पहली मंजिल पर विराजेंगे रामलला: चंद्रकांत सोमपुरा

नई दिल्ली। अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं। वहीं, राम मंदिर के मुख्य आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपुरा ने इसको लेकर कई अहम जानकारी दी है। दैनिक जागरण की पत्रकार एकता जैन से बात करते हुए चंद्रकांत सोमपुरा ने कहा कि मंदिर की पहली मंजिल पर रामलला विराजेंगे, जबकि दूसरी मंजिल पर रामलला का दरबार होगा।

नागर शैली में बन रहा राम मंदिरः चंद्रकांत सोमपुरा
चंद्रकांत सोमपुरा ने बताया कि अयोध्या में तैयार हो रहे राम मंदिर को नागर शैली से बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जब आप ऊपर आएंगे मध्य भारत में तो वहां से पूरे हिमालय तक नागर शैली के मंदिर बने हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में करीब-करीब सभी मंदिर नागर शैली में ही बनाए गए हैं।

नागर शैली में दक्षिण भारत को छोड़कर जब आप ऊपर आएंगे मध्य भारत में तो वहां से पूरे हिमालय तक नागर शैली के मंदिर बने हैं। खजुराहो के मंदिर हैं। पुराने मंदिर आप उत्तर प्रदेश में देखेंगे तो सभी नागर शैली से ही बनाए गए हैं। मेरे ख्याल से इधर कोई मंदिर द्रविड़ शैली में नहीं बने हैं। हालांकि, कुछ मंदिरों को बनाया गया हो तो उसका बात अलग है, लेकिन सभी मंदिर नागर शैली के ही हैं और अयोध्या में भी नागर शैली से ही मंदिर बनाया जा रहा है।- चंद्रकांत सोमपुरा, राम मंदिर के मुख्य आर्किटेक्ट

इस लिए बनाया गया मंदिर का तीसरा मंजिल
मंदिर में रामलला कहां विराजेंगे इस पर उन्होंने कहा कि पहली मंजिल पर रामलला विराजेंगे और दूसरी मंजिल पर राम दरबार होगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए मंदिर की लंबाई और चौड़ाई में बढ़ोतरी की गई है। मुख्य आर्किटेक्ट सोमपुरा ने कहा कि जब लंबाई-चौड़ाई बढ़ाई जाती है तो इसकी ऊचाई भी बढ़ाई जाती है। यही कारण है कि मंदिर की तीसरी मंजिल बनाया गया और शिखर को भी ऊंचा किया गया।

वाल्मीकि रामायण का किया गया वर्णन
सोमपुरा ने रामलला मंदिर को अनूठा बताते हुए कहा कि नीचे की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) वाले भाग में तीन-तीन फीट के पिलर मौजूद हैं, जिसपर थ्री डाइमेंशन में वाल्मीकि रामायण का वर्णन किया गया है।

मंदिर के मार्बल पर क्या बोले सोमपुरा?
अलग-अलग जगहों से मार्बल मंगवाने और प्राकृतिक सुंदरता से जुड़े एक सवाल के जवाब में चंद्रकांत सोमपुरा ने कहा कि पहले से यह बात चली थी कि पूरा मंदिर मार्बल का बनेगा, लेकिन अशोक सिंघल जी के समय में जो हमने वंशीपारपुर का पत्थर रखा था उसको भी उपयोग में लाना था। उन्होंने बताया कि इस मंदिर के निर्माण में कई लोगों ने योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि साल 1980 के दौर में इस मंदिर के निर्माण में कई लोगों ने सवा-सवा रुपये का योगदान दिया है और उसको भी इसमें लगाया गया है।

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