लखनऊ। प्रदेश में नई बिजली दर जल्द ही घोषित हो जाएगी। इस समय जहां एक तरफ बिजली कंपनियां बिजली दर कम न होने का दबाव बना रही हैं। वहीं उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियमों का हवाला देकर बिजली दर कम किये जाने के लिए बुधवार को नियामक आयोग के अध्यक्ष से मिलकर अपनी बात रखीं।
प्रदेश की बिजली कंपनियां जहां बिजली दरों में सुनवाई पर उपभोक्ता परिषद द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कोई भी जवाब दाखिल नहीं कर पा रही हैं। वहीं 90 प्रतिशत जवाब केवल संबंधित विंग से जवाब मंगाया जा रहा है, यह कहकर टालमटोल कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे 33122
करोड़ के एवज में बिजली दरों में कोई भी कमी न होने पाए, इसके लिए पूरी तरह दबाव बनाए हुए हैं। सभी को पता है कि राज्य सलाहकार समिति बैठक के बाद पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में कमी होना चाहिए। उपभोक्ता परिषद के प्रस्ताव पर अनेक सदस्यों ने सहमति दी कि एक साथ 40 प्रतिसत अथवा अगले 5 वर्षों तक 8 प्रतिसत दरों में कमी कर हिसाब बराबर किया जाए।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जब विद्युत नियामक बिजली दरों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया के अंतिम चरण में है। ऐसे में उपभोक्ता परिषद ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग उठाई है कि उत्तर प्रदेश सरकार विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे सर प्लस के एवज में बिजली दरों में कमी के लिए विद्युत नियामक आयोग को लोकमहत्वमत का विषय मानते हुए निर्देश जारी करें।
वहीं दूसरी ओर उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि विद्युत नियामक आयोग बिजली कंपनियों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए क्योंकि उपभोक्ता परिषद द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा के प्रावधानों के तहत जो भी मुद्दे बिजली दर की सुनवाई में उठाए गए हैं। उसका उचित जवाब मांगना रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का हिस्सा है, लेकिन पावर कॉरपोरेशन व बिजली कंपनियां 90 प्रतिशत जवाब गोलमोल तरीके से दे रही हैं और ज्यादातर उपभोक्ता परिषद के सवालों पर यह कह कर बच रही हैं कि संबंधित विंग से जवाब मांगा गया है। जवाब आते ही दाखिल किया जाएगा तो क्या प्रदेश की बिजली कंपनियां यह चाहती है कि बिजली दर का निर्धारण संवैधानिक तरीके से ना हो पाए, क्योंकि विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि जब तक प्रत्येक उपभोक्ता द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब बिजली कंपनियों से न ले लिया जाए, तब तक दरों का निर्धारण न हो । ऐसे में बिजली कंपनियां जिस प्रकार से उदासीनता बरत रही हैं, वह बहुत गंभीर मामला है।