रायबरेली। यहां चेहरे मायने जरूर रखते हैं, लेकिन इस बार पार्टियों की भी बातें हैं। इसकी झलक अमेठी के मुन्ना सिंह त्रिशुंडी की बातों में मिलती है। वह कहते हैं कि ‘यहां उम्मीदवार के नाम पर नहीं, पार्टी के नाम पर चुनाव हो रहा है। पंजे के चाहने वालों की कमी नहीं है।
कांग्रेस ने अमेठी को एचएएल, बीएचईएल, वेस्पा जैसे प्रोजेक्ट दिए। राहुल गांधी के अमेठी की बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ने का मुद्दा बना था, लेकिन अब इसकी चर्चा नहीं।’
गौरीगंज में अमेठी की राजनीति पर बहस कर रहे युवा मोहम्मद तबशीर व चक्रपाणि मिश्रा तथा इंद्रेश कुमार कहते हैं- ‘किशोरी लाल (कांग्रेस उम्मीदवार) के विरुद्ध किसी के पास कोई मुद्दा ही नहीं है। उनका वर्षों का जनसंपर्क उनके काम आ रहा है। उनसे कोई भी मिल सकता है। कांग्रेस ने अपनी कूटनीति में भाजपा को उलझा लिया है। चुनाव एकतरफा नहीं होगा।’
अमेठी बनी भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न
अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी लगातार दूसरी जीत के इरादे से चुनाव लड़ रही हैं तो भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपाइयों के अपने दावे हैं।
गौरीगंज के प्रभारी कृपाशंकर मिश्र व संयोजक उमेश प्रताप सिंह मुन्ना बताते हैं- ‘दीदी (स्मृति इरानी) ने पांच वर्षों में बहुत मेहनत की है। उनके कार्यकाल में स्टेडियम, क्रिकेट अकादमी, स्वीमिंग पूल, बाईपास व सड़कों पर काम हुआ।’ वे यह भी कहते हैं कि दीदी दो माह से अधिक समय से अमेठी में डटी हुई हैं और उन्होंने पूरे लोकसभा क्षेत्र का एक बार दौरा पूरा कर लिया है। उनकी सक्रियता का लाभ तो मिलेगा ही।
अमेठी में विकास की स्थिति
अमेठी के जिला मुख्यालय गौरीगंज को कस्बे के रूप में देखकर ही इस बात का एहसास हो जाता है कि अमेठी को विकास के मामले में हमेशा नजरअंदाज किया गया है। 2010 में जिला बनने के बाद काम तो हुए हैं, लेकिन औद्योगीकरण, शिक्षा, सेहत, रोजगार और कानूनी सेवाओं को लेकर अमेठी के लोगों को दूसरे जिलों का सहारा लेना पड़ रहा है। फिर भी चुनाव में यह सब मुद्दा नहीं है।
भाजपा ने स्मृति इरानी को तीसरी बार मैदान में उतारा है तो गांधी परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा कांग्रेस से प्रत्याशी हैं। स्मृति इरानी ने 2019 में राहुल गांधी को 55,120 मतों से हराकर कांग्रेस की पारंपरिक सीट पर भाजपा का कब्जा करवाया था।
कांग्रेस ने किशोरी लाल को उतारा मैदान में
2014 में राहुल गांधी ने स्मृति को 1,07,903 मतों से हराया था। इस बार राहुल गांधी के बजाय कांग्रेस ने सोनिया गांधी के प्रतिनिधि किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा है। किशोरी लाल 40 वर्षों से अमेठी व रायबरेली में सक्रिय हैं।
बसपा के उम्मीदवार नन्हे सिंह चौहान मुकाबले को कितना त्रिकोण दे पाते हैं, यह तो समय ही बताएगा। यहां के पांच विधानसभा क्षेत्रों में तिलोई, सैलून व जगदीशपुर पर भाजपा का कब्जा है तो गौरीगंज व अमेठी की विस सीटों पर समाजवादी पार्टी का।
उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर 67.68 प्रतिशत की तुलना में 69.72 प्रतिशत साक्षरता दर के बाद भी रोजगार के अभाव में अमेठी के लोगों की आय का मुख्य स्रोत खेती ही है। कर्मठ किसानों ने अमेठी की ऊसर व बंजर जमीन को भी खेती योग्य बना दिया है।
तिलोई विधानसभा क्षेत्र के जायस में चाय की दुकान पर रवि कुमार कहते हैं कि ‘अमेठी में खेती लोगों की आय का मुख्य स्रोत है। बेसहारा पशुओं से किसान परेशान हैं। चुनाव कोई भी जीते, लेकिन किसानों की इस समस्या को जो हल करवाएगा, उसे तरजीह दी जाएगी।
योगी आदित्यनाथ ने इस दिशा में कदम उठाया है। सरकार पैसे भी दे रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बेसहारा पशुओं पर पैसा खर्च नहीं हो रहा है। इससे किसानों को काफी नुकसान है।’ जातीय गणित पर भी सबकी नजरें हैं। पिछड़ी जातियों के 30, ब्राह्मण 18, ठाकुर 12, वंचित समाज के 23 और मुस्लिम करीब 17 प्रतिशत हैं।
पूरे मंशा गांव के किसान मोहन लाल बताते हैं कि ‘सड़कें अच्छी बन गई हैं। बिजली समस्या काफी कम हो गई है। फसल खरीदी जा रही है, लेकिन अमेठी को और विकास चाहिए।’
टीकरमाफी गांव के पास खाद की दुकान पर चुनावी गुफ्तगू में व्यस्त राम जी मिश्रा पहले तो कुछ बोलने से हिचकिचाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे खुलते हैं और कहते हैं ‘40 वर्ष पहले अमेठी में क्या हुआ था, उसे जानने वाली एक पीढ़ी के तमाम लोग गुजर चुके हैं, इसलिए अब अमेठी किसी परिवार की नहीं रह गई है।’ हालांकि वह यह भी कहते हैं कि कांग्रेस पारंपरिक वोटों के साथ सपा के सहारे से भाजपा को टक्कर देगी।
राजघरानों की भूमिका पर नजरें
अमेठी की राजनीति में दो राजघरानों की भूमिका भी हर चुनाव में अहम होती है। कहावत है कि ..अमेठी में न होत ऊसर, तो राजा होत दैव के दूसर (अमेठी की जमीन ऊसर न होती तो यहां के राजा ईश्वर होते) वहीं दूसरे राजघराने तिलोई के बारे में कहावत है कि ..तिलोई, न होत ताल तो राजा होत दैव के लाल (तिलोई में ताल न होते तो यहां के राजा ईश्वर के लाल होते।
इन कहावतों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के राजघराने कभी कितने प्रसिद्ध हुआ करते थे। फिलहाल इस चुनाव में राजपरिवार से डॉ. संजय सिंह व मयंकेश्वर शरण सिंह पर भी सभी की नजरें हैं। मयंकेश्वर तिलोई से विधायक और राज्यमंत्री भी हैं, जबकि डा. संजय सिंह पिछला विधानसभा चुनाव 18,096 मतों से हार गए थे।
खेरौना के लोगों को भूले उम्मीदवार
1976 में देश में आपातकाल लगने के एक वर्ष बाद अचानक से खेरौना की चर्चा पूरे देश में होने लगी। एक दिन अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ संजय गांधी खेरौना पहुंचे और पगडंडी वाले गांव में श्रमदान कर सड़क का निर्माण शुरू कर दिया। उनके साथ दिल्ली से युवा कांग्रेसियों की टीम भी आई।
करीब एक माह तक संजय गांधी तक परिश्रम कर अपने लिए ‘राजनीतिक सड़क’ तैयार की। हालांकि, 1977 के लोकसभा चुनाव में संजय गांधी जनता पार्टी के रवीन्द्र प्रताप सिंह से 75,844 वोटों से हार गए थे। 1980 में उन्होंने जीत हासिल की थी।
खेरौना के 75 वर्षीय रामदीन बताते हैं कि उस समय गांव में उत्सव जैसा माहौल था और उनकी उम्र 28 वर्ष थी। उन्होंने भी श्रमदान किया था। नाराज भी हैं क्योंकि इस बार अभी तक न कांग्रेस और न ही किसी अन्य दल ने खेरौना का हाल लिया।