नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले देश के पांच विभूतियों को भारत रत्न देकर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ओर देश के लिए उनके योगदान को सम्मान दिया है, वहीं दूसरी ओर भाजपा के राजनीतिक आधार को भी बड़ा कर दिया है।
दक्षिण भारत से आने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और कृषि क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देकर उत्तर-दक्षिण का विवाद खड़ा करने वाले नेताओं को भी करारा जवाब दिया है तो चौधरी चरण सिंह को यह सम्मान देकर किसानों का दिल जीत लिया। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत रत्न के सहारे सरकार ने सबका साथ, सबका विकास के साथ सबका सम्मान को भी स्थापित करने की कोशिश की है।
ऐसा नहीं है कि आम जनता कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन के योगदान को नहीं जानती हो, लेकिन देश और समाज में उनके योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें सम्मानित करने का काम पहली बार किया गया।
प्रणव मुखर्जी को भी हो चुका है सर्वोच्च सम्मान
राजनीति की संकीर्ण सीमाओं को तोड़ते हुए समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर, सोशलिस्ट पार्टी के नेता चौधरी चरण सिंह और कांग्रेस के नेता नरसिम्हा राव को सम्मानित किया गया। इसके पहले कांग्रेस के ही प्रणव मुखर्जी को भी भारत रत्न दिया जा चुका है।
सम्मान को राजनीतिक सीमाओं से परे करने की मोदी सरकार की कोशिश पद्म पुरस्कारों में भी देखने को मिली है। जहां मुलायम सिंह यादव, तरुण गोगोई, एसएम कृष्णा, गुलाम नबी आजाद जैसे विरोधी पार्टियों के नेताओं को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
PM मोदी ने आसान की भाजपा की राजनीतिक राह
देश को नई दिशा में देने वाले अलग-अलग क्षेत्रों के विभूतियों को सम्मानित कर प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा की राजनीतिक राह भी आसान की है। कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित करने के तत्काल बाद नीतीश कुमार के राजग में आना और चौधरी चरण सिंह को सम्मानित करने के बाद जयंत चौधरी का ‘दिल जीत लिया’ के बयान से यह साबित भी हो गया है। इससे बिहार में अति पिछड़े वर्ग के साथ ही पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में जाट वोटों को साधने में मदद मिल सकती है।
इसी तरह से अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद हिंदुत्व को राजनीतिक विमर्श के केंद्र में लाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर उन्होंने अपने कोर वोट बैंक को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।