मनुष्य में धर्म और अधर्म दोनों ही प्रवृत्तियाँ होती: पंडित सिद्धनाथ

दुबहड़। प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है- हे अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। उक्त उद्गार घोड़हरा स्थित महंथ जी के मठिया में श्रीमद्भागवत कथा महायज्ञ के सातवें एवं अंतिम दिन आचार्य पंडित सिद्धनाथ ने व्यक्त किया।

कहा कि मनुष्य में धर्म और अधर्म दोनों ही प्रवृत्तियाँ होती है। कभी भीतर धर्म बढ़ता है और कभी अधर्म। कभी हम धार्मिक जैसा बर्ताव करते हैं और कभी अधार्मिक जैसा। लेकिन जब व्यक्ति के अंदर अधर्म का भाव आता है, तब उसके मन में उस अधर्म को न करने की एक लहर भी ज़रूर आती है। लोग इसी आवाज़ को नज़रअंदाज़ करके अधर्म करते हैं। ये अंदर की आवाज़ कुछ और नहीं बल्कि हमारी चेतना में बैठे कृष्ण की प्रेरणा है। जो हमें अधर्म न करने की सलाह देती रहती है। यही भगवान् कह रहे है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। यही उनके प्रकट होने की प्रक्रिया है। क्योंकि वो तो अपनी प्रेरणाओं से हर व्यक्ति के अंदर अपनी अनुभूति का अनुभव कराते ही रहेंगे। तत्पश्चात विद्वान आचार्यों द्वारा भगवान श्री विष्णु सहित अन्यान्य देवी-देवताओं का वैदिक मंत्रोचार के साथ विधिवत पूजा-पाठ एवं हवन महायज्ञ एवं भजन, आरती कर श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति की गई। पूर्णाहुति के अवसर पर गांव तथा क्षेत्र के हजारों श्रद्धालुओं ने भव्य भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर आचार्य पंडित अभिषेक कुमार पांडेय, संजीत कुमार पांडेय, अंजनी कुमार पांडेय पिंटू, राकेश कुमार पांडेय सोनू, पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रतिनिधि महेशानंद गिरि, उर्मिला गिरी, पूर्व प्रधान उषा गिरी, रामबली सिंह, शिवशंकर गिरी, शशिकांत भारती, श्वेता भारती, उमा गोस्वामी, बीना गिरी, विनीता गिरी, वंदना गिरी, नैंसी गिरी, पुन्नू राय, हेमनाथ यादव, बद्रीनाथ यादव, अमोल गिरी, अंशु गिरी, अनूप गिरी, नन्हे यादव, संतोष खरवार, राजेश सिंह दिलू, सुरेंद्र सिंह आदि मौजूद रहे।

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