ऐसे समय जब केंद्र सरकार के प्रमुख कैबिनेट मंत्री ब्याज दरों में कटौती की मांग कर रहे हैं, तब केंद्रीय बैंक की तरफ से ऐसे संकेत दिए गये हैं कि वह ब्याज दरों को घटाने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। बुधवार को आरबीआई की मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर महंगाई ऐसे ही बेकाबू रही, तो देश के उद्योग और निर्यात पर भी असर हो सकता है।
आरबीआई ने अक्टूबर, 2024 में महंगाई दर के बढ़ने की स्थिति को अंचभित करने वाला करार दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि जुलाई और अगस्त, 2024 में महंगाई दर के नीचे आने के बाद आरबीआई ने चेतावनी थी कि इसे काबू में करने की कोशिशों में कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। साथ ही केंद्रीय बैंक ने यह भी संकेत दिये हैं कि पिछले कुछ समय से खाद्य उत्पादों की महंगाई दर में जो वृद्धि देखी गई है, उसका असर खाद्य तेलों, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों पर भी दिखाई देने लगी है।
महंगाई दर के ताजे आंकड़े बताते हैं कि यह छह फीसद को पार करके पिछले 14 महीनों के उच्चतम स्तर पर है। कई महीनों बाद इसने आरबीआई की लक्ष्मण रेखा (6 फीसद) को भी पार कर लिया है। ऐसे में जो एजेंसियां दिसंबर, 2024 में ब्याज दरों में कमी की उम्मीद लगा रही थी वह अपने बयान बदलने लगी हैं। हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने देश में ब्याज दरों को घटाने की बात की है। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी ऐसी ही बात की है।
आरबीआई महंगाई के खतरे को लेकर गंभीर
ऐसे में आरबीआई की ताजी रिपोर्ट यह संकेत दे रही है कि महंगाई के खतरे को लेकर वह काफी गंभीर है। आरबीआई ने महंगाई को चार फीसद (दो फीसद नीचे या दो फीसद ऊपर) के दायरे में रखने का लक्ष्य मिला हुआ है। आरबीआई कहता रहा है कि महंगाई को रोकना देश के मध्यम वर्ग और गरीब जनता के हितों के लिए सबसे जरूरी है।
आरबआई रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ती महंगाई का असर शहरी मांग और कंपनियों के राजस्व पर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। अगर इन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इसका असर रीयल इकोनमी, उद्योगों और निर्यात पर भी दिखाई देगा। निर्यात पर असर ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि अभी वैश्विक हालात जो बन रहे हैं उसमें भारत से निर्यात बढ़ने के संकेत हैं।रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर महंगाई और मांग की स्थिति पर भी चिंता जताई गई है। विश्व में महंगाई मोटे तौर पर कम हुई है लेकिन वैश्विक मांग में कोई खास वृद्धि नहीं देखी जा रही है। विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों के पास ब्याज दरों को घटाने की जगह है लेकिन विकासशील देशों के केंद्रीय बैंकों के लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण है।