भगवान श्री हरि के अवतार माने जाते हैं प्रभु श्री राम…

नई दिल्ली। 22 जनवरी को अध्योया में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, जिसका सभी देशवासियों को बेसब्री से इंतजार है। ऐसे में आइए जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकी द्वारा रचित रामायण और तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस में अयोध्या का कैसा वर्णन मिलता है।

वाल्मिकी जी के अनुसार अध्योया
महर्षि वाल्मिकी जी ने रामायण के बालकांड के पांचवें सर्ग में अयोध्या का विस्तार से वर्णन किया है। रामायण के अनुसार अयोध्या को मनु ने बसाया था। यह पहले कौशल जनपद की राजधानी थी।

कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्।।

वाल्मिकी जी ने अयोध्यापुरी के वैभव और भव्यता का चित्रण करते हुए बताया है कि सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा कोसल नामक एक बड़ा देश था। साथ ही रामायण में यह भी उल्लेख मिलता है, कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। इसकी सड़कों पर रोजाना जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे।

इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, बाजार, नगरी की रक्षा के लिए सभी प्रकार के शस्त्र और यंत्र मौजूद थे। नगरी दुर्गम किले और खाई थी, जिस कारण कोई भी शत्रुजन इन्हे छू भी नहीं सकता था। नगरी में जगह-जगह उद्यान निर्मित हैं। साथ ही वाल्मिकी जी यह भी वर्णन करते हैं कि अयोध्या नगरी के कुओं का जल में जल इस प्रकार भरा हुआ था जैसे गन्ने का रस भरा हो। पूरी नगरी में कोई भी धनहीन नहीं था। सभी नगरवासियों के पास धन-धान्य, पशुधन आदि की कोई कमी नहीं थी। महर्षि वाल्मिकी के अनुसार, अयोध्या एक समृद्ध नगरी

तुलसीदास जी की अध्योया
तुलसीदास जी ने भी अपनी रामचरितमानस में अयोध्या का बड़ी ही भव्यता के साथ वर्णन किया है। तुलसीदास जी ने जिस प्रकार की अयोध्या का वर्णन अपने ग्रंथ में किया है, वह भक्ति भावना से भरी हुई है।

राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥

बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि राम की अयोध्या परमधाम देने वाली और मोक्षदायिनी है। जो जीव अयोध्या में अपना शरीर छोड़ते हैं, उन्हें फिर से इस संसार में आने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही तुलसीदास सरयू नदी के बारे में लिखते हैं कि सरयू में केवल स्नान से ही नहीं बल्कि इसके स्पर्श और दर्शनमात्र से भी व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं॥
पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कँगूरा रंग रंग बर॥

उत्तरकांड में राम जी के वनवास के वापिस लौटने के बाद भी अयोध्या का वर्णन किया है। तुलसीदास जी लिखते हैं कि अयोध्यावासियों को घर स्वर्ण और रत्नों से जड़े हुए हैं। घरों की अटारी से लेकर खंबे और फर्श तक अनेक रंग-बिरंगी मणियों से ढले हुए हैं। सरयू नदी के किनारे-किनारे ऋषि-मुनियों ने तुलसी के साथ-साथ बहुत-से पेड़ लगा रखे हैं। अयोध्या, जहां के राजा स्वयं प्रभु राम हैं, वहां की जनता समस्त सुखों से परिपूर्ण हैं।

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