अबू धाबी। अयोध्या में रामलला के ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अबू धाबी राजसी बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्थान मंदिर का उद्घाटन किया। यह पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा मंदिर है।
मंदिर को मानवता की साझा विरासत का प्रतीक बताते हुए प्रधानमंत्री ने मानवता के इतिहास में नया सुनहरा अध्याय लिखने के लिए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को धन्यवाद दिया। पीएम मोदी ने कहा,”यह मेरा सौभाग्य है कि पहले मैं अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बना हूं। इसके बाद अबू धाबी में इस मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बना।
सर्व धर्म समभाव का प्रीतक बना मंदिर
यह मंदिर को 27 एकड़ जमीन पर फैला हुआ। इस भव्य मंदिर में इंजीनियरिंग, वास्तुकला और शिल्प कौशल का बेजोड़ संगम की छवि दिखती है।
समाचार एजेंसी के अनुसार, BAPS मंदिर के प्रवक्ता के अनुसार , इस हिंदू मंदिर का मुख्य वास्तुकार एक कैथोलिक ईसाई है। जबकि प्रोजेक्ट मैनेजर एक सिख है। वहीं, फाउंडेशनल डिजाइनर एक बौद्ध है। जिस कंपनी ने इस मंदिर को बनाया है, वह कंस्ट्रक्शन कंपनी एक पारसी ग्रुप का है। इस मंदिर के डायरेक्टर जैन धर्म को मानने वाले हैं। वहीं, मंदिर के लिए जमीन मुस्लिम राजा ने दी है।
पीए मोदी ने कारीगरों से की मुलाकात
मंदिर का उद्घाटन करने के बाद प्रधानमंत्री ने मंदिर का निर्माण करने वाले कारीगरों से मुलाकात की। गुजरात और राजस्थान के करीब दो हजार कारीगरों ने मंदिर निर्माण में योगदान दिया है। प्रधानमंत्री ने शुरुआत से लेकर पूरा होने तक मंदिर निर्माण में शामिल रहे स्वयंसेवकों एवं इसमें काम में योगदान देने वाले प्रमुख लोगों से भी भेंट की।
हर लेवल पर 300 से अधिक सेंसर
बीएपीएस के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने बताया,”मंदिर में वास्तुशिल्प पद्धतियों के साथ ही वैज्ञानिक तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया है। तापमान, दबाव एवं गति (भूकंपीय गतिविधि) मापने के लिए मंदिर के हर लेवल पर 300 से अधिक हाई-टेक सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर अनुसंधान के लिए सजीव आंकड़े उपलब्ध कराएंगे। अगर इस क्षेत्र में कोई भूकंप आता है तो मंदिर इसका पता लगा लेगा और हम उसका अध्ययन कर पाएंगे।’
नहीं हुआ धातु का उपयोग
मंदिर निर्माण में किसी धातु का उपयोग नहीं किया गया है और कार्बन फुटप्रिंट घटाने के लिए नींव भरने में राख (फ्लाई एश) का उपयोग किया गया है। मंदिर के निर्माण प्रबंधक मधुसूदन पटेल ने बताया, “हमने गर्मी प्रतिरोधी नैनो टाइल्स और भारी ग्लास पैनलों का उपयोग किया है। यूएई के अत्यधिक तापमान के मद्देनजर ये टाइल्स आरामदायक होंगी ताकि श्रद्धालु गर्म मौसम में भी घूम सकें।”
इटली के संगमरमर का भी इस्तेमाल
मंदिर निर्माण में 18 लाख ईंटों, सात लाख मानव घंटों और 1.8 लाख घन मीटर बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। 20 हजार टन बलुआ पत्थरों पर राजस्थान में ही नक्काशी की गई थी और उसके बाद 700 कंटेनरों में अबू धाबी लाया गया। इटली से लिए गए संगमरमर को भी नक्काशी के लिए पहले भारत भेजा गया और फिर अबू धाबी लाया गया।
दुबई में गुरुद्वारे ने आयोजित किया लंगर
अबू धाबी में मंदिर के उद्घाटन के मौके पर दुबई में एक गुरुद्वारे ने लंगर का आयोजन किया। इसमें पांच हजार लोगों को भोजन वितरित किया गया। इसे लहसुन-प्याज का इस्तेमाल किए बिना पकाया गया था।