इन्हौना (अमेठी)। सिंहपुर ब्लॉक मुख्यालय से एक किलोमीटर दूर स्थित मां अहोरवा भवानी भक्तों की मनचाही मुराद करती हैं। शायद यही वह वजह है कि चैत्र व अश्विन माह में यहां कई जिलों के लोग मां का दर्शन व पूजन करने पहुंचते हैं। भक्तों का जमावड़ा इस कदर होता है कि मंदिर परिसर में तिल रखने की जगह नहीं मिलती।
प्रसिद्ध अहोरवा भवानी का मंदिर सिंहपुर ब्लॉक के अहोरवा भवानी ग्राम पंचायत में स्थित है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे। यहां रुकने के दौरान अर्जुन ने आखेट जाने का निश्चय किया। आखेट पर जाने से पहले अर्जुन ने मंदिर में विराजमान देवी की मूर्ति का दर्शन किया। बाद में कुंती व द्रौपदी के साथ पांचों पांडवों ने भी मंदिर में पूजा-अर्चना की। पांडवों ने ही इस मंदिर में प्रतिस्थापित देवी का नामकरण अहोरवा भवानी के नाम से किया। क्षत्रिय वंशावली के अनुसार यह क्षेत्र गांडीव वैश के नाम से जाना जाता है। इस कुल के क्षत्रियों की कुल देवी का दर्जा भी अहोरवा भवानी को प्राप्त है। बताते हैं कि महाभारत काल के बाद अहोरवा भवानी अदृश्य हो गई थीं। कालांतर में एक चरवाहे को माता ने दर्शन दिया। चरवाहे की अपार श्रद्धा और पूजा भाव के चलते मंदिर में मां अहोरवा का आविर्भाव हुआ।
मां पर अगाध विश्वास
अहोरवा भवानी के प्रति लोगों को अगाध विश्वास है। जिले के अलावा आसपास के कई जिलों से यहां आने वालों का मानना है कि यहां आने वाले निसंतान दंपती को संतान की प्राप्ति होती है। यहां आने वाले अधिकांश श्रद्धालुु मां के मंदिर के लेटकर परिक्रमा करते हैं।
वापस आती नेत्र ज्योति
लोगों का कहना है कि मां की मूर्ति पर चढ़ाने के बाद उनके चरणों से होकर निकलने वाले नीर को आंखों पर लगाने से ज्योति वापस आती है। नेत्र ज्योति वापस पाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां का नीर बोतल में भरकर अपने साथ ले जाते हैं।
तीन रूप बदलतीं मां अहोरवा
ऐसी मान्यता है कि माता अहोरवा की मूर्ति दिन में तीन रूप बदलती है। प्रात: काल में मां बाल्यावस्था तो दोपहर में युवावस्था में भक्तों को दर्शन देकर उनकी मनोकमना पूरी करती हैं। शाम को भक्तों को मां के वृद्धावस्था रूप के दर्शन होते हैं।