भोलेनाथ ने भक्तों की हर कठिनाई को दूर करने के लिए विशेष आशीर्वाद दिया था। मंदिर के आसपास का माहौल भक्तों को शांति और दिव्यता का अहसास कराता है, और यह स्थान धर्मिक और पर्यटन दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण बन चुका है।

Raebareli News : उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर स्थित बाबा भोलेनाथ का मंदिर, जो कभी भीमेश्वर के नाम से जाना जाता था, अब भंवरेश्वर के रूप में पुकारा जा रहा है। यह मंदिर तीन जिलों की सीमा पर स्थित है और सई नदी के किनारे बसे हुए हैं।मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आकर बाबा भोलेनाथ के दर्शन करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भोलेनाथ ने भक्तों की हर कठिनाई को दूर करने के लिए विशेष आशीर्वाद दिया था। मंदिर के आसपास का माहौल भक्तों को शांति और दिव्यता का अहसास कराता है, और यह स्थान धर्मिक और पर्यटन दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण बन चुका है।

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Know About Bhavreshwar Mahadev Mandir - Amar Ujala Hindi News Live - खास है  भंवरेश्वर महादेव मंदिर की कहानी, इस बात पर औरगंजेब को मांगनी पड़ी थी माफी

जिले में लखनऊ, उन्नाव और रायबरेली की सीमा पर स्थित भंवरेश्वर मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है। यह मंदिर सई नदी के किनारे स्थित है और अपनी धार्मिक महत्वता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है, विशेष रूप से सावन माह और शिवरात्रि के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है। शिव भक्त यहां पूजा-अर्चना करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण यह स्थान क्षेत्रीय भक्तों के बीच विशेष श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है।

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शादी नहीं होने पर शख्स हुआ परेशान, सावन के महीने में भोले बाबा को लिखा  पत्र, लगाई यह गुहार - bachelor fekan das upset due to not getting marriage  wrote letter toपौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापरयुग में पांडव जब कौरवों के साथ चौसर में हार गए। उन्हें 12 वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा था। भ्रमण के दौरान पांडव सई नदी के किनारे इस क्षेत्र में पहुंचे थे।इस दौरान द्रौपदी शिव की पूजा किए बिना जल ग्रहण नहीं करती थीं। इस पर भीम ने सई नदी से मिलने वाले गंडे को जमीन में स्थापित कर शिवलिंग का रूप दिया था। इसी कारण मंदिर का नाम भीमेश्वर पड़ गया। समय बीता और शिवलिंग जमीन के भीतर समाहित हो गया।

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आखिर क्यों भोले हैं भोलेनाथ? जानें ये अनोखा रहस्य - mahashivratri 2018 why  lord shiva is called bholenath tpra - AajTak15वीं शताब्दी में एक दिन एक चरवाहे की गाय इसी स्थान पर दूध देती थी। इस पर जगह की खोदाई की गई और शिवलिंग को जमीन से निकाला गया। इसी बीच कुर्सी सुदौली की तत्कालीन महारानी को स्वप्न में मंदिर निर्माण का आभास होता है और भीमेश्वर मंदिर की स्थापना होती है। इसके बाद इसकी जानकारी जब मुगल सम्राट औरंगजेब को होती है तो वह मंदिर को तोड़ने का आदेश देता है। इस पर मुगल सैनिक शिवलिंग को जड़ से खोदने में जुटते हैं लेकिन ओर छोर नहीं मिलता है तो शिवलिंग में जंजीरे बंधवा कर हाथियों से खिंचवाने का आदेश दिया जाता है, लेकिन शिवलिंग को सैनिक हिला नहीं पाते हैं। इसी दौरान करोड़ों की संख्या में भंवरे मुगल सेना पर हमला कर देते हैं और सेना को जान बचाकर भागना पड़ता है। इस घटना के बाद से मंदिर का नाम भंवरेश्वर महादेव पड़ता है।

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जय हो भोलेनाथ

पुजारी सुनील बाबा पुजारी मुगल सेना के जाने के बाद मंदिर की फिर से मरम्मत होती है। सैकड़ों साल पुराना यह मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ है। इसके पीछे की कहानी यह है कि जब शिवलिंग को निकालने के लिए जमीन की खोदाई हो रही थी तो फावड़ा लगने से ऊपर का हिस्सा कटकर अलग हो जाता है। उस हिस्से से खून बहने लगा था। जब माफी मांगी जाती है तो खून रिसना बंद हो जाता है। शिवलिंग के उत्तर मैं नंदेश्वर तथा बजरंगबली की मूर्ति स्थापित हैं।

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