मडियांव लखनऊ– कुछ समय पहले की बात है जब उम्मीदवार व उनके समर्थक अपने अपने छेत्र में चुनावी बिल्लों, पोस्टर, बैनर से प्रचार करते थे। पर धीरे धीरे समय बदलने के बाद ही प्रचार का तौर तरीका भी बदल गया है। राजनीतिक दलों के साथ ही प्रत्याशी और उनके समर्थक सोशल मीडिया के सहारे चुनावी प्रचार करते हुए नजर आ रहे है। फेसबुक, वॉट्सअप, एक्स (ट्विटर) के साथ ही इंस्ट्राग्राम पर चुनावी रैलियां, नुक्कड़ सभाएं, बैठके, जनसंपर्क की फोटो वीडीओ अपलोड कर अपनी ताकत का एहसास कराया जा रहा है। जिसका नतीजा है की चुनावी शोरगुल जमीनी स्तर से ज्यादा सोशल मीडिया बन चुका हैं। प्रिंटिंग प्रेस संचालकों के चेहरो पर मायूसी छाई देखी जा सकती है। अब शोशल मीडिया चुनावी प्रचार का अहम हिस्सा बन चुका है। जिसकी चमक से दावेदार भी अछूते नहीं रह गए है। ऐसे में फोटो के साथ ही नेताजी व उनके समर्थक रील्स में भी अपना प्रचार करते हुए नजर आ रहे है।
समर्थक भी फोटो विडीओ अपलोड करने में पीछे नहीं रह रहे है। ऐसे में अब शोशल मीडिया के सहारे ही चुनावी प्रचार प्रसार को असरदार माना जाने लगा है। यही वजह है की उम्मीदवारों के सोशल चुनावी सीजन का प्रिंटिंग प्रेस संचालकों को इंतजार रहता था। प्रिंटिंग प्रेस से जुड़े लोग बताते है की छोटे चुनाव में तो सहालग जैसी धूम रहती है। बड़े चुनाव में इस बार बिल्कुल फीकापन रहा है। प्रिंटिंग प्रेस के पोस्टर बैनर पैंपलेट में चुनाव आयोग की सख्ती से उम्मीदवार पहले जैसा पोस्टर पैंपलेट बैनर बिल्ला छपवाने से गुरेज कर रहे है। प्रिंटिंग प्रेस वालों का चुनावी सीजन में इतना काम रहता था की दिन क्या रात में भी काम निपटाना पड़ता था । इस बार ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है।
मीडिया अकाउंट इस समय बेहद सक्रिय दिख रहे है। चुनाव प्रचार के बीच अब प्रिंटिंग प्रेस,पेंटर और माइक साउंड से रिक्शा पर बैठकर प्रचार अब फीका पड़ गया है।
हालात यह है की पहले के चुनाव की प्रचार में जहां इनकी प्रमुख भूमिका रहती थी वहीं अब कोई पूछने वाला नहीं । पहले समय में चुनावी प्रचार शुरू होते है प्रिंटिंग प्रेस पर काम बढ़ जाता था। उम्मीदवार तरह तरह के पोस्टर, बैनर, पैंपलेट, बिल्ले छपवाते थे। चुनाव के समय प्रिंटिंग प्रेस वालो का यह हाल रहता था की अन्य काम के लिए वह सीधे तौर पर हामी भरने से परहेज़ करते थे।