भारत को उत्तर और दक्षिण में बांटने की राजनीति

रोहित माहेश्वरी

दक्षिण भारत के राज्यों में उत्तर भारतीयों के अपमान और उनका तिरस्कार करने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। यह तिरस्कार अक्सर आम लोगों के द्वारा किया जाता था। लेकिन अब इसमें वहां के राजनेता और सरकारें भी शामिल होती हुई दिख रही हैं। उत्तर भारत और दक्षिण भारत को लेकर इस साल हुए कई विवादों की सूची में एक और नाम जुड़ गया है। इस बार डीएमके नेता दयानिधि मारन के बयान से राजनीतिक पारा चढ़ रहा है। इसके केंद्र में भी बिहार है। इस बयान को लेकर केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी ने विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन पर हमला बोला है। बीजेपी ने मारन के बयान पर कांग्रेस और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जवाब मांगा है। डीएमके सांसद दयानिधि मारन के जिस बयान पर राजनीति हो रही है, वो क़रीब पांच साल पुराना है। डीएमके नेताओं का यही दावा है।

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर दयानिधि मारन का एक वीडियो शेयर किया है। 24 सेकेंड के इस वीडियो पर अमित मालवीय ने लिखा, “डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के हिन्दी भाषी लोग तमिलनाडु आकर यहाँ टॉयलेट साफ़ करते हैं।” बीजेपी नेताओं के लगातार बयान के बाद बिहार की सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने भी मारन के इस बयान की आलोचना की है। बिहार सरकार की तरफ से उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी दयानिधि मारन के बयान का विरोध किया था।

ऐसा पहली बार नहीं है कि दक्षिण भारत के किसी नेता के बयान को लेकर उत्तर भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के सहयोगी दल डीएमके के सांसद सेंथिलकुमार ने संसद में चुनाव के नतीजों पर एक टिप्पणी के लिए बाद में माफ़ी भी मांगी थी। इसी महीने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से जुड़े दो विधेयकों पर चर्चा के दौरान सेंथिलकुमार ने कहा, “इस देश के लोगों को सोचना चाहिए कि बीजेपी की ताक़त बस इतनी है कि यह मुख्य तौर पर हिंदी पट्टी, जिसे हम आमतौर पर गोमूत्र राज्य कहते हैं, वहीं जीत सकती है।”

उत्तर-दक्षिण बहस तब शुरू हुई जब कांग्रेस ने तेलंगाना में जीत हासिल की और बीजेपी ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। डीएमके के सेंथिल कुमार ने इसी संदर्भ में उत्तर भारतीय राज्यों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। हाल ही में इंडिया गठबंधन की बैठक में हिंदी-गैर-हिंदी भाषा पर तब बहस हुई जब नीतीश कुमार ने बोलना शुरू किया और डीएमके नेता टीआर बालू ने इसका अंग्रेजी अनुवाद मांगा। नीतीश ने अपने संबोधन को अंग्रेजी में अनुवाद करने से मना कर दिया था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सीएम नीतीश ने दक्षिण भारत के नेताओं को नसीहत दी थी कि हमारा देश हिंदुस्तान है तो हम सबको हिंदी की जानकारी भी होनी चाहिए। डीएमके इंडिया गठबंधन का हिस्सा है जिसमें जदयू, राजद और समाजवादी पार्टी शामिल हैं। ये बिहार और उत्तर प्रदेश के मुख्य राजनीतिक दल हैं।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने हिंदी-विरोध में आपत्तिजनक बयान दिया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन की ‘सनातन धर्म’ पर टिप्पणी पर भी बड़ा विवाद हुआ था। उन्होंने एक कार्यक्रम में सनातन धर्म को कई सामाजिक बुराइयों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए इसे समाज से ख़त्म करने की बात कही थी। कुछ द्रमुक सांसदों ने सनातन को डेंगू, एड्स और कोढ़ आदि करार दिया था।

यही नहीं तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों के साथ हिंसा की भ्रामक ख़बरें भी इस साल की शुरुआत में सोशल मीडिया पर प्रसारित की गई थीं। हालांकि तमिलनाडु पुलिस लगातार इस तरह की ख़बरों को ग़लत बता रही थी. लेकिन इस मुद्दे को बीजेपी के नेताओं ने बिहार विधान सभा से लेकर सड़कों पर भी खूब उछाला था। बाद में बिहार के एक यू-ट्यूबर मनीष कश्यप पर तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों के साथ मारपीट का फ़ेक वीडियो बनवाने और उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करने का आरोप लगा था और उसे गिरफ़्तार किया गया था। मनीष कश्यप को पिछले हफ़्ते ही सभी मुक़दमों में ज़मानत मिली है और क़रीब नौ महीने बाद उसकी जेल से रिहाई हुई है।

हिन्दी और उत्तर भारतीयों पर दयानिधि मारन का बयान भले ही पुराना हो, पूरी तरह गलत है। बिहार या उत्तर प्रदेश के लोग तमिलनाडु के हर सेक्टर में काम करते हैं। बिहार के लोग सिविल सर्विसेस में भी हैं और आईटी सेक्टर में भी. वहीं तमिलनाडु के लोग भी राज्य में हर तरह के काम करते हैं। हकीकत यह है कि यदि उप्र और बिहार के मानव संसाधन देश के दूसरे राज्यों में न जाएं, तो बहुत कुछ निष्क्रिय हो सकता है। कारोबार और फसलों की कटाई के काम ठप्प हो सकते हैं। कई संदर्भों में हुक्का-पानी तक बंद हो सकता है। शौचालय साफ करने और सडक़ निर्माण करने वाले मजदूरों के राज्यों का यथार्थ यह है कि उप्र से 13.5 फीसदी और बिहार से 8.5 फीसदी आईएएस अधिकारी देश को मिलते हैं। ये सर्वाधिक आंकड़े हैं।

केंद्र सरकार ने साल 2011 के सर्वे के आधार पर देश की जनसंख्या से जुड़े अलग-अलग आंकड़े जारी किए थे। इसके मुताबिक़ उत्तर भारतीय राज्यों में तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगू बोलने वालों की संख्या साल 2001 की जनगणना के मुक़ाबले बकम हुई है, जबकि दक्षिण भारत में हिंदी भाषियों की संख्या बढ़ी है। बीते कुछ साल से प्रवासियों के तमिलनाडु आने में तेज़ी आई है। प्रवासी कामगारों में बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोग भी हैं।

तमिलनाडु में करीब 1.5 करोड़ उत्तर भारतीय बसे और काम करते हैं। वहां की सरकार में भी उच्च और मझोले स्तर के अधिकारियों की संख्या भी ज्यादातर उत्तर भारतीयों की है। तमिलनाडु में अकेले बिहार से ही 25 से अधिक आईएएस और आईपीएस अधिकारी सेवारत हैं। तमिलनाडु के कपड़ा उद्योग, मछली उद्योग, कंस्ट्रक्शन, होटल व्यवसाय, पूजा-पाठ, सिलाई और बैग बनाने के काम के अलावा बड़ी संख्या में बिहार के प्रवासी स्ट्रीट फ़ूड के स्टॉल भी लगाते हैं। तमिलनाडु के नेताओं को अपने सामाजिक-आर्थिक विकास और समझदारी का परिचय देते हुए उप्र और बिहार की अर्थव्यवस्था को भी समझना चाहिए।

दरअसल देश का संविधान ऐसी गाली, नफरत और भेदभाव की अनुमति नहीं देता। उप्र, बिहार और तमिलनाडु भारत गणराज्य के ही हिस्से हैं। वे एक ही लोकतांत्रिक परिवार के सदस्य हैं। संविधान के मुताबिक, प्रत्येक नागरिक, किसी भी राज्य में, निवास और व्यवसाय कर सकता है। उन पर राज्यों की सीमा और भाषा की कोई पाबंदी नहीं है। भारत की आजादी के 76 साल बाद भी ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ के गालीनुमा बयान सुनने को क्यों मिलते हैं? यदि उप्र, बिहार बनाम तमिलनाडु के बीच विभाजन और नफरत की दरारें हैं, तो भारत विविधताओं वाला देश कहां है? वाराणसी में ‘काशी तमिल संगमम’ के आयोजन क्यों होते रहे हैं? दक्षिण भारतीय लोग दिल्ली और हिंदी पट्टी के क्षेत्रों में काम क्यों करते हैं? बसे हुए क्यों हैं? क्या भारत एक संप्रभु और संगठित देश नहीं है?

देश के विकास में उप्र और बिहार का भी अहम योगदान है, तो तमिलनाडु भी भारत के हिस्से से बहुत कुछ हासिल करता है। मारन सरीखों के बयान निंदनीय और शर्मनाक हैं। चूंकि द्रमुक सरीखी दक्षिण भारतीय पार्टियों के जनाधार उत्तर भारत में नहीं हैं और भाजपा सरीखी हिंदी पट्टी की पार्टियों का विस्तार दक्षिण में नगण्य ही है। कर्नाटक और तेलंगाना में भाजपा के कुछ गढ़ हैं, लेकिन इसी आधार पर उत्तर प्रदेश, बिहार को गाली नहीं दी जा सकती। यह देश, देशवासियों और संविधान की मूल भावना का भी अपमान है।  

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