नीट परीक्षा मामले की सुनवाई अगले गुरुवार के लिए टाल दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी दी कि इस मामले की सुनवाई अब 18 जुलाई को होगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार और एनटीए के जवाब कुछ पक्षकारों को नहीं मिले हैं और उन्हें जवाब देखने के लिए वक्त चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों के वकीलों की सहमति से मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को करने का आदेश दिया।
इस मामले में केंद्र सरकार ने मद्रास आईआईटी के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के सबूत नहीं हैं और वह नीट परीक्षा निरस्त करने के समर्थन में नहीं है। एनटीए ने भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि टेलीग्राम ऐप पर नीट पेपर लीक का जो वीडियो चलाया जा रहा था वो फर्जी था। इससे पहले 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई है। अगर परीक्षा वाले दिन ही बच्चों को पेपर मिला था और उसे याद किया गया इसका मतलब पेपर केवल स्थानीय स्तर पर ही लीक हुआ था। अगर हमें यह पता नहीं चलता कि कितने स्टूडेंट इसमें शामिल थे, तब दोबारा परीक्षा का आदेश देना पड़ेगा।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि हमें यह भी देखना होगा कि पेपर लीक कैसे हुआ। अगर सोशल मीडिया के जरिए हुआ, इसका मतलब पेपर लीक व्यापक पैमाना पर हुआ होगा। चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम जानना चाहते हैं कि पेपर सेटिंग की पूरी प्रक्रिया क्या होती है। प्रिंटिंग प्रेस में कैसे और किसके साथ भेजा गया। प्रेस से बैंक में कैसे भेजा गया। इससे पता लगाने में आसानी होगी कि पेपर कहां से लीक हुआ। अब यह देखना है कि यह कैसे हुआ है और कितना हुआ है। चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि अगर परीक्षा कैंसल नहीं होती तो धांधली से पास हुए स्टूडेंट्स को कैसे चिह्नित करेंगे। उनको पता करने के लिए क्या किया गया है।
चीफ जस्टिस ने सीबीआई से अब तक की हुई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि इस बीच आप लोग आपस में मिल बैठ कर एकराय कर लें। हम संविधान पीठों की तरह एक नोडल एडवोकेट नियुक्त कर सकते हैं। ताकि वो सभी पक्षकारों के लिखित दलीलों को संग्रहित कर कोर्ट के सामने रख सके। कोर्ट ने कहा कि हम सरकार से ये जानना चाहते हैं कि सरकार ने लाभार्थियों की पहचान करने के लिए अब तक क्या किया है। चीफ जस्टिस ने कहा की सौ फीसदी अंक 67 छात्रों को मिले हैं। हमें इस बात को भी समझना होगा कि मार्क्स देने का पैटर्न क्या है।
कोर्ट ने कहा कि अगर एक बार के लिए हम यह मान लें कि हम परीक्षा रद्द नहीं करते हैं तो धोखाधड़ी के लाभार्थियों की पहचान करने के लिए क्या किया जा रहा है। चीफ जस्टिस ने मेहता से कहा कि आप सरकार से पूछ कर बताइए क्या हम साइबर फोरेंसिक विभाग में डेटा एनालिटिक्स प्रोग्राम के माध्यम से यह पता नहीं लगा सकते हैं क्योंकि हमें यह पहचानना है कि क्या पूरी परीक्षा प्रभावित हुई है। क्या गलत करने वालों की पहचान करना संभव है। उस स्थिति में केवल उन छात्रों के लिए दोबारा परीक्षा का आदेश दिया जा सकता है।