नव उमंग साहित्य संस्थान की कवि गोष्ठी में बही काव्य की फुहार

त्रिवेदीगंज, बाराबंकी। नव उमंग साहित्य संस्थान की कवि गोष्ठी मंगलपुर स्थित साधन सहकारी समिति प्रांगण में हुई। मां वीणापाणी के स्तवन के साथ शुरू हुई गोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध लोकगीतकार संत प्रसाद जिज्ञासु व संचालन वरिष्ठ कवि वेद प्रकाश सिंह प्रकाश ने किया।युवा कवि सौरभ वर्मा स्माइल ने हर क्षण हिन्दी प्रति क्षण हिन्दी हिन्दी ही हर भाव यहां है तो वहीं वरिष्ठ कवि पत्रकार सुनील वाजपेयी शिवम् ने क्या गुजराती क्या बंगाली तमिल तेलुगू क्या सिन्धी समग्र राष्ट्र को एक सूत्र में, बहे पिरोये हिन्दी के अलावा हास्य-व्यंग्य विधा में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर झूठ कहत टिटिकोरि कै,बचै खाल नहि बाल, कथनी करनी चांटि कै च्वकरत टोपी लाल रचना पढ़ी।

वहीं दिलीप सिंह दीपक ने महिमा की लहरों पर तुम देवत्व कभी मत गहना, शिक्षक तुम मानव ही रहना गीत सुनाया तो रत्नेश राज़ अनुराग ने किसको है देखना किसको है दिखाना तुम से है ज़िन्दगी है तुम्हारे पास आना जैसे मुक्तक सुनाए। संचालक वेद प्रकाश सिंह प्रकाश ने हिन्दी के उद्भव पर रचना सरहपा से गति पाकर बढ़ी वहीं गंगा ने गद्य के रूप में संवारा सुनाई जबकि लोकगीतों के मूर्धन्य साहित्यकार संत प्रसाद जिज्ञासु ने विरहिन जियरा बिच हूक उठै जब मोरनी रैन अंधेरी गुहारै जैसे सरस गीतों से समां बांध दिया। इसके अलावा जितेन्द्र त्रिवेदी पार्थ व श्रवण बाजपेयी अलबेला आदि ने भी काव्य पाठ किया।

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