शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो चुकी है. आज नवरात्रि का तीसरा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन के साथ मां चंद्रघंटा की कथा सुनने से जीवन में खुशियां बनी रहती है. इसके साथ हर तरह के भय से मुक्ति मिलती है
नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है. मां दुर्गा का यह स्वरूप बहुत ही शंतिदायक और कल्याणकारी हैं. मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है. इसके अलावा मां चंद्रघंटा की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है. मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला और इनका वाहन सिंह है.
मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. इस दौरान मां चंद्रघंटा की पूजा कर उन्हें भोग लगाया जा सकता है
मां चंद्रघंटा की कथा
कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा का पहला रूप मां शैलपुत्री और दूसरा मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप जो भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए माना जाता है. जब मां ब्रह्मचारिणी भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं . मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब संसार में दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था. साथ ही उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था. महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था. वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था.
जब देवताओं को महिषासुर इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे. ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुनकर क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से जो ऊर्जा निकली. उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं. उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया. इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की.